Category: शिशु रोग
By: Salan Khalkho | ☺2 min read
Ambroxol Hydrochloride - सर्दी में शिशु को दिया जाने वाला एक आम दावा है। मगर इस दावा के कुछ घम्भीर (side effects) भी हैं। जानिए की कब Ambroxol Hydrochloride को देना हो सकता है खतरनाक।

क्या आप ने भी यह गलती किया है?
बच्चे को सर्दी लगी नहीं की कुछ माँ-बाप खुद डॉक्टर बन अपने बच्चों को Ambroxol hydrochloride पिलाना शुरू कर देते हैं।
यह एक ऐसी दवा है जो हर बाल रोग विशेषज्ञ सर्दी लगने पे कभी-न-कभी हर बच्चे को recommend करते हैं।
लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है की आप अपने बच्चे को अब हमेशा उसे बिना डॉक्टर के परामर्श के देना प्रारम्भ कर दें।
Ambroxol hydrochloride एक ऐसी दवा है जो chest congestion और उससे सम्बंधित विकार जैसे की ब्रोंकाइटिस, न्यूमोनिया और ब्रोन्कोस्पासम् का सफल उपचार करता है। यह दवा mucolytics नामक दवाओं के एक वर्ग का हिस्सा है। यह छाती के बलगम को पतला करके chest congestion को कम करता है। इस दावा का इस्तेमाल अमेरिका में अब नहीं होता है, मगर भारत में इसका इस्तेलम अभी भी किया जाता है।
अगर आप अपने शिशु को Ambroxol hydrochloride देना चाहती हैं तो इसके दुष्प्रभावों के बारे में अपने डोक्टर से अवश्य चर्चा कर लें।
येहाँ हम आपको Ambroxol hydrochloride के कुछ दुष्प्रभावों के बारे में बताएँगे।
अम्ब्रोक्सॉल हाइड्रोक्लोराइड की गोलियां या सिरप के रूप में मौखिक इस्तेमाल से कुछ रोगियों को अपच की समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके दुष्प्रभावों में मतली या अपच भी शामिल हो सकते हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार इसके सेवन से कुछ बच्चों भूख कम लगता है या नहीं लगता है। Ambroxol hydrochloride के इस side affect से बचने के लिए डोक्टर इस दावा को भोजन के साथ देने की सलाह देते हैं। इस दवा को लेने से कुछ बच्चों में गंभीर मितली या उल्टी का भी सामना करना पड़ सकता है। ऐसी परिस्थिति में डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए।
Ambroxol hydrochloride से इलाज करने पे कुछ बच्चों में bowel movement में परिवर्तन पाया गया है जिसकी वजह से कुछ बच्चों को दस्त (frequent bowel movement) भी हो सकता है। जिन बच्चों में यह समस्या होती है उन बच्चों को पेट से सम्बंधित और भी दुसरे समस्या का सामना करना पड़ सकता है जैसे की आप के शिशु को ऐसा लग सकता है की उसका पेट भरा है, ये फिर पेट दर्द, या ऐठन की भी समस्या हो सकती है। अधिकतर रोगियों में, पेटों के ये दुष्प्रभाव आम तौर पर हल्के होते हैं। मगर कभी कभी स्थिति गंभीर भी हो सकती है। उदाहरण के तौर पे लगातार या गंभीर दस्त से रोगी का शरीर बहुत अधिक पानी खो सकता है और ये उसके लिए निर्जलीकरण का कारण बन सकता है। Ambroxol hydrochloride देने पे अगर आप के बच्चे को चक्कर आये, थकान लगे या उसे बहुत प्यास लगे तो तुरंत बच्चों के डाक्टर से संपर्क करें।
कुछ बहुत ही दुर्लभ मामलों में Ambroxol hydrochloride के इस्तेमाल से बच्चे को एलर्जी reaction का सामना करना पड़ सकता है। इस दावा के सेवन से होने वाले एलर्जी reaction से त्वचा लाल हो सकती है और उनमे खुजली का एहसास हो सकता है। इसके साथ ही शिशु को साँस लेने में कठिनाई, चेहरे पे सुजन, या आहार घोटने में दिक्कत हो सकती है। ऐसी कोई भी लक्षण अगर आप अपने बच्चे में देखें तो तुरंत बच्चे को अस्पताल ले के जाएँ और डोक्टर से संपर्क करें - यह एक medical emmergency भी हो सकता है।
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जानिए की आप अपनी त्वचा की देखभाल किस तरह कर सकती हैं की उन पर झुर्रियां आसानी से ना पड़े। अगर ये घरेलु नुस्खे आप हर दिन आजमाएंगी तो आप की त्वचा आने वाले समय में अपने उम्र से काफी ज्यादा कम लगेंगे।
8 लक्षण जो बताएं की बच्चे में बाइपोलर डिसऑर्डर है। किसी बच्चे के व्यवहार को देखकर इस निष्कर्ष पर पहुंचना कि उस शिशु को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder), गलत होगा। चिकित्सीय जांच के द्वारा ही एक विशेषज्ञ (psychiatrist) इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि बच्चे को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) है या नहीं।
गर्भावस्था में ब्लड प्रेशर का उतार चढाव, माँ और बच्चे दोनों के लिए घातक हो सकता है। हाई ब्लड प्रेशर में बिस्तर पर आराम करना चाहिए। सादा और सरल भोजन करना चाहिए। पानी और तरल का अत्याधिक सेवन करना चाहिए। नमक का सेवन सिमित मात्र में करना चाहिए। लौकी का रस खाली पेट पिने से प्रेगनेंसी में बीपी की समस्या को कण्ट्रोल किया जा सकता है।
गर्भावस्था के दौरान अपच का होना आम बात है। लेकिन प्रेगनेंसी में (बिना सोचे समझे) अपच की की दावा लेना हानिकारक हो सकता है। इस लेख में आप पढ़ेंगी की गर्भावस्था के दौरान अपच क्योँ होता है और आप घरेलु तरीके से अपच की समस्या को कैसे हल कर सकती हैं। आप ये भी पढ़ेंगी की अपच की दावा (antacids) खाते वक्त आप को क्या सावधानियां बरतने की आवश्यकता है।
गर्भवती महिला में उल्टी और मतली का आना डोक्टर अच्छा संकेत मानते हैं। इसे मोर्निंग सिकनेस भी कहते हैं और इसकी वजह है स्त्री के शारीर में प्रेगनेंसी हॉर्मोन (hCG) का बनना। जाने क्योँ जरुरी है गर्भावस्था में उल्टी और मतली के लक्षण और इसके ना होने से गर्भावस्था को क्या नुक्सान पहुँच सकता है।
ADHD से प्रभावित बच्चे को ध्यान केन्द्रित करने या नियमों का पालन करने में समस्या होती है। उन्हें डांटे नहीं। ये अपने असहज सवभाव को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं जैसे की एक कमरे से दुसरे कमरे में बिना वजह दौड़ना, वार्तालाप के दौरान बीच-बीच में बात काटना, आदि। लेकिन थोड़े समझ के साथ आप एडीएचडी (ADHD) से पीड़ित बच्चों को व्याहारिक तौर पे बेहतर बना सकती हैं।
बाल रोग विशेषज्ञों के अनुसार, अगर शिशु को एलर्जी नहीं है, तो आप उसे 6 महीने की उम्र से ही अंडा खिला सकती हैं। अंडे की पिली जर्दी, विटामिन और मिनिरल का बेहतरीन स्रोत है। इससे शिशु को वासा और कोलेस्ट्रॉल, जो उसके विकास के लिए इस समय बहुत जरुरी है, भी मिलता है।
बच्चों को ठण्ड के दिनों में सर्दी और जुकाम लगना आम बात है। लेकिन बच्चों में 12 तरीके से आप खांसी का घरेलु उपचार कर सकती है (khansi ka gharelu upchar)। सर्दी और जुकाम में अक्सर शिशु के शरीर का तापमान बढ़ जाता है। यह एक अच्छा संकेत हैं क्योँकि इसका मतलब यह है की बच्चे का शरीर सर्दी और जुखाम के संक्रमण से लड़ रहा है। कुछ घरेलु तरीकों से आप शिशु के शारीर की सहायता कर सकती हैं ताकि वो संक्रमण से लड़ सके।
शिशु को 10 सप्ताह (ढाई माह) की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को कई प्रकार के खतरनाक बिमारिओं से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
शिशु को डेढ़ माह (six weeks) की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को कई प्रकार के खतरनाक बिमारिओं से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
चिकनगुनिया का प्रकोप भारत के कई राज्योँ में फ़ैल रहा है। इसके लक्षण बहुत ही भ्रमित कर देने वाले हैं। ऐसा इस लिए क्योँकि इसके लक्षण बहुत हद तक मलेरिया से मिलते जुलते हैं।
शिशु को बहुत छोटी उम्र में आइस क्रीम (ice-cream) नहीं देना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योँकि नवजात शिशु से ले कर एक साल तक की उम्र के बच्चों का शरीर इतना विकसित नहीं होता ही वो अपने शरीर का तापमान वयस्कों की तरह नियंत्रित कर सकें। इसलिए यह जाना बेहद जरुरी है की बच्चे को किस उम्र में आइस क्रीम (ice-cream) दिया जा सकता है।
आप के शिशु को अगर किसी विशेष आहार से एलर्जी है तो आप को कुछ बातों का ख्याल रखना पड़ेगा ताकि आप का शिशु स्वस्थ रहे और सुरक्षित रहे। मगर कभी medical इमरजेंसी हो जाये तो आप को क्या करना चाहिए?
क्या आप का शिशु potty (Pooping) करते वक्त रोता है। मल त्याग करते वक्त शिशु के रोने के कई कारण हो सकते हैं। अगर आप को इन कारणों का पता होगा तो आप अपने शिशु को potty करते वक्त होने वाले दर्द और तकलीफ से बचा सकती है। अगर potty करते वक्त आप के शिशु को दर्द नहीं होगा तो वो रोयेगा भी नहीं।
स्मार्ट फ़ोन के जरिये माँ-बाप अपने बच्चे के संपर्क में २४ घंटे रह सकते हैं| बच्चे अगर स्मार्ट फ़ोन का इस्तेमाल समझदारी से करे तो वो इसका इस्तेमाल अपने पढ़ाई में भी कर सकते हैं| मगर अधिकांश घटनाओं में बच्चे स्मार्ट फ़ोन का इस्तेमाल समझदारी से नहीं करते हैं और तमाम समस्याओं का सामना उन्हें करना पड़ता है|
Beta carotene भरपूर, शकरकंद शिशु की सेहत और अच्छी विकास के लिए बहुत अच्छा है| जानिए इस step-by-step instructions के जरिये की आप घर पे अपने शिशु के लिए कैसे शकरकंद की प्यूरी बना सकते हैं| शिशु आहार - baby food
गर्मियों में नाजुक सी जान का ख्याल रखना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। मगर थोड़ी से समझ बुझ से काम लें तो आप अपने नवजात शिशु को गर्मियों के मौसम में स्वस्थ और खुशमिजाज रख पाएंगी।
सेब और चावल के पौष्टिक गुणों से भर पूर यह शिशु आहार बच्चों को बहुत पसंद आता है। सेब में वो अधिकांश पोषक तत्त्व पाए जाते हैं जो आप के शिशु के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उसे स्वस्थ रहने में सहायक हैं।
मसाज तथा मसाज में इस्तेमाल तेल के कई फायदे हैं बच्चों को। मालिश शिशु को आरामदायक नींद देता है। इसके साथ मसाज के और भी कई गुण हैं जैसे की मसाज बच्चे के वजन बढ़ने में मदद करा है, हड़ियों को मजबूत करता है, भोजन को पचने में मदद करता है और रक्त के प्रवाह में सुधार लता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2050 तक दुनिया के लगभग आधे बच्चों को किसी न किसी प्रकार की एलर्जी होगा। जन्म के समय जिन बच्चों का भार कम होता है, उन बच्चों में इस रोग की संभावना अधिक होती है क्यों कि ये बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें सबसे आम दमा, एक्जिमा, पित्ती (त्वचा पर चकत्ते) और भोजन से संबंधित हैं।