Category: शिशु रोग
By: Salan Khalkho | ☺9 min read
नवजात शिशु को डायपर के रैशेस से बचने का सरल और प्रभावी घरेलु तरीका। बच्चों में सर्दियौं में डायपर के रैशेस की समस्या बहुत ही आम है। डायपर रैशेस होने से शिशु बहुत रोता है और रात को ठीक से सो भी नहीं पता है। लेकिन इसका इलाज भी बहुत सरल है और शिशु तुरंत ठीक भी हो जाता है। - पढ़िए डायपर के रैशेस हटाने के घरेलू नुस्खे।

पिछले एक दशक के बहुत कुछ बदल गया है।
जहाँ विज्ञानं और उद्यौगिक प्रगति ने जीवन शैली को बहुत सरल बना दिया है जैसे की छोटे बच्चों में डायपर का इस्तेमाल, वहीँ कुछ चीज़ें जो ना अब तक बदली हैं और ना ही कभी बदलेंगी।
वो है माँ का प्यार!
लेकिन माँ के प्यार के साथ साथ आती हैं ढेर सारी चिंताएं - छोटे से बच्चे से सम्बंधित।
माता और पिता की चिंताएं और बढ़ जाती हैं जब मौसम बदलता है। विशेषकर जाड़े (सर्दियों) के मौसम में। यह एक ऐसा मौसम है जिस में हर बच्चा कम से कम एक बार तो बीमार पड़ता ही है।
सर्दियों के मौसम में बच्चे ठण्ड की वजह से जल्दी-जल्दी कपडे गीले भी कर देते हैं (पेंट में शुशु कर देते हैं)।
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हर माँ-बाप की यह कोशिश होती है की हर थोड़ी-थोड़ी देर पे बच्चे के कपडे को टटोल के देखते रहें की कहीं बच्चे ने अपने कपड़ों को गीला तो नहीं कर दिया है।
मगर इतना सबकुछ करने के बाद भी चूक होने की सम्भावना को टाला नहीं जा सकता है। और अगर बच्चे सर्दी के मौसम में कुछ देर के लिए गीले कपड़ों में रह गए तो उनका बीमार पड़ना निश्चित है।

इसीलिए अधिकांश माता-पिता बच्चों को diaper पहना के रखते हैं। इससे दो फायदे होता हैं

लेकिन इसका एक दूसरा पहलु भी है। या यूँ कह लें की बच्चे को सर्दी के मौसम में अधिक देर तक diaper पहना के रखने के कुछ दुषप्रभाव भी है।
अक्सर सर्दियों में माँ-बाप बच्चों को कई दिनों तक लम्बे-लम्बे समय के लिए diaper पहना देते हैं।
लेकिन लम्बे समय तक बच्चे को लम्बे समय तक डायपर पहना के रखने से डायपर के नुकसान भी हैं।

लम्बे-लम्बे समय के लिए diaper पहना के रखने से बच्चे को Nappy Rash (डायपर रशेस) होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
यह है डायपर साइड इफेक्ट - जब बच्चों को बहुत लम्बे समय के लिए और बहुत दिनों तक डायपर पहना के रखा जाता है।
यही कारण है की सर्दी के मौसम में बच्चों को प्रायः डायपर के रैशेस (Nappy Rash) की समस्या से झूझते देखा गया है। अगर डायपर के नुकसान है तो उसके फायेदे भी हैं।
डायपर शिशु को ठण्ड के दिनों में भीगने से बचाता है और इस तरह बीमार होने से भी बचाता है।
अगर आप के शिशु को डायपर रशेस हो गया है तो परेशान होने की कोई आवशकता नहीं है। डायपर के दुवारा हुए स्किन एलर्जी का इलाज डायपर रैश क्रीम से आसानी से किया जा सकता है।

अगर आप के बच्चे को डायपर के रैशेस (Nappy Rash) हो गया है तो आप उसे झट से ठीक कर सकती हैं। जब बच्चों से सम्बंधित जरुरी चीज़ें खरीदती हैं जैसे की उसके लिए कपडे, खिलौने, strollers और Baby proofing वगैरह,
तो एक और महत्वपूर्ण वस्तु है,
जिसे,
आप को पहले से खरीद के रखने चाहिए।
वो है - 'nappy rash cream'। ठण्ड के दिनों में नवजात शिशु को डायपर से रैशेस (Nappy Rash) होना स्वभावक है और एक आम बात भी है।
अगर आप अपने शिशु को बल रोग विशेषज्ञ के पास भी ले के जाती हैं तो वो भी 'nappy rash cream' को हो prescribe करेगा।
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नवजात शिशु की त्वचा बहुत ही कोमल होती है। अधिक देर तक नमी के संपर्क में रहने से उसे bacterial या fungal infection लग जाता है।
Diaper rash क्रीम एक बहुत ही प्रभावी और सुरक्षित तरीका है शिशु को bacterial या fungal infection से बचाने का और डायपर के रैशेस (Nappy Rash) से सुरक्षित रखने का।
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यह एक बहुत ही आम समस्या है जिसे डायपर इस्तेमाल करने वाले लगभग हर शिशु में देखा जा सकता है। लेकिन इस समस्या के शिकार सबसे ज्यादा 6 – 12 months के बच्चे होते हैं।
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इसके लक्षण हलके से लेके गंभीर तक हो सकते हैं।

समझदारी इस बात में नहीं है की जब बच्चे को डायपर रैशेस (Nappy Rash) हो जाये तब उसका इलाज किया जाये - उसे Diaper rash क्रीम (nappy rash cream) लगाया जाये। बल्कि समझदारी तो इस बात में है की बच्चे को कभी डायपर रैशेस (Nappy Rash) होने ही नहीं दिया जाये।
लेकिन अगर बच्चे डायपर पहनेंगे तो उन्हें डायपर रैशेस (Nappy Rash) की सम्भावना तो बनी ही रहेगी।
इसके मतलब यह नहीं है की आप अपने बच्चे को डायपर पहनना छोड़ दें।

हर मां बाप अपनी तरफ से भरसक प्रयास करते हैं कि अपने बच्चों को वह सभी आहार प्रदान करें जिससे उनके बच्चे के शारीरिक आवश्यकता के अनुसार सभी पोषक तत्व मिल सके। पोषण से भरपूर आहार शिशु को सेहतमंद रखते हैं। लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़ों को देखें तो यह पता चलता है कि भारत में शिशु के भरपेट आहार करने के बावजूद भी वे पोषित रह जाते हैं। इसीलिए अगर आप अपने शिशु को भरपेट भोजन कराते हैं तो भी पता लगाने की आवश्यकता है कि आपके बच्चे को उसके आहार से सभी पोषक तत्व मिल पा रहे हैं या नहीं। अगर इस बात का पता चल जाए तो मुझे विश्वास है कि आप अपने शिशु को पोषक तत्वों से युक्त आहार देने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
UHT milk को अगर ना खोला कए तो यह साधारण कमरे के तापमान पे छेह महीनो तक सुरक्षित रहता है। यह इतने दिनों तक इस लिए सुरक्षित रह पता है क्योंकि इसे 135ºC (275°F) तापमान पे 2 से 4 सेकंड तक रखा जाता है जिससे की इसमें मौजूद सभी प्रकार के हानिकारक जीवाणु पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। फिर इन्हें इस तरह से एक विशेष प्रकार पे पैकिंग में पैक किया जाता है जिससे की दुबारा किसी भी तरह से कोई जीवाणु अंदर प्रवेश नहीं कर पाए। इसी वजह से अगर आप इसे ना खोले तो यह छेह महीनो तक भी सुरक्षित रहता है।
बच्चो में दांत सम्बंधी समस्या को लेकर अधिकांश माँ बाप परेशान रहते हैं। थोड़ी से सावधानी बारात कर आप अपने बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत को घर पे ही ठीक कर सकती हैं। चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए दांतों का बहुत ही महत्व होता है। इसीलिए अगर बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत हों तो माँ बाप का परेशान होना स्वाभाविक है। बच्चों के टेढ़े-मेढ़े दांत उनके चेहरे की खूबसूरती को ख़राब कर सकते हैं। इस लेख में हम आप को बताएँगे कुछ तरीके जिन्हें अगर आप करें तो आप के बच्चों के दांत नहीं आयेंगे टेढ़े-मेढ़े। इस लेख में हम आप को बताएँगे Safe Teething Remedies For Babies In Hindi.
बच्चों को UHT Milk दिया जा सकता है मगर नवजात शिशु को नहीं। UHT Milk को सुरक्षित रखने के लिए इसमें किसी भी प्रकार का preservative इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह बच्चों के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित है। चूँकि इसमें गाए के दूध की तरह अत्याधिक मात्र में पोषक तत्त्व होता है, नवजात शिशु का पाचन तत्त्व इसे आसानी से पचा नहीं सकता है।
आपके मन में यह सवाल आया होगा कि क्या शिशु का घुटने के बल चलने का कोई फायदा है? पैरों पर चलने से पहले बच्चों का घुटनों के बल चलना, प्राकृतिक का एक नियम है क्योंकि इससे शिशु के शारीर को अनेक प्रकार के स्वस्थ लाभ मिलते हैं जो उसके शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक विकास के लिए बहुत जरूरी है।
बच्चों का शारीर कमजोर होता है इस वजह से उन्हें संक्रमण आसानी से लग जाता है। यही कारण है की बच्चे आसानी से वायरल बुखार की चपेट पद जाते हैं। कुछ आसन घरेलु नुस्खों के दुवारा आप अपने बच्चों का वायरल फीवर का इलाज घर पर ही कर सकती हैं।
आसन घरेलु तरीके से पता कीजिये की गर्भ में लड़का है या लड़की (garbh me ladka ya ladki)। इस लेख में आप पढेंगी गर्भ में लड़का होने के लक्षण इन हिंदी (garbh me ladka hone ke lakshan/nishani in hindi)। सम्पूर्ण जनकरी आप को मिलेगी Pregnancy tips in hindi for baby boy से सम्बंधित। लड़का होने की दवा (ladka hone ki dawa) की भी जानकारी लेख के आंत में दी जाएगी।
बच्चे राष्ट्र के निर्माता होते हैं ,जिस देश के बच्चे जितने शक्तिशाली होंगे , वह देश उतना ही मजबूत होगा। बालदिवस के दिन देश के नागरिको का कर्त्तव्य है की वे बच्चों के अधिकारों का हनन न करें , बल्कि उनके अधिकारों की याद दिलाएं।देश के प्रत्येक बच्चे का मुख्य अधिकार शिक्षा ग्रहण कर अपना सम्पूर्ण विकास करना है , यह उनका मौलिक अधिकार है। - children's day essay in hindi
बच्चों को सर्दी जुकाम बुखार, और इसके चाहे जो भी लक्षण हो, जुकाम के घरेलू नुस्खे बच्चों को तुरंत राहत पहुंचाएंगे। सबसे अच्छी बात यह ही की सर्दी बुखार की दवा की तरह इनके कोई side effects नहीं हैं। क्योँकि जुकाम के ये घरेलू नुस्खे पूरी तरह से प्राकृतिक हैं।
चिकनगुनिया का प्रकोप भारत के कई राज्योँ में फ़ैल रहा है। इसके लक्षण बहुत ही भ्रमित कर देने वाले हैं। ऐसा इस लिए क्योँकि इसके लक्षण बहुत हद तक मलेरिया से मिलते जुलते हैं।
छोटे बच्चों को पेट दर्द कई कारणों से हो सकता है। शिशु के पेट दर्द का कारण मात्र कब्ज है नहीं है। बच्चे के पेट दर्द का सही कारण पता होने पे बच्चे का सही इलाज किया जा सकता है।
Indian baby sleep chart से इस बात का पता लगाया जा सकता है की भारतीय बच्चे को कितना सोने की आवश्यकता है।। बच्चों का sleeping pattern, बहुत ही अलग होता है बड़ों के sleeping pattern की तुलना मैं। सोते समय नींद की एक अवस्था होती है जिसे rapid-eye-movement (REM) sleep कहा जाता है। यह अवस्था बच्चे के शारीरिक और दिमागी विकास के लहजे से बहुत महत्वपूर्ण है।
अलग-अलग सांस्कृतिक समूहों के बच्चे में व्यवहारिक होने की छमता भिन भिन होती है| जिन सांस्कृतिक समूहों में बड़े ज्यादा सतर्क होते हैं उन समूहों के बच्चे भी व्याहारिक होने में सतर्कता बरतते हैं और यह व्यहार उनमे आक्रामक व्यवहार पैदा करती है।
भारत में रागी को finger millet या red millet भी कहते हैं। रागी को मुख्यता महाराष्ट्र और कर्नाटक में पकाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे नाचनी भी कहा जाता है। रागी से बना शिशु आहार (baby food) बड़ी सरलता से बच्चों में पच जाता है और पौष्टिक तत्वों के मामले में इसका कोई मुकाबला नहीं।
जन्म के समय जिन बच्चों का वजन 2 किलो से कम रहता है उन बच्चों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम रहती है| इसकी वजह से संक्रमणजनित कई प्रकार के रोगों से बच्चे को खतरा बना रहता है|
हर मां बाप चाहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ाई में तेज निकले। लेकिन शिशु की बौद्धिक क्षमता कई बातों पर निर्भर करती है जिस में से एक है शिशु का पोषण।अगर एक शोध की मानें तो फल और सब्जियां प्राकृतिक रूप से जितनी रंगीन होती हैं वे उतना ही ज्यादा स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। रंग बिरंगी फल और सब्जियों में भरपूर मात्रा में बीटा-कैरोटीन, वीटामिन-बी, विटामिन-सी के साथ साथ और भी कई प्रकार के पोषक तत्व होते हैं।
छोटे बच्चे खाना खाने में बहुत नखरा करते हैं। माँ-बाप की सबसे बड़ी चिंता इस बात की रहती है की बच्चों का भूख कैसे बढाया जाये। इस लेख में आप जानेगी हर उस पहलु के बारे मैं जिसकी वजह से बच्चों को भूख कम लगती है। साथ ही हम उन तमाम घरेलु तरीकों के बारे में चर्चा करेंगे जिसकी मदद से आप अपने बच्चों के भूख को प्राकृतिक तरीके से बढ़ा सकेंगी।
ज़्यादातर 1 से 10 साल की उम्र के बीच के बच्चे चिकन पॉक्स से ग्रसित होते है| चिकन पॉक्स से संक्रमित बच्चे के पूरे शरीर में फुंसियों जैसी चक्तियाँ विकसित होती हैं। यह दिखने में खसरे की बीमारी की तरह लगती है। बच्चे को इस बीमारी में खुजली करने का बहुत मन करता है, चिकन पॉक्स में खांसी और बहती नाक के लक्षण भी दिखाई देते हैं। यह एक छूत की बीमारी होती है इसीलिए संक्रमित बच्चों को घर में ही रखना चाहिए जबतक की पूरी तरह ठीक न हो जाये|
चेचक को बड़ी माता और छोटी माता के नाम से भी जाना जाता है। बच्चों में चेचक बीमारी के वायरस थूक, यूरिन और नाखूनों आदि में पाएं जाते हैं। यह वायरस हवा में घुलकर साँस के द्वारा बच्चे के शरीर में आसानी से प्रवेश करते हैं। इस रोग को आयुर्वेद में मसूरिका के नाम से भी जाना जाता है।