Category: स्वस्थ शरीर
By: Admin | ☺10 min read
बच्चे की ADHD या ADD की समस्या को दुश्मन बनाइये - बच्चे को नहीं। कुछ आसन नियमों के दुवारा आप अपने बच्चे के मुश्किल स्वाभाव को नियंत्रित कर सकती हैं। ADHD या ADD बच्चों की परवरिश के लिए माँ-बाप को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

अधिकांश माँ-बाप अपने बच्चों को बेहतर तरह से संभल लेते हैं।
लेकिन अगर आप के बच्चे को ध्यान केंद्रित करने से सम्बंधित समस्या है जैसे की ADHD या ADD - तो फिर सिर्फ बेहतर होने से काम नहीं चलेगा।
इस बात को सुनिश्चित करने के लिए की आप का बच्चा खुश रहे, मौजूद वातावरण में अपने आप को सरलता से ढाल सके और घर के माहौल को उसके अनुकूल बनाने के लिए आप को केवल एक बेहतर माँ-बाप ही नहीं वरन उससे कहीं ज्यादा बढ़ कर बनना होगा।

ख़ुशी की बात ये है की ये सब उतना मुश्किल नहीं है जितना की आप को लग रहा होगा। दैनिक रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ छोटे-मोठे बदलाव कर के आप अपने बच्चे के लिए घर पे उचित माहौल त्यार कर सकती हैं।
इस लेख में हम चर्चा करेंगे की बच्चे के लिए अनुकूल माहौल त्यार करने के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं।
हर बच्चे में कुछ न कुछ कमी होती है और उसमे कोई न कोई ताकत होती है। कोई माँ-बाप अपने बच्चे की कमी को देखना नहीं चाहते हैं। लेकिन इस सच्चाई को अपनाने में आप जितना आप देर करेंगी उतना नुक्सान आप के बच्चे का होगा।

अगर आप के बच्चे को ADHD या ADD है तो निराश नहीं हों। आप के बच्चे में कोई कमी नहीं है। लेकिन बस अंतर इतना है की उसके मस्तिष्क के काम करने का तरीका दुसरे बच्चों से अलग है। यही उसकी ताकत है और उसकी कमजोरी भी।
अगर आप चाहती हैं की आप का बच्चा दुसरे बच्चों की तरह confident बने तो आप को उसकी कमजोरियोँ को नजरअंदाज करना पड़ेगा। ADHD या ADD बच्चों की जिन कमजोरियोँ पे आप को झुंझुलाहट हो या गुस्सा आये, उनपर बच्चों का कोई अधिकार ही नहीं होता है।
यही कारण है की आप इन बच्चों को डांट के ठीक नहीं कर सकती हैं। लेकिन अफ़सोस की बात ये है की डांटने से इन बच्चों का मनोबल कम हो जाता है। और ये दुसरे बच्चों से अपने आप को कम महसूस करने लगते हैं।
सच बात तो ये है की इन बच्चों में असीम ऊर्जा होती है, तथा रचनात्मक और पारस्परिक कौशल में इन बच्चों का कोई मुकाबला नहीं होता है।

अपने बच्चे की कमजोरी की बजाये उसकी ताकत को देखिये। आप के बच्चे के लिए वो सब मुमकिन है जो दुसरे शांत स्वाभाव के और ज्यादा समझदार दिखने वाले बच्चों के लिए मुमकिन नहीं है।
ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जहाँ बहुत ऊर्जा की जरुरत पड़ती है और रचनात्मक दृष्टिकोण की जरुरत।
ऐसे क्षेत्रों में ये बच्चे सफलता की बुलंदियों को छूते हैं। अपने बच्चे की काबिलियत पे विश्वास कीजिये और उसके साथ वैसा ही बर्ताव कीजिये।
सुनने में ये शायद आप को अटपटा लगे लेकिन अगर आप चाहती हैं की आप का बच्चे का विकास दुसरे सामान्य बच्चों की तरह हो तो स्कूल से मिलने वाली बहुत सी शिकायतों को नजरअंदाज करने की आदत दाल लीजिये।

उदहारण के लिए अगर आप के बच्चे की टीचर या स्कूल के दुसरे कर्मचारी ये कहते हैं की आप का बच्चा पढाई में मन नहीं लगता है या पढाई में कमजोर है तो बच्चे को डांटे नहीं।
आप अपनी तरफ से वो सबकुछ करिये जो कर सकती हैं की आप का बच्चा पढाई में अच्छे नंबर ला सके। लेकिन अगर वो पढाई में अच्छा नहीं करता है तो उसे डांटिए भी नहीं।
डांटने से किसी भी बच्चे की ADHD या ADD की समस्या समाप्त नहीं होती है। हाँ, समस्या बढ़ जरूर सकती है। आप का कदम समस्या घटाने का होना चाहिए, बढ़ने का नहीं।
अपने बच्चे से कोई ऐसी बात न करें की उसमे हीन भावना पनपे, या उसे शर्मिंदा महसूस होना पड़े। आप का बच्चा पहले से ही ADHD या ADD की समस्या से जूझ रहा है।
आप उसके साथ अगर कड़ा रुख अपनाएंगी तो उसे लगेगा की कोई भी उसकी समस्या को समझ नहीं सकता है।

पढाई में आप के बच्चे को ज्यादा सहारे की जरुरत है (लेकिन प्यार से)। दुसरे बच्चों के मुकाबले अगर इन बच्चों ज्यादा पढाई में सपोर्ट मिले तो ये बच्चे बेहतर प्रदर्शन करना सिख लेते हैं।
जिस तरह से अस्थमा से पीड़ित बच्चे को साँस लेने में सहायता की आवश्यकता पड़ती है, और जिस तरह से मधुमेह के मरीज को इन्सुलिन के सहारे की जरुरत पड़ती है - ठीक उसी तरह से ADHD या ADD बच्चे के सिखने में मदद की जरुरत पड़ती है।
जरुरी नहीं की आप के बच्चे का IQ लेवल कम है, हो सकता है की उसका IQ लेवल दुसरे बच्चों से ज्यादा ही हो। बस अंतर इस बात का है की इन बच्चों के दिमाग के काम करने का तरीका दुसरे बच्चों से अलग है।
इसमें कोई दो राय नहीं है की ADHD या ADD बच्चों के लिए दवाएं बहुत महत्वपूर्ण है। सही दवाओं के मिलने पे ये बच्चों की ADHD या ADD की समस्या को बहुत हद तक कम कर देती हैं।

लेकिन इसका मतलब ये नहीं की आप अपने बच्चे को दुसरे बच्चों की तरह तुलना करना शुरू कर दें। उदाहरण के लिए अगर आप का बच्चा उन चीज़ों को बार बार करता है जिन्हे की आप उसे करने के लिए मन किये हैं तो दवा देने के बाद आप ये न समझे की अब आप का बच्चा आप की बात मानने लगेगा।
समस्या बात मानने या न-मानने की नहीं है। दवा कुछ समय के लिए बच्चे के बर्ताव को नियंत्रित करेगा। उसके ADHD या ADD की समस्या को समाप्त नहीं करेगा।
आप दवाओं के डोज़ को कभी न बढ़ाएं। आप का यह सोचना की दवाओं के डोज़ को बढ़ा देने से साडी समस्या समाप्त हो जाएगी, गलत है।

आप कभी भी बच्चों को दवाओं को ले कर धमकियाँ न दें। उन्हें ये न बोलें की अगर वे बात नहीं मानेंगे तो आप उनकी दवा का डोज़ बढ़ा देंगे। इससे बच्चे के मस्तिष्क को गलत सन्देश मिलता है। आप के बच्चे के मन में यह भावना पनपेगी की वो दुसरे बच्चों की तरह सामान्य नहीं है।
दवाएं ADHD या ADD बच्चे के अंदर की अच्छे व्यवहार को उभारता है लेकिन सारी समस्या को जादुई तरीके से समाप्त नहीं कर देता है।
क्या आप ने कभी किसी अभिभावक को यह शिकायत करते सुना है की मैं अपने बच्चे को डांटी, मारी, उस पे चिल्लाई, रोई, यहां तक की प्यार से अनुरोध तक किया लेकिन बच्चे पे कोई फर्क नहीं पड़ा।
समस्या यहीं पे है। जो सबसे कारगर तरीका है, उसके बारे में तो आप ने सोचा भी नहीं। - बच्चे में जो भी थोड़ा बहुत अच्छी बातें हैं उसके लिए कभी प्रोत्साहित नहीं किया गया, उसकी कभी भी तारीफ नहीं की गयी।

सिर्फ डांटने से बच्चे को लगेगा की यही तरीका है बड़ों के बर्ताव करने का। लेकिन जो मुख्या बात है वो बच्चा कभी नहीं सीखेगा।
मुख्या बात है बच्चे में गलत और सही का भेद करना सीखना। इस बात का एहसास होना की उनके काम का बड़ों के व्यहार पे प्रभाव पड़ता है।
जब वे अच्छा काम करते हैं तो बड़ों पे उसका अच्छा प्रभाव पड़ता है और जब वे बुरा काम करते हैं तो वो काम बड़ों को पसंद नहीं आता है।

इस तरह से कुछ समय बाद बच्चे अच्छे और बुरे काम में भेद करना सिख जाते हैं।
सजा का अपना एक महत्व है। लेकिन सजा कभी भी मारने या डांटने के रूप में न हो। यह हमेशा आखरी रास्ता हो।
ADHD या ADD बच्चे के स्वाभाव को नियंत्रित करने और उन्हें अनुशाषित करने का सबसे बढ़िया तरीके है की उनकी उम्र के अनुसार उन्हें ऐसे लक्ष्य दिए जाएँ जो वे आसानी से पूरा कर सके। पूरा करने पर आप उन्हें इनाम दें जिससे की उन्हें प्रोत्साहन मिले। उन्हें लगे की उन्होंने कुछ हासिल किया है।
अपने बच्चे को उसकी ADHD या ADD की समस्या से उपजे व्यवहार के लिए सजा न दें। आप को यह समझने की आवश्यकता है की उसका यह व्यवहार उसकी नियंत्रण से बाहर है।

क्या यह उचित होगा की आप 10 साल के बच्चे को बोलें की वह अपना बिस्तर खुद बनाये? अब कल्पना कीजिये की कुछ समय बाद आप बच्चे को बिना बने बिस्तर पे खेलते हुए पाएं, तो क्या यह उचित होगा की आप उसे डांटे?
ठीक उसी तरह जिस तरह बच्चे की उम्र के अनुसार आप उससे उपेक्षा करती हैं, बच्चे की ADHD या ADD की समस्या को ध्यान में रख कर आप उससे उपेक्षा करें। जो व्यवहार उसकी नियंत्रण में नहीं है उसके लिए आप उसे न डांटे।

ADHD या ADD की समस्या से ग्रसित बच्चे इसलिए आप की बात को नजर अंदाज [नहीं] कर देते हैं की वे जिद्दी है - बल्कि वे आप की बात को मानने से चूक जाते हैं क्योँकि उनकी समस्या ये है की उनका ध्यान बहुत जल्दी और बहुत आसानी से भटक जाता है।
उनका यह स्वाभाव उनकी नियंत्रण से बाहर है। उसकी इस व्यवहार के लिए जब आप उसे बार-बार सजा देती हैं तो कुछ समय बाद आप की आज्ञा मानने की उनकी इक्षा समाप्त हो जाती है। आप से अच्छे व्यवहार की उनकी उम्मीद भी ख़त्म हो जाती है।
ऐसी स्थिति का सबसे अच्छा हल ये है की आप बस अपने बच्चे को फिर से याद दिला दें।
क्या आप ने कभी किसी माँ को यह कहते सुना है की अगर टीचर बच्चों को अनुशाशन में रखना जानती तो हमारी बच्ची नहीं बिगड़ती, या स्कूल बस का ड्राइवर बच्चों को नियंत्रित करना नहीं जनता है।

अगर आप अपने बच्चे की गलतियोँ के लिए दूसरों पे दोषारोपण करती रहेंगी तो आप के बच्चे पे इसका गलत असर पड़ेगा।
आप के बच्चे को लगेगा की गलतियों को क्योँ सुधारा जाये जब की यह बड़ों की जिम्मेदारी है। आप का बच्चा अपने सारी गलतियोँ के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराना सीखेगा। और वो ये सब सीखेगा आप से।
अगर आप हर समय बच्चे को कोसती रहेंगी तो आप का बच्चा आप की बात पे विश्वास करना शुरू कर देगा। आप चाहे कितना भी परेशां हो, अपने बच्चे को कभी भी आलसी न कहें। बच्चे को कुछ भी ऐसा न कहें जिससे की उसका मनोबल कम हो।

उदाहरण के लिए अपने बच्चे को यह कहने की बजाये की "तुम कितने आलसी की तुम अपना कमरा भी साफ नहीं कर सकते" यह कहिये "तुम्हारा कमरा कितना गन्दा हो गया है, मुझे दर है की कहीं तुम खिलौनों पे फिसल के गिर न जाओ - चलो मिल कर ठीक करते हैं"।
चाहे आप के बच्चे का व्यवहार कितना भी निराशाजनक क्योँ न हो - आप को इस बात का ध्यान रखना है की ADHD या ADD समस्या है - आप का बच्चा नहीं। आप को अपने बच्चे के साथ मिल कर उसकी इस समस्या से लड़ना है।
कुछ माँ-बाप आदतन बच्चे की हर बात को "ना" कह कर टाल देते हैं। वे यह जानने की जेहमत नहीं उठाते हैं की जो बच्चा कह रहा है उसमे हाँ कहने से कोई हानी नहीं है।
इसका नतीजा यह होता है की जो बच्चे आवेग में आ कर काम करते हैं जैसे की ADHD या ADD की समस्या से ग्रसित बच्चे, वे माँ-बाप की बातों का विद्रोह करना सिख जाते हैं।

बच्चे की हर बात का उत्तर "ना" में नहीं दें। अगर आप का बच्चा कुछ करने के लिए आप की आज्ञा मांगे तो आप उसे " हाँ " में उत्तर दें। केवल उन कामों के लिए " ना " कहें जिन्हे करने से कोई खतरा हो। आप अपनी विवेक का भी इस्तेमाल कर सकती हैं।
उदाहर के लिए अगर आप का बच्चा बाहर जो कर खेलना चाहता है। मगर आप चाहती है की वो बैठकर अपना होमवर्क पूरा करे।

ऐसी स्थिति में " नहीं " कहने की बजाये आप बच्चे के साथ बातचीत से हल नकलें की किस तरह उसका खेलना भी हो जाये और उसका होमवर्क भी पूरा हो जाये। इस तरह से आप का बच्चा आप की बात मानने में ज्यादा सहयोग करेगा।
हर बच्चे में कुछ अच्छाई तो कुछ बुराई होती है। अपने बच्चे की बुरी आदतों को ख़तम करने की होड़ में आप उसकी अच्छी आदतों को नजरअंदाज न करें।
कुछ माँ-बाप को बच्चे में केवल बुराई ही दिखती है। ऐसे बच्चों में कुछ समय के बाद हीन भावना पनपने लगती है।

जब आप बच्चे की बुरी आदतों के लिए डांटती है तो उसकी अच्छी आदतों के लिए सराहें भी। इससे आप का बच्चा सीखेगा की आप को कौन से बात अच्छी लगती है और कौन से बात नहीं।
अपने बच्चे के साथ हर दिन कुछ समय हंसी-खेल में बिताएं।
माँ-बाप सबसे ज्यादा बच्चों के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। बच्चे हर वक्त आप के स्वाभाव को देखते हैं - उस वक्त भी जब आप को लगे की वे अपने खेल में मग्न हैं।
पति-पत्नी के बीच क्या बात चल रही है, बच्चे बड़े ध्यान से सुनते हैं, उस वक्त भी जब आप को लगे की बच्चे दुसरे काम में बहुत मग्न हैं।

अपने व्यवहार से बच्चे के सामने एक अच्छा आदर्श प्रस्तुत करें। पति-पत्नी आपस में लड़ें नहीं।
बच्चे के व्यहार से अगर आप को बहुत गुस्सा आये तो आप अपना सयम न खोएं, धीरज से काम लें। बच्चे पे चिल्लाने की बजाये ठंडी साँस लें और कुछ देर के लिए कमरे से बाहर चले जाएँ। या फिर कुछ ऐसा करें जिससे की आप का गुस्सा शांत हो जाये। आप का बच्चा "गुस्से पे नियंत्रण रखने" के महत्व को को सीखेगा।
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        बच्चों को UHT Milk दिया जा सकता है मगर नवजात शिशु को नहीं। UHT Milk को सुरक्षित रखने के लिए इसमें किसी भी प्रकार का preservative इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह बच्चों के लिए पूर्ण रूप से सुरक्षित है। चूँकि इसमें गाए के दूध की तरह अत्याधिक मात्र में पोषक तत्त्व होता है, नवजात शिशु का पाचन तत्त्व इसे आसानी से पचा नहीं सकता है।   महिलाओं में गर्भधारण न कर पाने की समस्या बहुत से कारणों से हो सकती है। अगर आप आने वाले दिनों में प्रेगनेंसी प्लान कर रहे हैं तो हम आपको बताएंगे कुछ बातें जिनका आपको खास ध्यान रखने की जरूरत है। लाइफस्टाइल के अलावा और भी कुछ कारण है जिनकी वजह से बहुत सारी महिलाएं कंसीव नहीं कर पाती हैं।
        महिलाओं में गर्भधारण न कर पाने की समस्या बहुत से कारणों से हो सकती है। अगर आप आने वाले दिनों में प्रेगनेंसी प्लान कर रहे हैं तो हम आपको बताएंगे कुछ बातें जिनका आपको खास ध्यान रखने की जरूरत है। लाइफस्टाइल के अलावा और भी कुछ कारण है जिनकी वजह से बहुत सारी महिलाएं कंसीव नहीं कर पाती हैं।  सुपरफूड हम उन आहारों को बोलते हैं जिनके अंदर प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। सुपर फ़ूड शिशु के अच्छी शारीरिक और मानसिक विकास में बहुत पूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये बच्चों को वो सभी पोषक तत्व प्रदान करते हैं जो शिशु के शारीर को अच्छी विकास के लिए जरुरी होता है।
        सुपरफूड हम उन आहारों को बोलते हैं जिनके अंदर प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। सुपर फ़ूड शिशु के अच्छी शारीरिक और मानसिक विकास में बहुत पूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये बच्चों को वो सभी पोषक तत्व प्रदान करते हैं जो शिशु के शारीर को अच्छी विकास के लिए जरुरी होता है।
  गर्भावस्था के दौरान मां और उसके गर्भ में पल रहे शिशु के लिए विटामिंस बहुत आवश्यक होते हैं। लेकिन इनकी अत्यधिक मात्रा गर्भ में पल रहे शिशु तथा मां दोनों की सेहत के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है। इसीलिए गर्भावस्था के दौरान अधिक मात्रा में मल्टीविटामिन लेने से बचें। डॉक्टरों से संपर्क करें और उनके द्वारा बताए गए निश्चित मात्रा में ही विटामिन का सेवन करें। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि गर्भावस्था के दौरान अधिक मात्रा में मल्टीविटामिन लेने के कौन-कौन से नुकसान हो सकते हैं।
        गर्भावस्था के दौरान मां और उसके गर्भ में पल रहे शिशु के लिए विटामिंस बहुत आवश्यक होते हैं। लेकिन इनकी अत्यधिक मात्रा गर्भ में पल रहे शिशु तथा मां दोनों की सेहत के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है। इसीलिए गर्भावस्था के दौरान अधिक मात्रा में मल्टीविटामिन लेने से बचें। डॉक्टरों से संपर्क करें और उनके द्वारा बताए गए निश्चित मात्रा में ही विटामिन का सेवन करें। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि गर्भावस्था के दौरान अधिक मात्रा में मल्टीविटामिन लेने के कौन-कौन से नुकसान हो सकते हैं।  गर्भपात बाँझपन नहीं है और इसीलिए आप को गर्भपात के बाद गर्भधारण करने के लिए डरने की आवश्यकता नहीं है। कुछ विशेष सावधानियां बारात कर आप आप दुबारा से गर्भवती हो सकती हैं और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं। इसके लिए आप को लम्बे समय तक इन्तेजार करने की भी आवश्यकता नहीं है।
        गर्भपात बाँझपन नहीं है और इसीलिए आप को गर्भपात के बाद गर्भधारण करने के लिए डरने की आवश्यकता नहीं है। कुछ विशेष सावधानियां बारात कर आप आप दुबारा से गर्भवती हो सकती हैं और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती हैं। इसके लिए आप को लम्बे समय तक इन्तेजार करने की भी आवश्यकता नहीं है।   बचपन में अधिकांश बच्चे तुतलाते हैं। लेकिन पांच वर्ष के बाद भी अगर आप का बच्चा तुतलाता है तो बच्चे को घरेलु उपचार और स्पीच थेरापिस्ट (speech therapist) के दुवारा इलाज की जरुरत है नहीं तो बड़े होने पे भी तुतलाहट की समस्या बनी रहने की सम्भावना है। इस लेख में आप पढेंगे की किस तरह से आप अपने बच्चे की साफ़ साफ़ बोलने में मदद कर सकती हैं। तथा उन तमाम घरेलु नुस्खों के बारे में भी हम बताएँगे जिन की सहायता से बच्चे तुतलाहट को कम किया जा सकता है।
        बचपन में अधिकांश बच्चे तुतलाते हैं। लेकिन पांच वर्ष के बाद भी अगर आप का बच्चा तुतलाता है तो बच्चे को घरेलु उपचार और स्पीच थेरापिस्ट (speech therapist) के दुवारा इलाज की जरुरत है नहीं तो बड़े होने पे भी तुतलाहट की समस्या बनी रहने की सम्भावना है। इस लेख में आप पढेंगे की किस तरह से आप अपने बच्चे की साफ़ साफ़ बोलने में मदद कर सकती हैं। तथा उन तमाम घरेलु नुस्खों के बारे में भी हम बताएँगे जिन की सहायता से बच्चे तुतलाहट को कम किया जा सकता है।   ठण्ड के दिनों में बच्चों को बहुत आसानी से जुकाम लग जाता है। जुकाम के घरेलू उपाय से आप अपने बच्चे के jukam ka ilaj आसानी से ठीक कर सकती हैं। इसके लिए jukam ki dawa की भी जरुरत नहीं है। बच्चों के शारीर में रोग प्रतिरोधक छमता इतनी मजबूत नहीं होती है की जुकाम के संक्रमण से अपना बचाव (khud zukam ka ilaj) कर सके - लेकिन इसके लिए डोक्टर के पास जाने की आवशकता नहीं है। (zukam in english, jukam in english)
        ठण्ड के दिनों में बच्चों को बहुत आसानी से जुकाम लग जाता है। जुकाम के घरेलू उपाय से आप अपने बच्चे के jukam ka ilaj आसानी से ठीक कर सकती हैं। इसके लिए jukam ki dawa की भी जरुरत नहीं है। बच्चों के शारीर में रोग प्रतिरोधक छमता इतनी मजबूत नहीं होती है की जुकाम के संक्रमण से अपना बचाव (khud zukam ka ilaj) कर सके - लेकिन इसके लिए डोक्टर के पास जाने की आवशकता नहीं है। (zukam in english, jukam in english)  शिशु के शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र विटामिन डी का इस्तेमाल सूक्ष्मजीवीरोधी शक्ति (antibody) बनाने के लिए करता है। ये एंटीबाडी शिशु को संक्रमण से बचते हैं। जब शिशु के शरीर पे विषाणु और जीवाणु का आक्रमण होता है तो शिशु के शरीर में मौजूद एंटीबाडी विषाणु और जीवाणु से लड़ते हैं और उनके संक्रमण को रोकते हैं।
        शिशु के शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र विटामिन डी का इस्तेमाल सूक्ष्मजीवीरोधी शक्ति (antibody) बनाने के लिए करता है। ये एंटीबाडी शिशु को संक्रमण से बचते हैं। जब शिशु के शरीर पे विषाणु और जीवाणु का आक्रमण होता है तो शिशु के शरीर में मौजूद एंटीबाडी विषाणु और जीवाणु से लड़ते हैं और उनके संक्रमण को रोकते हैं।   शिशु को 15-18 महीने की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को मम्प्स, खसरा, रूबेला से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
        शिशु को 15-18 महीने की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को मम्प्स, खसरा, रूबेला से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।  जिन बच्चों को ड्राई फ्रूट से एलर्जी है उनमे यह भी देखा गया है की उन्हें नारियल से भी एलर्जी हो। इसीलिए अगर आप के शिशु को ड्राई फ्रूट से एलर्जी है तो अपने शिशु को नारियल से बनी व्यंजन देने से पहले सुनिश्चित कर लें की उसे नारियल से एलर्जी न हो।
        जिन बच्चों को ड्राई फ्रूट से एलर्जी है उनमे यह भी देखा गया है की उन्हें नारियल से भी एलर्जी हो। इसीलिए अगर आप के शिशु को ड्राई फ्रूट से एलर्जी है तो अपने शिशु को नारियल से बनी व्यंजन देने से पहले सुनिश्चित कर लें की उसे नारियल से एलर्जी न हो।   सुबह उठकर भीगे बादाम खाने के फायेदे तो सबको पता हैं - लेकिन क्या आप को पता है की भीगे चने खाने के फायेदे बादाम से भी ज्यादा है। अगर आप को यकीन नहीं हो रहा है तो इस लेख को जरूर पढिये - आप का भ्रम टूटेगा।
        सुबह उठकर भीगे बादाम खाने के फायेदे तो सबको पता हैं - लेकिन क्या आप को पता है की भीगे चने खाने के फायेदे बादाम से भी ज्यादा है। अगर आप को यकीन नहीं हो रहा है तो इस लेख को जरूर पढिये - आप का भ्रम टूटेगा।   शिक्षक वर्तमान शिक्षा प्रणाली का आधार स्तम्भ माना जाता है। शिक्षक ही एक अबोध तथा बाल - सुलभ मन  मस्तिष्क को उच्च शिक्षा व आचरण द्वारा श्रेष्ठ,  प्रबुद्ध व आदर्श व्यक्तित्व प्रदान करते हैं। प्राचीन काल में शिक्षा के माध्यम आश्रम व गुरुकुल हुआ करते थे। वहां गुरु जन बच्चों के आदर्श चरित के निर्माण में सहायता करते थे।
        शिक्षक वर्तमान शिक्षा प्रणाली का आधार स्तम्भ माना जाता है। शिक्षक ही एक अबोध तथा बाल - सुलभ मन  मस्तिष्क को उच्च शिक्षा व आचरण द्वारा श्रेष्ठ,  प्रबुद्ध व आदर्श व्यक्तित्व प्रदान करते हैं। प्राचीन काल में शिक्षा के माध्यम आश्रम व गुरुकुल हुआ करते थे। वहां गुरु जन बच्चों के आदर्श चरित के निर्माण में सहायता करते थे।  सूजी का उपमा एक ऐसा शिशु आहार है जो बेहद स्वादिष्ट है और बच्चे बड़े मन से खाते हैं|  यह झट-पैट त्यार हो जाने वाला शिशु आहार है जिसे आप चाहे तो सुबह के नाश्ते में या फिर रात्रि भोजन में भी परसो सकती हैं| शिशु आहार baby food for 9 month old baby
        सूजी का उपमा एक ऐसा शिशु आहार है जो बेहद स्वादिष्ट है और बच्चे बड़े मन से खाते हैं|  यह झट-पैट त्यार हो जाने वाला शिशु आहार है जिसे आप चाहे तो सुबह के नाश्ते में या फिर रात्रि भोजन में भी परसो सकती हैं| शिशु आहार baby food for 9 month old baby  समय से पहले बच्चों में ठोस आहार की शुरुआत करने के फायदे तो कुछ नहीं हैं मगर नुकसान बहुत हैं| बच्चों के एलर्जी सम्बन्धी अधिकांश समस्याओं के पीछे यही वजह हैं| 6 महीने से पहले बच्चे की पाचन तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होती है|
        समय से पहले बच्चों में ठोस आहार की शुरुआत करने के फायदे तो कुछ नहीं हैं मगर नुकसान बहुत हैं| बच्चों के एलर्जी सम्बन्धी अधिकांश समस्याओं के पीछे यही वजह हैं| 6 महीने से पहले बच्चे की पाचन तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होती है|     अगर आप आपने कल्पनाओं के पंखों को थोड़ा उड़ने दें तो बहुत से रोचक कलाकारी पत्तों द्वारा की जा सकती है| शुरुआत के लिए यह रहे कुछ उदहारण, उम्मीद है इन से कुछ सहायता मिलेगी आपको|
        अगर आप आपने कल्पनाओं के पंखों को थोड़ा उड़ने दें तो बहुत से रोचक कलाकारी पत्तों द्वारा की जा सकती है| शुरुआत के लिए यह रहे कुछ उदहारण, उम्मीद है इन से कुछ सहायता मिलेगी आपको|   आपका बच्चा जितना तरल पदार्थ लेता हैं। उससे कही अधिक बच्चे के शरीर से पसीने,  दस्त,  उल्टी और मूत्र के जरिये पानी बाहर निकल जाता है। इसी स्तिथि को डिहाइड्रेशन कहते हैं। गर्मियों में बच्चे को डिहाइड्रेशन का शिकार होने से बचने के लिए, उसे थोड़े-थोड़े समय पर, पुरे दिन तरल पदार्थ या पानी देते रहना पड़ेगा।
        आपका बच्चा जितना तरल पदार्थ लेता हैं। उससे कही अधिक बच्चे के शरीर से पसीने,  दस्त,  उल्टी और मूत्र के जरिये पानी बाहर निकल जाता है। इसी स्तिथि को डिहाइड्रेशन कहते हैं। गर्मियों में बच्चे को डिहाइड्रेशन का शिकार होने से बचने के लिए, उसे थोड़े-थोड़े समय पर, पुरे दिन तरल पदार्थ या पानी देते रहना पड़ेगा।  .jpg) मेनिंगोकोकल वैक्सीन (Meningococcal Vaccination in Hindi) - हिंदी, - मेनिंगोकोकल का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
        मेनिंगोकोकल वैक्सीन (Meningococcal Vaccination in Hindi) - हिंदी, - मेनिंगोकोकल का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक  सेब और सूजी का खीर बड़े बड़ों सबको पसंद आता है। मगर आप इसे छोटे बच्चों को भी शिशु-आहार के रूप में खिला सकते हैं। सूजी से शिशु को प्रोटीन और कार्बोहायड्रेट मिलता है और सेब से विटामिन, मिनरल्स और ढेरों पोषक तत्त्व मिलते हैं।
        सेब और सूजी का खीर बड़े बड़ों सबको पसंद आता है। मगर आप इसे छोटे बच्चों को भी शिशु-आहार के रूप में खिला सकते हैं। सूजी से शिशु को प्रोटीन और कार्बोहायड्रेट मिलता है और सेब से विटामिन, मिनरल्स और ढेरों पोषक तत्त्व मिलते हैं।   विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2050 तक दुनिया के लगभग आधे बच्चों को किसी न किसी प्रकार की एलर्जी होगा। जन्म के समय जिन बच्चों का भार कम होता है, उन बच्चों में इस रोग की संभावना अधिक होती है क्यों कि ये बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें सबसे आम दमा, एक्जिमा, पित्ती (त्वचा पर चकत्ते) और भोजन से संबंधित हैं।
        विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2050 तक दुनिया के लगभग आधे बच्चों को किसी न किसी प्रकार की एलर्जी होगा। जन्म के समय जिन बच्चों का भार कम होता है, उन बच्चों में इस रोग की संभावना अधिक होती है क्यों कि ये बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें सबसे आम दमा, एक्जिमा, पित्ती (त्वचा पर चकत्ते) और भोजन से संबंधित हैं।  बच्चों में होने वाली कुछ खास बिमारियों में से सीलिएक रोग (Celiac Disease ) एक ऐसी बीमारी है जिसे सीलिएक स्प्रू या ग्लूटन-संवेदी आंतरोग (gluten sensitivity in the small intestine disease) भी कहते हैं। ग्लूटन युक्त भोजन लेने के परिणामस्वरूप छोटी आंत की परतों को यह क्षतिग्रस्त (damages the small intestine layer) कर देता है, जो अवशोषण में कमी उत्पन्न करता (inhibits food absorbtion in small intestine) है। ग्लूटन एक प्रोटीन है जो गेहूं, जौ, राई और ओट्स में पाया जाता है। यह एक प्रकार का आटो इम्यून बीमारी (autoimmune diseases where your immune system attacks healthy cells in your body by mistake) है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपने ही एक प्रोटीन के खिलाफ एंटी बाडीज (antibody) बनाना शुरू कर देती है।
        बच्चों में होने वाली कुछ खास बिमारियों में से सीलिएक रोग (Celiac Disease ) एक ऐसी बीमारी है जिसे सीलिएक स्प्रू या ग्लूटन-संवेदी आंतरोग (gluten sensitivity in the small intestine disease) भी कहते हैं। ग्लूटन युक्त भोजन लेने के परिणामस्वरूप छोटी आंत की परतों को यह क्षतिग्रस्त (damages the small intestine layer) कर देता है, जो अवशोषण में कमी उत्पन्न करता (inhibits food absorbtion in small intestine) है। ग्लूटन एक प्रोटीन है जो गेहूं, जौ, राई और ओट्स में पाया जाता है। यह एक प्रकार का आटो इम्यून बीमारी (autoimmune diseases where your immune system attacks healthy cells in your body by mistake) है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपने ही एक प्रोटीन के खिलाफ एंटी बाडीज (antibody) बनाना शुरू कर देती है।