Category: बच्चों का पोषण
By: Admin | ☺22 min read
बहुत आसन घरेलु तरीकों से आप अपने शिशु का वजन बढ़ा सकती हैं। शिशु के पहले पांच साल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये ऐसा समय है जब शिशु का शारीरिक और बौद्धिक विकास अपने चरम पे होता है। इस समय शिशु के विकास के रफ़्तार को ब्रेक लग जाये तो यह क्षति फिर जीवन मैं कभी पूरी नहीं हो पायेगी।
क्या आप इस बात से परेशान हैं की आप के बच्चे का वजन नहीं बढ़ रहा है?
क्या आप को यह लगता है की आप के बच्चे का वजन growth chart (बच्चों का वजन चार्ट) के अनुसार नहीं बढ़ रहा है?
कहीं आप के बच्चे के डॉक्टर ने यह तो नहीं कहा की आप का बच्चा वजन में कम है या कुपोषित है?
अगर ऐसी बात है तो आप जरूर चाहेंगी उन आहारों के बारे में पता लगाना जो आप के बच्चे की सेहत सुधारे और उसका वजन बढ़ाये।
कुछ ऐसे चमत्कारी आहार हैं जो बहुत कम समय में आप के बच्चे का वजन बढ़ा सकते हैं। ये आहार हैं उनमें से कुछ आहारों के नाम ये हैं - दूध, दही, देशी घी, शक्कर कंध, मास, मछली और अंडा। ये आहार बच्चों में वजन बढ़ाने वाले आहारों में गिने जाते हैं।
चलिए, हम इन सभी के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं।
नवजात शिशु जन्म के कुछ दिनों के अंदर अपना कुछ वजन खोता है। यह साधारण बात है और यह सभी बच्चों के साथ होता है।
लेकिन नवजात शिशु जन्म से 14 दिनों के अंदर अपने जन्म के समय (birth weight) के वजन को वापस पा लेता है।
अगले 3 से 4 महीने में शिशु अपने जन्म के वजन (birth weight) का दुगुना हो जाता है।
एक साल का होते होते शिशु अपने जन्म के वजन (birth weight) का तीनगुना हो जाता है।
अगर आप के शिशु का आहार ठीक-ठाक है और वो बाकि बच्चों की तरह क्रियाशील है लेकिन फिर भी उसका वजन ठीक तरह नहीं बढ़ रहा है तो आप इस लेख में जान सकेंगी की किस तरह आप को अपने बच्चे का वजन बढ़ाना चाहिए।
शिशु का आहार जो बढ़ाये बच्चे का वजन। जी हाँ - आहार शिशु का वजन बढ़ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन सभी आहार शिशु का वजन बढ़ाने में एक सामान योगदान नहीं देते हैं। कुछ आहार ज्यादा फायदेमंद हैं और कुछ कम।
जब मेरा शिशु दो साल का हुआ तो मुझे भी उसके वजन को लेकर चिंता हुई। पहले साल उसके वजन को लेकर कोई समस्या नहीं थी। पहले साल मेरे बच्चे का वजन growth chart (बच्चों का वजन चार्ट) के अनुसार ठीक ठाक बढ़ा। मुझे ख़ुशी थी की मै अपने बच्चे का ख्याल ठीक तरह से रख रही हूँ।
लेकिन,
दुसरे साल से मेरे बच्चे का वजन कम होने लगा। बहुत मेहनत के बाद भी उसका वजन नहीं बढ़ रहा था। यह बात मुझे अंदर से परेशान करने लगी। में बहुत दुखी रहने लगी। जो भी रिश्तेदार घर आते, बच्चे की सेहत के बारे में पूछते।
लोग पूछते की बच्चे को क्या हो गया है? क्योँ वो इतना कमजोर दिख रहा है?
अब में उन्हें क्या बताती?
सभ कुछ तो कर रही थी।
यह बहुत ही परेशान करने वाली बात थी? मैं अंदर से परेशान थी और लोग पूछ पूछ कर और परेशान कर रहे थे।
मुझे अंदर से लगता था की जैसे लोग मेरी परवरिश पे ऊँगली उठा रहे हैं। मेरा आत्मविश्वाश कम हो रहा था और मै अपने बच्चे को लेकर बहुत चिंतित थी।
इसी दौरान मेरी मुलाकात एक शिशु विशेषज्ञ से हुई। ये डॉक्टर हमारे शहर के प्रसिद्ध अस्पतक से कुछ ही दिनों पहले रिटायर हुए थे।
जब मैंने उन्हें अपनी चिंता का विषय बताया तो उन्होंने बहुत ही शांति से जवाब दिया।
उन्होंने कहा की इसमें चिंता करने की बात नहीं है। बस - बच्चे की रोग प्रतिरोधत छमता को कैसे दरुस्त करें, इस पे ध्यान देने की आवश्यकता है। शिशु को अगर स्वस्थ वर्धक आहार दिया जाये और उसमे स्वस्थ गुणों का विकास किया जाये तो वो भी तंदरुस्त हो सकता है।
उन्होंने एक बात और कहा की बच्चे की वजन को लेकर बहुत परेशान होने की जरुरत नहीं है क्योँकि बच्चे का वजन बहुत बातों पे निर्भर करता है। उदहारण के लिए अनुवांशिकी पे जिसपे आप का कोई नियंत्रण नहीं है।
डाक्टर जी के अनुसार हमे बच्चों के वजन के आधार पे उसके विकास को नहीं मापना चाहिए।
ऐसा इस लिए क्यूंकि बच्चे का वजन बहुत सी बातों पे आधारित होता है जिस पे आप का कोई नियंत्रण नहीं है - जैसा की बच्चे की अनुवंशकी पे।
अगर बच्चे के माँ-बाप की लम्बाई कम है, तो जाहिर है की बच्चे का वजन और लम्बाई भी कम होगी।
बच्चे के विकास को सही तरह से केवल growth chart यानी की विकास चार्ट के दुवारा ही नापा जा सकता है।
अगर आप के बच्चे को पर्याप्त मात्र में दूध मिल रहा है और वो दिन में कम से कम 6 से 8 बार अपना डायपर गिला का रहा है तथा उसे दिन मैं कई बार पॉटी (potty) तो यह इस बात को दर्शाता है की बच्चे का विकास ठीक तरह से हो रहा है।
जैसे जैसे बच्चा बड़ा होगा उसे पॉटी (potty) कम होगा। हो सकता है की कुछ दिनों के बाद उसे पॉटी तीन दिनों में एक बार हो। यह बिलकुल normal सी बात है।
अगर आप का शिशु छेह महीने से छोटा है तो आप इन सवालों के सहारे यह सुनिश्चित कर सकती हैं की आप के बच्चे का विकास ठीक तरह से हो रहा है या की नहीं। यह सवाल ज्यादा महत्वपूर्ण है अगर आप का बच्चा पूरी तरह स्तनपान पे निर्भर है। नोट: छेह महीने से कहते बच्चों को केवल माँ का दूध ही देना चाहिए।
अगर आप का शिशु छेह महीने से बड़ा है तो आप को अपने शिशु को दिन में तीन बार देना चाहिए। इसके साथ साथ दिन में कम से कम दो बार स्तनपान भी करना चाहिए। जब तक की आप का शिशु एक साल का ना हो जाये आप उसे ठोस आहारों के साथ-साथ स्तनपान भी कराती रहें।
चलिए अब बात करते हैं उन साधारण से दिखने वाले चमत्कारी आहारों के बारे में जो अश्च्यार्जनक रूप से आप के बच्चे का वजन बढ़ने की छमता रखते हैं।
इन्हें दो वर्गों में बंटा गया है:
जैसे की हम पहले ही बात कर चुके हैं की छेह महीने से छोटे बच्चों को स्तनपान के आलावा कुछ भी नहीं दिया जाना चाहिए। अगर आप के बच्चे को स्तनपान के जरिये मिलने वाला दूध उसके लिए पर्याप्त नहीं है तो आप तुरंत शिशु विशेषज्ञ से संपर्क करें। अगर शिशु को स्तनपान से पर्याप्त मात्र में दूध नहीं मिल पा रहा है तो बच्चों के डोक्टर सही उपये बताएँगे।
छेह महीने से छोटे बच्चे के लिए स्तनपान ही एक मात्र जरिये जिससे की उसके वजन को बढाया जाये। बच्चे को पर्याप्त मात्र में दूध पिलायें। माँ का दूध बच्चे के लिए बहुत ही पोषक आहार है। यह बच्चे को वो सारे पोषक तत्त्व उस अनुपात में प्रदान करता है जो शिशु के सम्पूर्ण विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। माँ का दूध बच्चे को आसानी से पच भी जाता है।
अगर छेह महीने से छोटे बच्चे को पर्याप्त मात्र में दूध मिल रहा है तो उसका वजन सही अनुपात में बढेगा। माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोतम आहार है।
जब आप का बच्चे छेह महीने से बड़ा हो जाये तो आप बच्चे में ठोस आहार की शुरुआत कर सकती हैं। बच्चे में ठोस आहार की शुरुआत करते वक्त तीन दिवसीय नियम का पालन अवश्य करें।
अब बात करते हैं ऐसे आहारों की जो स्वस्थ तरीके से आप के बच्चों का वजन बढ़ने में आप की सहायता करेंगे।
अब जब आप का बच्चा छेह महीने से बड़ा हो गया है तो आप उसे निचे दिए आहार खिला सकती हैं। सुनने में ये बहुत ही साधारण आहार लगेंगे लेकिन बच्चों का जवान बढ़ाने की इनमें विलक्षण ताकत है।
केला प्राकृतिक उर्जा का अदभुत स्रोत है। केवल एक केले से बच्चे को 100 कैलोरी से ज्यादा उर्जा मिलता है। केले में कार्बोहायड्रेट, पोटैशियम, डाइट फाइबर, विटामिन C और B6 भी प्रचुर मात्र में मिलता है।
केला उन आहारों में से एक है जो शारीर को तुरंत उर्जा प्रदान करने में सक्षम है। यह बहुत आसानी से पच भी जाता है। पुरे भारत में आप कहीं भी जाइये, केला एक ऐसा फल है जो हर जगह आसानी से उप्लंध हो जाता है। इससे शिशु के लिए आहार बनाना भी बहुत आसन है। यही वजह है की सफ़र के दौरान बच्चों के लिए केला सर्वोतम आहार है।
केले को आप बहुत आसानी से कहीं भी ले भी जा सकती हैं। बस दो केला लीजिये, रुमाल में लपेटिये, अपने पर्स में रखिये, और कई घंटो के लिए अपने शिशु के आहार को लेकर निश्चित हो जाइये। ना अलग से टिफिन डब्बा लेने की आवश्यकता और ना ही ये सोचने की की बच्चे को आहार कहाँ और किस तरह खिलाया जाये।
अपने शिशु को आप केला कई तरह से खिला सकत हैं। जैसे की आप केले की smoothies, shakes, cakes या puddings बना के शिशु को दे सकती है। और अगर आप को कुछ भी ना समझ आये तो बस केले को छील कर बच्चे को खाने के लिए दे सकती हैं।
गाए के शुद्ध देशी घी में पोषण बहुत ही घनिष्ट मात्रा में होता है। इसी लिए शिशु का वजन बढ़ने के लिए यह एक बहुत ही बेहतरीन आहार है।
जैसे ही आप का शिशु आठ महीने (8 months) का होता है आप उसे देशी घी दे सकती हैं। शिशु को देशी घी देने के लिए उसके आहार में देशी घी के कुछ बूंद डाल सकती हैं। जैसे की उसके खिचड़ी में या रोटी में लगा के। जैसे-जैसे आप का बच्चा बड़ा होगा आप देशी घी की मात्र बढ़ा सकती हैं।
गाए के शुद्ध देशी घी में वासा की मात्र बहुत ज्यादा होती है, इसी लिए बच्चे को देशी घी बहुत ही सिमित मात्र में दें। यह जानने के लिए की किस उर्म में बच्चे को कितना देसी घी आप दे सकती हैं - यह लेख पढ़ें।
रागी बहुत ही पोषक और स्वास्थवर्धक है। बच्चों का वजन बढ़ाने के लिए तो ये बेहतरीन आहार है। इससे बच्चे को प्रचुर मात्र में कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन B1, B2, और दुसरे बहुत से मिनिरल्स (खनिज) मिलते हैं जो शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत जरुरी है।
बच्चे रागी को बहुत आसानी से पचा लेते हैं। शिशु का वजन बढ़ने के लिए आप शिशु के आहार में रागी का इस्तेमाल कर सकती हैं। बच्चे रागी का हलवा बड़े चाव से खाते हैं। इसके आलावा आप बच्चे को रागी का खिचड़ी भी बना के खिला सकती हैं।
दही में दूध का वासा और पोषक तत्त्व होता है। तुलनात्मक रूप से देखा जाये तो बच्चों में दूध की तुलना में दही ज्यादा आसानी से पच जाता है।
दही शिशु को उसके विकास के लिए जरुरी सभी पोषक तत्त्व सही अनुपात में पहुंचता है। इससे शिशु को भरपूर मात्र में कैल्शियम, विटामिन्स और मिनिरल्स मिलता है।
दही शिशु का रोग प्रतिरोधक छमता भी बढ़ता है और अगर बच्चे को दस्त की समस्या है तो उससे भी आराम दिलाता है।
शिशु रोग विशेषज्ञ इस बात की राय देते हैं की जब बच्चा 7 महीने या 8 महीने का हो जाये तब आप उसे दही देना शुरू करें।
शिशु दूध में उपलब्ध प्रोटीन को बहुत आसानी से digest नहीं कर सकता है। लेकिन दही बन्ने के दौरान, fermentation प्रक्रिया में दूध का प्रोटीन इस तरह से टूटता है जिसे की बच्चे का पाचन तंत्र आसानी से पचा लेते है।
आप दही से शिधू के लिए कई तरह के आहार बना सकती हैं,जैसे की curd rice, smoothies, buttermilk या fruit-flavored curd (दही)।
ओट्स में फाइबर भरपूरी से होता है। इस वजह से यह शिशु को कब्ज नहीं होने देता है और उसके पाचन तंत्र को दरुस्त रखता है। ओट्स में saturated fat और cholesterol की मात्र बहुत कम होती है। साथ ही यह आयरन, मैग्नीशियम, जिंक, थिअमिने (thiamine) और फॉस्फोरस का भी बेहतरीन स्रोत है।
ये सभी खनिज बच्चे के विकास में तो यौगदान देते ही हैं, साथ ही वजन का सही अनुपात भी बनाये रखने में मदद करते हैं।
आप अपने बच्चे को ओट्स उसके आहार में कई तरह से दे सकती हैं। जैसे की आप अपने बच्चे को ओट्स का डोसा, खीर, खिचड़ी, कुकी (cookies) या बस दूध में मिला के भी खिला सकती हैं।
आलू वो आहार है जो आप अपने बच्चे को ठोस आहार शुरू करते है पहले दिन से खिलाना शुरू कर सकती हैं। इसमें स्टार्च प्रचुर मात्र में होता है। सरल भाषा में स्टार्च को आप कार्बोहायड्रेट कह सक्यती हैं। इससे शिशु को उर्जा मिलता है।
बच्चे बहुत चंचल होते हैं। दौड़ना, भागना और खेल कूद के लिए बच्चे को ढेरों उर्जा की आवश्यकता पड़ती है। ये उर्जा शिशु को कार्बोहायड्रेट से ही मिलती है।
कार्बोहायड्रेट के साथ-साथ आलू में अच्छी मात्र में विटामिन C और B6 और अनेक प्रकार के मिनिरेल्स जैसे की फॉस्फोरस, मैनगनिस होता है।
आलू से शिशु आहार बनाना बहुत आसन है। आप जो भी आहार शिशु के लिए बना रही हैं, जैसे की खिचड़ी, दाल या सब्जी, आप उसमे आलू छील के डाल सकती हैं।
आप चाहें तो अपने शिशु को आलू उबल कर के उसका चोखा बना के भी शिशु को दे सकती हैं। इसमें आप स्वाद के लिए देशी घी के कुछ बूंद भी मिला सकती हैं।
आलू बच्चों को बहुत आसानी से पच जाता है। इससे बच्चों को अलेर्जी होने की भी बहुत कम सम्भावना है।
यह बच्चों का पसंदीदा आहार में से एक है। बच्चे आलू को बहुत पसंद से खाते हैं।
आलू की ही तरह शक्करकंद को भी आप शिशु को ठोस आहार शुरू करते ही दे सकती हैं। यह बहुत ही पोषक आहार है और बच्चों को आसानी से पच जाता है। आप इसे उबल कर और आलू की तरह मैश कर के बच्चे को खिला सकती हैं।
शक्करकंद (Sweet Potatoes) पोषक तत्वों का भंडार है। इससे बच्चे को विटामिन A (जिसे beta carotene भी कहते हैं), विटामिन C, कॉपर, मनगनिस, पोटैशियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और विटामिन B6 मिलता है। इसके आलावा बच्चे को dietary fiber भी मिलता है।
दाल (pulses) में बहुत कैलोरी होती है, जिस वजह से यह बच्चे का वजन बढ़ाने में बहुत सहायक है। अगर आप का बच्चा छेह महीने से बड़ा हो गया है तो आप अपने बच्चे को मूंग दाल का soup बना के दे सकती हैं। आप चाहें तो बच्चे को डाल का पानी भी दे सकती हैं।
मूंग का दाल और उरद का दाल बच्चों को बहुत आसानी से पच जाता है। इसमें पोषक तत्त्व बहुत होते हैं, साथ ही इससे शिशु को प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम और पोटैशियम भी मिलता है। दाल में वासा की मात्र बहुत कम होती है और फाइबर बहुत होता है।
दाल बच्चों को बहुत तरीके से दिया जा सकता है। आप बच्चों को दाल की खिचड़ी, दाल का soup, या दाल का हलवा बना के दे सकती हैं। शिशु आहार तयार करने के लिए आप निचे दिए दाल की कुछ recipes देख सकती हैं:
अवोकेडो में दो चीज़ भरपूर मात्र में है - स्वस्थ वासा और फाइबर। इसके साथ यह बच्चे महत्वपूर्ण (essential) मिनरल्स और विटामिन्स भी प्रदान करता है। आप शिशु को छेह महीने होते ही अवोकेडो दे सकती हैं।
अवोकेडो को कई तरह से बच्चों को दिया जा सकता है। शुरुआत में आप अवोकेडो को पीस के (puree) या आलू के चोखे की तरह मैश कर के खिला सकती हैं।
इसके आलावा आप अगर आप बच्चों के लिए shakes, smoothies या desserts बना रही हैं, तो आप उसमे अवोकेडो मिला सकती हैं ठीक उसी तरह जिस तरह से ice-cream मिलाया जाता है।
शिशु में ठोस आहार शुरू करते वक्त खिचड़ी उन आहारों में से एक है जो शिशु को सबसे पहले दिया जाता है। ऐसा इसलिए क्यूंकि छेह महीने के बच्चे का पाचन तंत्र पूरी तरह से विकसित नहीं होता है। लेकिन खिचड़ी इतना सरल है की इसे पचाने के लिए शिशु के पाचन तंत्र पे कोई बल नहीं पड़ता है। यह छेह महीने के शिशु में भी आसानी से पच जाता है।
खिचड़ी में चावल और दाल के साथ साथ आधा चम्मच गाए का शुद्ध देशी घी भी डाल देने से शिशु-आहार का ना केवल जायेका बढ़ता है बल्कि यह एक ऐसा आहार में तब्दील हो जाता है जो शिशु के वजन को बहुत ही कम समय में बढ़ाने की छमता रखता है।
सबसे अच्छी बात ये है की इस आहार को शिशु बहुत चाव से खाते हैं।
अंडे में प्रोटीन बहुत घनिष्ट मात्र में होता है। क्या आप को पता है की आप की मास-पेशियाँ प्रोटीन की बनी हैं। जिस तरह से घर को बनाने के लिए ईटों की जरुरत पड़ती है, उसी तरह से शारीर को मास-पेशियौं को बनाने के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है।
जब शारीर को अंडे से उच्च गुणवता वाला प्रोटीन मिलता है तो मास-पेशियौं का विकास बहुत तेज़ गति से होने लगता है। यही कारण है की जो लूग वजन बढ़ने के लिए GYM जाते हैं, वे कई अंडे भी हर दिन खाते हैं।
जब बच्चे एक साल से बड़े हो जाएँ तब उन्हें हर दिन एक अंडा खिलने से उनके वजन में बढौतरी होती है।
शिशु के शारीरिक विकास के लिए अंडे के और भी बहुत से फायेदे है। अंडा choline का बहुत ही अच्छा स्रोत है। यह choline शिशु के तंत्रिका तंत्र और दिमागी नियंत्रण मैं बहुत सहायक है।
कुछ बच्चों में अंडे से अलेर्जी हो सकता है। शिशु को पहली बार अंडा देते समय तीन दिवसीय नियम का पालन अवश्य करें। अगर अंडा देने से शिशु में अलेर्जी के कोई भी लक्षण दिखे तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें।
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बटर या मक्खन शिशु के शारीरिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। शिशु के दिमागी विकास के लिए तो स्वस्थ-वासा तो सबसे जरुरी है।
मक्खन वासा का सबसे घनिष्ट स्रोत है। सच बात तो ये है की मक्खन शिशु को वो सारे प्रकार के वासा को प्रदान करता है जो उसके तेज़ शारीरिक वृद्धि के लिए आवश्यक है। जैसे की cholesterol, Vitamin A और essential fatty acids - जी हाँ, - कोलेस्ट्रॉल भी शिशु के विकास के लिए बहुत जरुरी है।
एक उम्र के बाद कोलेस्ट्रॉल हानिकारक हो सकता है, लेकिन बच्चों के विकास के लिए तो ये बहुत जरुरी है।
बस एक बात का शयन रहे की शिशु को जरुरत से ज्यादा मक्कन ना मिले। शिशु का स्वस्थ विकास महत्वपूर्ण है, लेकिन अत्याधिक मोटा होना भी ठीक नहीं है। यूँ कहें की मोटा होना अनेक बिमारियौं की जड़ है।
बस एक चाय की चमच भर मक्खन हर दिन शिशु के विकास के लिए बहुत है। आप अपने शिशु को मक्खन उसके आहार में जैसे की खिचड़ी, दाल, सूजी का हलुआ, या सूप में मिला के खिला सकती हैं।
पूरा गेहूं यानी की बिना चलनी से छाना हुआ गेहूं। इस गेहूं में (Whole Wheat) में चोकर होता है जो की पोषक तत्वों से भरपूर होता है और जिसमे फाइबर भी प्रचुर मात्रा में होता है।
अगर हम पुरे गेहूं (Whole Wheat) में पोषक तत्वों के बारे में बात करें तो इसमें फाइबर के साथ-साथ प्रोटीन, एंटीऑक्सीडेंट, जिंक, आयरन, और मैग्नीशियम होता है। ये सभी तत्त्व ऐसे हैं जो शरीर को जरुरत पड़ता है शिशु का वजन बढ़ने के लिए।
गेहूं से शिशु का वजन तो तुरंत नहीं बढ़ेगा लेकिन यह एक बहुत ही स्वस्थ तरीका है शिशु का वजन बढ़ाने के लिए।
शिशु जब दस महीने (10 months) का हो जाये तभी उसे गेहूं से बने आहार दें। ऐसा इस लिए क्योँकि कुछ बच्चों में गेहूं के प्रति अलेर्जी होने की सम्भावना रहती जो बढ़ते उम्र के साथ कम होती जाती है।
शिशु को गेहूं से बने आहार देते समय आहार के तीन दिवसीय नियम का पालन अवश्य करें। गेहूं से बने आहार देने के बाद अगर आप को शिशु में कोई भी एलेर्जी के लक्षण दिखे तो तुरंत बिना समय गवाएं डॉक्टर की राय लें।
अक्सर आप ने पढ़ा होगा विशेषज्ञ इस बात पे जोर देते हैं की फलों के रस की बजाये, उनका smoothie बना के पीना चाहिए। इससे मोटापा कम होता है।
लेकिन जब बच्चे का वजन बढ़ाना हो तो फलों जूस एक बहुत अच्छा विकल्प भी है। फलों के जूस में कैलोरी की कोई कमी नहीं होती है। इसमें पोषक तत्त्व भी भरपूर होते हैं जैसे की विटामिन्स, मिनरल्स और फाइबर।
यह उन माँ-बाप के लिए बहुत ही बढ़िया विकल्प है जिनके बच्चे फलों को खाना पसंद नहीं करते हैं।
आप बच्चों के लिए घर पे ही फलों का जूस बना सकती हैं। फलों का जूस बनाने के लिए आप संतरे, आनर, अन्नानास का भी इस्तेमाल कर सकती हैं। आप इन सबके अलग अलग जूस बना के अपने बच्चे को पीला सकती है या सबको मिला के भी जूस बना के बच्चे को पीला सकती हैं।
बच्चों के लिए जूस बनाते वक्त आप को अलग से उसमे चीनी डालने की कोई जरुरत नहीं है। आप जूस का स्वाद नियंत्रित करने के लिए फलों के अनुपात में बदलाव कर सकती हैं जैसे की संतरे और आनर का मिश्रण।
मछली सही मायने में पोषक तत्वों की रानी है क्योँकि मछली बच्चे को कुछ ऐसे पोषक तत्त्व प्रदान करती है जो उसे किसी दुसरे स्रोत से नहीं मिल पायेगा। उदहारण के लिए शिशु को मछली से विटामिन D मिलता है जो उसे jaundice (पीलिया)
से बचता है। मछली से शिशु को omega-3 fatty acids भी मिलता है। यह शिशु के दिमाग के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
मछली एक मात्रा आहार है जिससे शिशु को विटामिन D और omega-3 fatty acids मिलता है।
मगर,
एक बात का ध्यान रहे। मछली खरीदते वक्त ऐसी मछली खरीदें जिस में mercury (पारा) की मात्रा कम हो।
एक और महत्वपूर्ण बात। कुछ बच्चों को मछली से एलेर्जी होने की सम्भावना रहती है। इसलिए बच्चे को पहली बार मछली खिलते वक्त आहार के तीन दिवसीय नियम का पालन करें। शिशु को मछली खिलने के बाद अगर शिशु में कोई एलेर्जी के लक्षण दिखे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
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एक साल से बड़े बच्चों को गाए का दूध दिया जा सकता है। गाए का दूध बच्चों का वजन चमत्कारी रूप से बढ़ाने की छमता रखता है। तभी तो 20 किलो का बछड़ा, छह महीने में 100 किलो का हो जाता है।
इससे बच्चे को वो सबकुछ मिलता है जो वजन बढ़ाने के लिए जरुरी है। जैसे की कैल्शियम हड्डियोँ के विकास के लिए, प्रोटीन मास पेशियोँ के विकास के लिए, कुछ महत्वपूर्ण विटामिन्स और मिनरल्स शिशु के all round डेवलपमेंट के लिए।
एक साल से बड़े बच्चों को हर दिन कम से कम दो गिलास दूध देना चाहिए।
अगर आप के बच्चे को सादा दूध पसंद नहीं है तो आप उसे कई तरीकों से परोस सकती हैं। उदहारण के लिए आप बच्चे को दूध का शेक बना के दे सकती हैं, जैसे की चॉकलेट शेक, फ्रूट शेक इत्यादि।
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पनीर इस लिए बढ़िया है क्योँकि इसमें गाए के दूध के सभी गुण विधमान है। जैसे की कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन A, विटामिन D, विटामिन B12 और फॉस्फोरस।
जब शिशु आठ महीने (8 months) का हो जाये आप तभी से उसे पनीर दे सकती हैं। मगर दूध बच्चे को एक साल के बाद ही दें।
यह एक बेहतरीन आहार विशेषकर उन बच्चों के लिए जिन्हे वजन बढ़ाने की आवश्यकता है। आप अपने बच्चे को पनीर छोटे-छोटे टुकड़े में काट के भी दे सकती हैं, Finger Food की तरह। इससे बच्चे के खाने के आदत का भी विकास होगा।
पनीर उन बच्चों को भी दिया जा सकता है जिन बच्चों को गाए के दूध से एलेर्जी है। लेकिन फिर भी बच्चे को पहली बार पनीर देते समय आहार के तीन दिवसीय नियम का पालन अवशय करें। पीर देने के बाद अगर शिशु में किसी भी एलेर्जी के लक्षण दिखे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
जैतून के तेल में सही अनुपात में good fatty acids पाया जाता है जो शिशु का वजन बढ़ाने के लिए जरुरी है। इसमें अत्याधिक मात्र में antioxidants और phytonutrients भी मिलता है।
कोशिश करें की शिशु का आहार हमेशा जैतून का तेल (Virgin Olive oil) में ही पकाया जाये। यह तेल दुसरे वनस्पति तेलों से बेहतर है।
जैतून का तेल (Virgin Olive oil) से शिशु की त्वचा गोरी और खूबसूरत बनेगी।
सूखे मेवे जैसे की काजू, बादाम, अख्रोड़, चिरौंजी, पिस्ता से शिशु को स्वस्थ वासा का लाभ मिलता है। सूखे मेवे खाने से शिशु का वजन बहुत तेज़ी से बढ़ता है।
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