Category: प्रेगनेंसी
By: Editorial Team | ☺11 min read
शिशु के जन्म के पश्चात मां को अपनी खान पान (Diet Chart) का बहुत ख्याल रखने की आवश्यकता है क्योंकि इस समय पौष्टिक आहार मां की सेहत तथा बच्चे के स्वास्थ्य दोनों के लिए जरूरी है। अगर आपके शिशु का जन्म सी सेक्शन के द्वारा हुआ है तब तो आपको अपनी सेहत का और भी ज्यादा ध्यान रखने की आवश्यकता। हम आपको इस लेख में बताएंगे कि सिजेरियन डिलीवरी के बाद कौन सा भोजन आपके स्वास्थ्य के लिए सबसे बेहतर है।
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हालांकि सिजेरियन डिलीवरी के माध्यम से जन्मे शिशु की मां को अपने पोषण पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है लेकिन पौष्टिक आहार सभी के लिए जरूरी है चाहे शिशु का जन्म नॉर्मल डिलीवरी यानी साधारण पद्धति से हुआ हो या फिर सी सेक्शन डिलीवरी के माध्यम से।
शिशु के जन्म के बाद मां का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है और उसके शरीर में बहुत प्रकार के बदलाव भी होते हैं। इस दौरान उसकी शरीर को कई प्रकार की पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जिन्हें अगर प्रधान ना किया जाए तो मां के शरीर को रिकवर होने में समय लगता है या फिर मां का शरीर हमेशा के लिए कमजोर हो जाता है।
इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि शिशु के जन्म के बाद मां के आहार से ही स्तनपान पर आधारित शिशु को भी पोषण मिलता है। इसीलिए मां का भोजन ऐसा होना चाहिए जो मां के स्वास्थ्य के साथ साथ शिशु के स्वास्थ्य को भी ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाए।
संतुलित आहार और सही खान-पान पर ध्यान दें
शिशु के जन्म के बाद डॉक्टर इस बात की राय देते हैं की माताएं अपने खानपान का सही ध्यान रखें और संतुलित आहार लेने की कोशिश करें। गर्भ काल के दौरान गर्भवती महिला को दूध फल और प्रोटीन ज्यादा लेने की सलाह दी जाती है। लेकिन जब शिशु का जन्म हो जाता है तब उन्हें ठोस आहार को प्राथमिकता देने के लिए कहा जाता है।
शिशु के जन्म के बाद महिलाओं को घी का सेवन करने के लिए भी सुझाव दिए जाते हैं। और यह एक अच्छा सुझाव है क्योंकि घी स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत अच्छा है और प्रचुर मात्रा में ऊर्जा प्रदान करता है जो कि महिलाओं को इस वक्त आवश्यक है।
शिशु के जन्म के बाद माता को दिनभर बच्चे के साथ लगे रहना पड़ता है इसलिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ती है जिसके लिए ज्यादा शारीरिक सामर्थ्य और ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। इस दौरान माताओं को विटामिन, कैलोरी और प्रोटीन से भरपूर आहार भी लेना चाहिए। आपको सही खानपान के साथ-साथ थोड़ा व्यायाम पर भी ध्यान देना चाहिए जिससे आप शारीरिक रूप से एक्टिव बनी रहे।
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शिशु के प्रसव के बाद का समय ऐसा होता है जब गर्भावस्था के 9 महीने के दौरान स्त्री के शरीर मैं जो जो परिवर्तन हुए थे उनसे रिकवर करना तथा स्वस्थ रहना पड़ता है। सिजेरियन डिलीवरी के बाद सही भोजन का चुनाव शरीर को तेजी से रिकवर करने में मदद करता है।

इस दौरान आपको इस बात का ध्यान रखना है कि आप ऐसे भोजन का चयन करें जिससे गैस कब्ज या फिर किसी भी प्रकार की पाचन से संबंधित समस्या ना हो। क्योंकि सी सेक्शन की वजह से ऑपरेशन का घाव भरने में कुछ समय लगता है। पेट संबंधी समस्याएं होने पर सी सेक्शन के घाव पर जोर पड़ सकता है। भोजन का चुनाव मात्र स्वास्थ्य को ध्यान रखकर ना करें, बल्कि आपका आहार ऐसा होना चाहिए जो आपकी मेंटल हेल्थ के लिए भी बेहतर हो।
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अब हम आपको बताएंगे कि कौन कौन से ऐसे भोजन है जो आपको डिलीवरी के बाद सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाएंगे। यह जो आहार हम आपको नीचे बता रहे हैं इन के आधार पर आप अपने लिए एक डाइट चार्ट (Diet Chart) बना सकती हैं। डिलीवरी के बाद का यह डाइट चार्ट (Diet Chart) तब तक आपकी मदद करेगा जब तक आप अपने शिशु को स्तनपान करा रही है।

शिशु के जन्म के बाद शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना भी बहुत जरूरी होता है। पानी ना केवल आपके शरीर को हाइड्रेटेड रखता है बल्कि जब आपके शरीर को पर्याप्त मात्रा में पानी मिलता है तो आपका शरीर भी बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में दूध का निर्माण करता है।

शिशु के जन्म के बाद मां को प्रोटीन और फोलिक एसिड दोनों की आवश्यकता पड़ती है। यह दोनों ही पोषक तत्व अखरोट में भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।
मौसम के अनुसार उपलब्ध ताजे फल और सब्जियों में भरपूर मात्रा में विटामिन, मिनरल्स, फाइटोकेमिकल्स और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं।

हर दिन एक ही तरह के फल व सब्जियों को अपने आहार में सम्मिलित ना करें। इसके बदले हर दिन भिन्न भिन्न सब्जियों को खाएं। क्योंकि हर सब्जी सभी प्रकार के विटामिन, मिनरल प्रदान नहीं कर पाते हैं। फल तथा सब्जियों में मौजूद विटामिन जैसे कि विटामिन सी महिला के शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करता है और जख्मों को जल्दी भरने में सहायता करता है।
डिलीवरी के बाद पत्तेदार सब्जियों का भी बहुत बहुत महत्व है। क्योंकि इनमें विटामिन और मिनरल के साथ साथ कैल्शियम भी होता है जो शरीर को तंदुरुस्त रखने में बहुत सहायक है। फल और सब्जियों में फाइबर भी अच्छी मात्रा में रहता है जो पाचन तंत्र के लिए अच्छा है और आंत को दुरुस्त रखता है। यही वजह है कि फल और सब्जियों को शिशु के जन्म के बाद सर्वश्रेष्ठ आहार माना जाता है।
अगर आप अंडा खाती हैं तो आपके लिए अंडा एक महत्वपूर्ण भोजन है। हर दिन कम से कम एक अंडा जरूर खाइए।

अंडा प्रोटीन से भरपूर होता है जो शरीर के हारमोंस के निर्माण और नियंत्रण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है साथ ही प्रोटीन शरीर में मांसपेशियों के निर्माण में तथा उन्हें ठीक करने में मदद करता है। अंडे में दिन की मात्रा भी पर्याप्त होती है। गर्भावस्था के दौरान आपके शरीर में हुए बदलाव को रिकवर करने में ड्रिंक आपकी मदद करेगा तथा आपको शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने में भी सहायता करेगा।
अगर आप मछली खाती हैं और यह आपको पसंद है तो आप शिशु के जन्म के बाद नियमित रूप से सप्ताह में एक बार इसे खाना शुरु कर दें।

सी सेक्शन डिलीवरी के बाद मछली एक बहुत ही महत्वपूर्ण आहार माना जाता है। इसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड पाया जाता है जो आपको फल, सब्जी, तथा अन्य आहार से ना मिल पाए। यह आपके स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है तथा शिशु के मस्तिष्क के विकास में बहुत महत्वपूर्ण है। जब आप अपने आहार में मछली को सम्मिलित करती है तो शिशु को यह पोषक तत्व स्तनपान के जरिए मिल जाता है।
शिशु के जन्म के बाद अक्सर याद देखा गया है कि माता के दांत कमजोर हो जाते हैं या उसकी शरीर की हड्डियां कमजोर हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शिशु के शारीरिक विकास के लिए गर्भावस्था के दौरान कैल्शियम की जरूरत को आपके दांतों में और आपकी हड्डियों में मौजूद कैल्शियम के द्वारा पूरा किया गया।

ऐसा हमेशा नहीं होता है लेकिन अगर आप ने गर्भावस्था के दौरान प्रचुर मात्रा में ऐसे आहारों का सेवन नहीं किया जिन से आपके शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम मिल सके जो गर्भ में पल रहे शिशु के विकास के लिए जरूरी है तो कैल्शियम की आवश्यकता को पूरी करने के लिए आपके शरीर में मौजूद कैल्शियम का इस्तेमाल हो जाता है।
शिशु के जन्म के बाद आपका शरीर दूध का निर्माण करना शुरू करता है जिसके लिए और भी कैल्शियम की आवश्यकता होती है। इसीलिए जब तक आप अपने शिशु को स्तनपान कराना जा जारी रखती हैं नियमित रूप से दूध पिए, दूध से बने उत्पाद खाएं। स्त्री रोग विशेषज्ञों के अनुसार, शिशु के जन्म के बाद, मां को हर दिन कम से कम 2 ग्लास दूध जरूर पीना चाहिए।
इस बात का ध्यान रखें कि दूध के निर्माण में कैल्शियम और इनकी उपलब्धता बहुत जरूरी है। और इसीलिए दूध तथा दूध से बने उत्पाद जैसे कि दही, शिशु के जन्म के बाद मां के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हरी पत्तेदार सब्जियों को अपने आहार में सम्मिलित करें क्योंकि इनमें भी कैल्शियम की मात्रा प्रचुर मात्रा में होती है।
सिजेरियन डिलीवरी के बाद पाचन पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है क्योंकि सी सेक्शन की वजह से बने ऑपरेशन के घाव पूरी तरह भरे नहीं होते हैं। इसीलिए मल त्याग के दौरान इन पर अनावश्यक दबाव पड़ सकता है।

खरबूजा पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है और इसमें मौजूद फाइबर कब्ज की समस्या को दूर करता है। खरबूजे का सेवन करते समय इस बात का ध्यान रखें कि कुछ लोगों में खरबूजे की वजह से लो बीपी (low blood pressure) की समस्या भी हो सकती है। इसीलिए खरबूजे के सेवन के उपरांत अगर आपको ऐसा लगी कि आप को लो बीपी (low blood pressure) हो रही है तो खरबूजे का सेवन बहुत ही सीमित मात्रा में करें।

जंक फूड का फास्ट फूड में पोषण की मात्रा बहुत कम होती है साथ ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह अच्छे नहीं होते हैं। इनके सेवन से पाचन तंत्र भी ठीक तरह से काम नहीं करता है और कब्ज की समस्या पैदा हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान आपको हर उस प्रकार के आहार से दूर रहना चाहिए जो आपके पाचन को खराब कर सकती है।

शिशु के जन्म के बाद जब तक आप उसे स्तनपान करा रही है तब तक कम मसालेदार आहार का सेवन करें। स्तनपान के दौरान अत्यधिक मसालेदार भोजन करने से शिशु चिड़चिड़ा और भड़कीला बनता है। ऐसा इसलिए क्योंकि स्तनपान के जरिए मसालेदार तत्व शिशु के शरीर तक होते हैं। इसके अलावा अधिक स्वादिष्ट और चटपटे भोजन के उपभोग से आपके दूध की गुणवत्ता प्रभावित होगी जिससे आपकी शिशु को पाचन संबंधी समस्या जैसे गैस या कब्ज की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
जब भी आप कुछ नया आहार ग्रहण करें, ध्यान से देखने की कोशिश करें स्तनपान के बाद आपके शिशु की प्रतिक्रिया क्या होती है। ऐसे सभी आहार जिन्हें जब आप खाती हैं तो अगर स्तनपान के बाद आपका शिशु असहज महसूस करें, तो उन आहार को कम मात्रा में ग्रहण करें या जब तक आप स्तनपान करा रही हैं अपने शिशु को कब तक उनसे दूर रहने की कोशिश करें।

विटामिन शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कई तरह से मदद करते हैं। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं, हड्डियों को मजबूत बनाते हैं, शरीर के जख्मों को ठीक करते हैं, आंखों की दृष्टि को मजबूत बनाते हैं और शरीर को भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने में मदद करते हैं। लेकिन गर्भावस्था के द्वारा विटामिन आपके लिए और की आवश्यक हो जाता है। इस लेख में हम आपको 6 ऐसे महत्वपूर्ण विटामिन के बारे में बताएंगे जो अगर गर्भावस्था के दौरान आपके शरीर को आहार के माध्यम से ना मिले तो यह आपके लिए तथा आपके गर्भ में पल रहे शिशु दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
बढ़ते बच्चों के लिए विटामिन और मिनिरल आवश्यक तत्त्व है। इसके आभाव में शिशु का मानसिक और शारीरिक विकास बाधित होता है। अगर आप अपने बच्चों के खान-पान में कुछ आहारों का ध्यान रखें तो आप अपने बच्चों के शारीर में विटामिन और मिनिरल की कमी होने से बचा सकती हैं।
गर्भावस्था के दौरान अपच का होना आम बात है। लेकिन प्रेगनेंसी में (बिना सोचे समझे) अपच की की दावा लेना हानिकारक हो सकता है। इस लेख में आप पढ़ेंगी की गर्भावस्था के दौरान अपच क्योँ होता है और आप घरेलु तरीके से अपच की समस्या को कैसे हल कर सकती हैं। आप ये भी पढ़ेंगी की अपच की दावा (antacids) खाते वक्त आप को क्या सावधानियां बरतने की आवश्यकता है।
ADHD से प्रभावित बच्चे को ध्यान केन्द्रित करने या नियमों का पालन करने में समस्या होती है। उन्हें डांटे नहीं। ये अपने असहज सवभाव को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं जैसे की एक कमरे से दुसरे कमरे में बिना वजह दौड़ना, वार्तालाप के दौरान बीच-बीच में बात काटना, आदि। लेकिन थोड़े समझ के साथ आप एडीएचडी (ADHD) से पीड़ित बच्चों को व्याहारिक तौर पे बेहतर बना सकती हैं।
सर्दी और जुकाम की वजह से अगर आप के शिशु को बुखार हो गया है तो थोड़ी सावधानी बारत कर आप अपने शिशु को स्वस्थ के बेहतर वातावरण तयार कर सकते हैं। शिशु को अगर बुखार है तो इसका मतलब शिशु को जीवाणुओं और विषाणुओं का संक्रमण लगा है।
बदलते मौसम में शिशु को जुकाम और बंद नाक की समस्या होना एक आम बात है। लेकिन अच्छी बात यह है की कुछ बहुत ही सरल तरीकों से आप अपने बच्चों की तकलीफों को कम कर सकती हैं और उन्हें आराम पहुंचा सकती हैं।
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अल्बिनो (albinism) से प्रभावित बच्चों की त्वचा का रंग हल्का या बदरंग होता है। ऐसे बच्चों को धुप से बचा के रखने की भी आवश्यकता होती है। इसके साथ ही बच्चे को दृष्टि से भी सम्बंधित समस्या हो सकती है। जानिए की अगर आप के शिशु को अल्बिनो (albinism) है तो किन-किन चीजों का ख्याल रखने की आवश्यकता है।
अगर आप के बच्चे को दूध पिलाने के बाद हिचकी आता है तो यह कोई गंभीर बात नहीं है। कुछ आसान घरेलू नुस्खे हैं जिनकी मदद से आप अपने बच्चे को हिचकी से निजात दिला सकती हैं।
दिन भर की व्यस्त जिंदगी में अगर आप को इतना समय नहीं मिलता की बच्चे के साथ कुछ समय बिता सकें तो रात को सोते समय आप बच्चे को अपना समय दे सकती हैं| बच्चों को रात में सोते वक्त कहानी सुनाने से बच्चे के बौद्धिक विकास को गति मिलती है और माँ और बच्चे में एक अच्छी bonding बनती है|
विटामिन सी, या एस्कॉर्बिक एसिड, सबसे प्रभावी और सबसे सुरक्षित पोषक तत्वों में से एक है यह पानी में घुलनशील विटामिन है यह कोलेजन के संश्लेषण के लिए एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है, जिससे रक्त वाहिकाओं और शरीर की मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मदद मिलती है। मानव शरीर में विटामिन सी पैदा करने की क्षमता नहीं है। इसलिए, इसे भोजन और अन्य पूरक आहार के माध्यम से प्राप्त करने की आवश्यकता है।
जन्म के समय जिन बच्चों का वजन 2 किलो से कम रहता है उन बच्चों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम रहती है| इसकी वजह से संक्रमणजनित कई प्रकार के रोगों से बच्चे को खतरा बना रहता है|
शिशु के कपडे को धोते वक्त कुछ बातों का ख्याल रखें ताकि कीटाणुओं और रोगाणुओं को बच्चों के कपडे से पूरी तरह ख़त्म किया जा सके और बच्चों के कपडे भी सुरक्षित रहें| शिशु के खिलौनों को भी समय-समय पे धोते रहें ताकि संक्रमण का खतरा ख़त्म हो सके|
जन्म के बाद गर्भनाल की उचित देखभाल बहुत जरुरी है। अगर शिशु के गर्भनाल की उचित देखभाल नहीं की गयी तो इससे शिशु को संक्रमण भी हो सकता है। नवजात शिशु में संक्रमण से लड़ने की छमता नहीं होती है। इसीलिए थोड़ी सी भी असावधानी बच्चे के लिए जानलेवा साबित हो सकती है।
एक साल से ले कर नौ साल (9 years) तक के बच्चों का डाइट प्लान (Diet Plan) जो शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास में सकारात्मक योगदान दे। शिशु का डाइट प्लान (Diet Plan) सुनिश्चित करता है की शिशु को सभी पोषक तत्त्व सही अनुपात में मिले ताकि शिशु के विकास में कोई रूकावट ना आये।
बच्चो में कुपोषण का मतलब भूख से नहीं है। हालाँकि कई बार दोनों साथ साथ होता है। गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार बच्चों को उसकी बढ़ने के लिए जरुरी पोषक तत्त्व नहीं मिल पाते। बच्चों को कुपोषण से बचने के लिए हर संभव प्रयास जरुरी हैं क्योंकि एक बार अगर बच्चा कुपोषण का शिकार हो जाये तो उसे दोबारा ठीक नहीं किया जा सकता।
दूध से होने वाली एलर्जी को ग्लाक्टोसेमिया या अतिदुग्धशर्करा कहा जाता है। कभी-कभी आप का बच्चा उस दूध में मौजूद लैक्टोज़ शुगर को पचा नहीं पाता है और लैक्टोज़ इंटॉलेन्स का शिकार हो जाता है जिसकी वजह से उसे उलटी , दस्त व गैस जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कुछ बच्चों में दूध में मौजूद दूध से एलर्जी होती है जिसे हम और आप पहचान नहीं पाते हैं और त्वचा में इसके रिएक्शन होने लगता है।