Category: स्वस्थ शरीर
By: Salan Khalkho | ☺12 min read
माँ का दूध बच्चे की भूख मिटाता है, उसके शरीर की पानी की आवश्यकता को पूरी करता है, हर प्रकार के बीमारी से बचाता है, और वो सारे पोषक तत्त्व प्रदान करता है जो बच्चे को कुपोषण से बचाने के लिए और अच्छे शारारिक विकास के लिए जरुरी है। माँ का दूध बच्चे के मस्तिष्क के सही विकास के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

माँ के दूध की तुलना सिर्फ अमृत से की जा सकती है।
माँ का दूध बच्चे के लिए सिर्फ आहार ही नहीं, बल्कि जीवन रक्षक वरदान है।
सरकारी आँकडोँ के अनुसार माँ के दूध के फायदे के जानकारी के आभाव में बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं। उनके अनुसार 6 माह तक बच्चे को केवल माँ का दूध ही देना चाहिए।
माँ के दूध में पर्याप्त मात्रा में पानी होता है इसीलिए बच्चे को अलग से पानी देने की आवश्यकता नहीं है। माँ के दूध में वो सभी पोषक तत्त्व होते हैं जो बच्चों कुपोषण से बचाने में सहायक हैं।
माँ का दूध बच्चों के लिए अमृत सामान होता है। यह शिशु को उसी तापमान में मिलता है, जो की शिशु के शरीर का होता है। इससे शिशु को ना तो सर्दी और ना ही गर्मी होती है।
औरत (मां) का दूध (Maa ka dudh / Mothers milk) के फायदे बच्चों को इतने हैं की हर माँ को (कामकाजी महिलाओं को भी) समय निकाल कर अपने बच्चों को स्तनपान जरूर करना चाहिए।
बच्चों का शरीर पूरी तरह से संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार नहीं है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होंगे उनमें यह छमता विकसी होगी। इस दौरान बच्चों को माँ का दूध संक्रमण से बचता है। माँ के दूध में लेक्टोफोर्मिन नामक तत्व होता है जो बच्चे के आँतों में संक्रमण (रोगाणुओं) को पनपने नहीं देता है।


माँ के दूध में पाए जाने वाला एक तत्त्व जिसे फैटीएसिड कहते हैं, बच्चों के मस्तिष्क की कोशिकाओं का विकास करता है। जिन बच्चों को बचपन में माँ का दूध नहीं मिला उन बच्चों में बुद्धि का विकास माँ-का-दूध-पिने-वाले बच्चों से अपेक्षाकृत कम पाया गया।


माँ के दूध में बच्चे की जरुरत के सभी पोषक तत्व, एंटी बाडीज, हार्मोन, प्रतिरोधक कारक और एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होते हैं जो बच्चे के बेहतर विकास और स्वस्थ्य के लिए जरुरी है।


माँ के गर्भ में बच्चा संक्रमण से सुरक्षित रहता है। क्योँकि माँ के शरीर का immunity power सक्षम होता है रोगाणुओं से लड़ने में। मगर जब बच्चे का जन्म हो जाता है तब बच्चे को खुद ही अपने शरीर की रक्षा करनी होती है। जन्म के ठीक बाद मां का पहला पीला दूध बच्चे के लिए अमृत जैसा है। यह पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता ही है साथ ही यह बच्चों को एलर्जी, दस्त और निमोनिया जैसी तमाम बीमारियोँ से भी बचाता है। माँ का दूध सरलता से पच जाता है और बच्चे को 6 महीने तक माँ का दूध अवश्य देना चाहिए। UNICEF के अनुसार अगर बच्चे के जन्म के एक घंटे के अंदर उसे माँ का दूध पिलाया जाये तो दुनिया भर में होने वाले शिशु मृत्यु दर को बहुत हद तक घटाया जा सकता है (हर पांच में से एक मृत्यु को रोका जा सकता है)।

नवजात बच्चे का पेट एक Cherry जितना छोटा होता है। शोधकर्ताओं ने पाया है की नवजात बच्चे का पेट फैलता नहीं है और इसीलिए ज्यादा दूध पिने पे उलट देता है। मां का पहला पीला दूध (कोलोस्ट्रम) colostrum में पोषक तत्त्व घनिष्ट मात्रा मैं होता है और ये बिलकुल उपयुक्त मात्रा है बच्चे के छोटे पेट के लिए।



माँ के दूध से बच्चे को माँ के शरीर की होर्मोनेस और एंटीबाडीज भी मिलती है। ये होर्मोनेस और एंटीबाडीज बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरुरी है। माँ के दूध में मौजूद antibodies बच्चे के शरीर को सक्षम बनता है की वो viruses और bacteria के साथ मुकाबला कर सके और स्वस्थ रह सके।

"Immunology" journal में प्रकाशित एक शोध के अनुसार माँ का दूध इतना शक्तिशाली होता है की वो निर्धारित करता है की बच्चे की प्रतिरोधक छमता कितनी मजबूत रहेगी। माँ का दूध बच्चे को इतनी प्रतिरोधक छमता देता है जितना की बच्चे को टोककरण से मिलता है। इसका सीधा सा मतलब यह है की माँ का दूध बच्चे को बड़े-बड़े बीमारी से लड़ने की ताकत देता है।

"Immunology" journal में यह भी स्पष्ट किया गया की बहुत से ऐसे टिके हैं जो बच्चों को नहीं दिए जा सकते क्योँकि उनको बच्चों को लगाना सुरक्षित नहीं है। मगर California University के professor - MA Walker के अनुसार, अगर वही टिका (vaccine) जब माँ गर्भवती हो तो अगर लगा दिया जाये तो बच्चे के जन्म के बाद स्तनपान कराते वक्त माँ के दूध के द्वारा बच्चे को सारी immunity और दवा की प्रतिरोधक छमता मिल जाएगी। इस प्रकार से बच्चे को दिए गए प्रतिरोधक छमता को passive immunity कहा जाता है।

माँ का दूध के साथ मिलने वाली प्रतिरोधक छमता (passive immunity) बच्चे के शरीर की निजी immunity को develop करने में सहायता करता है। पैसिव इम्युनिटी बच्चे के शरीर को प्रतिरोधक छमता बनाना सिखाता है। इसे "मैटरनल एजुकेशनल इम्युनिटी" कहा जाता है। यह सबसे बड़ा कारण है की माँ का दूध गाए के दूध से क्योँ बेहतर है। यौन कहें की माँ का दूध का किसी और दूध से कोई तुलना ही नहीं है। माँ के दूध से बच्चे के आंत मजबूत होती है और बच्चे में संक्रमण से लड़ने की छमता उत्पन होती है। संक्रमण से लड़ने की यह छमता बच्चे में पूरी उम्र बनी रहती है। शोध में यह भी पाया गया की अगर माँ को कोई टोका (vaccination) दिया जाता है तो उसका असर संतान पे भी होता है। इसका मतलब अगर बच्चे को अप्रत्यक्ष रूप से कोई टिका लगाना हो तो उसकी माँ को pregnancy से पहले ही वो टिका लगा दिया जाये। बाद में बच्चे के जन्म के बाद स्तनपान के जरिये माँ से बच्चे में पहुँच जायेगा और इस तरह माँ और बच्चे दो बीमारियोँ से सुरक्षित हो जायेंगे।

पुरे विश्व में भारत एक अकेला ऐसा देश है जहाँ हर साल नवजात शिशुओं में जन्म दर और मृत्यु दर का अनुपात सबसे ज्यादा है। राष्ट्रीय स्वस्थ्य कल्याण सर्वेक्षण के अनुसार यहां हर साल 46 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार होता हैं। यह 46 प्रतिशत का आंकड़ा उत्तर प्रदेश का है। लेकिन भारत का मध्य प्रदेश कुपोषण के मामले में सबसे आग है। हर साल 0 से 5 वर्ष तक की आयु वर्ग के बच्चों में होने वाली मृत्यु का 60 प्रतिशत कारण बच्चों में कुपोषण है। कुपोषण की समस्या सबसे ज्यादा ग्रामीण छेत्रों में पिछड़ी जाति के लोगों, विशेष कर अशिक्षित वर्ग के लोगों में ज्यादा पाया जाता है।
पोषण का मुख्या कारण:

कई शोध में यह बात सामने आयी है की माँ के दूध में (stem cells) स्टेम कोशिकाएं होती हैं जो बच्चे को अल्जाइमर और कैंसर जैसे रोगों के प्रति प्रतिरोधक छमता प्रदान करता है। अध्यन में पाया गया की स्टेम कोशिकाओं में जो गुण होते हैं वे भ्रूण कोशिकाओं से बहुत मिलते जुलते हैं। स्टेम कोशिकाएं में एक अजूबी छमता होती है जिस कारण वो किसी भी कोशिका के रूप में परिवर्तित हो सकती है। इसी वजह से स्टेम कोशिकाएं को ‘मास्टर कोशिकाए’ भी कहा जाता है।
कभी किन्ही स्थितियों में बच्चों को Formula Milk दिया जा सकता है जब माँ का दूध शिशु के लिए पर्याप्त ना हो रहा हो। इसका मतलब Formula Milk मज़बूरी में देना चाहिए, वो भी डॉक्टर के recommendation पे।

कित्रिम दूध / Formula Milk में माँ के दूध की गुणवत्ता का अनुकरण करने की कोशिश की जाती है। मगर माँ के दूध का कोई तुलना नहीं है। सही मायने में माँ के दूध का नक़ल कभी नहीं किया जा सकता है। कित्रिम दूध हमेशा कित्रिम दूध ही रहेगा। ऐसा इसलिए क्योँकि माँ का दूध सिर्फ आहार ही नहीं है। यह बहुत सारे कार्य करता है। जैसे की बच्चे की संक्रमण से रक्षा, और बौद्धिक और शारीरिक विकास में योगदान। यह बच्चे में प्रतिरोधक छमता भी विकसित करता है। कित्रिम दूध कभी भी इतना सब कुछ नहीं कर पायेगा।
कित्रिम दूध को तैयार करने के लिए उसमे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा और विटामिन इत्यादि एक निश्चित मात्रा में दाल दिए जाते हैं ताकि कित्रिम दूध में तत्वों की मात्रा ठीक वैसे ही हो जैसे की माँ के दूध में होती है। परन्तु माँ के दूध में इन सब के आलावा भी बहुत कुछ होता है जो कित्रिम तौर पे तैयार नहीं किया जा सकता है।
माँ के दूध में तत्वों की मात्रा का अनुपात बच्चे की उम्र के बदलाव के साथ घटता बढ़ता रहता है। माँ का दूध कभी गहड़ा - तो कभी हल्का - तो कभी ज्यादा - तो कभी कम होता है। ऐसा बच्चे के बदलते शारीरिक आवश्यकता के अनुसार माँ का दूध खुद को नियंत्रित कर लेता है। कित्रिम दूध ऐसा कभी नहीं कर पायेगा।
माँ के दूध की भौतिक गुणवत्ता का नक़ल तो किया जा सकता है मगर माँ के दूध में अनेक जैविक गुण होते हैं जिसकी नक़ल कित्रिम दूध कभी नहीं कर पायेगा। माँ के दूध के जैविक गुणों के कारण माँ से बच्चे को रोग से बचने के लिए प्रतिरक्षा मिलती है। माँ जब बच्चे को दूध पिलाती है तो माँ और बच्चे के बीच लगाव उत्पन होता है। यह भी जैविक गुणों का ही एक उदहारण है।
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समय से पूर्व जन्मे बच्चे (pre-mature) बच्चे के लिए वरदान से कम नहीं है माँ का दूध। हाल में हुए एक शोध में यह बात सामने आया है की शुरुआती 1 महीने के दौरान माँ का दूध बच्चे को पिलाने से उसके मस्तिष्क के विकास को गति मिलती है। अमेरिका के सेंट लुईस शिशु अस्पताल में हुए अध्यन में पाया गया की जिन बच्चों को दैनिक खुराक में कम-से-कम 50 प्रतिशत माँ का दूध दिया गया उन बच्चों के मस्तिष्क के उत्तकों और इसके (मस्तिष्क के) बाहरी आवरण क्षेत्र का विकास, उन नवजात बच्चों से बेहतर रहा जिन्हे दैनिक खुराक में माँ का दूध 50 प्रतिशत से कम मिला।
जिन बच्चों का जन्म समय से पूर्व होता है उनका दिमाग पूरी तरह विकसित नहीं होता है। अनुसंधानकर्ताओं ने एमआरआई स्कैन (MRI Scan) मैं अधिक स्तनपान करने वाले बच्चों के मस्तिष्क का आकर बड़ा पाया। शोध कर्ताओं के अनुसार माँ का दूध समय से पूर्व जन्मे बच्चे के लिए सबसे अच्छा आहार है।
होली मात्र एक त्यौहार नहीं है, बल्कि ये एक मौका है जब हम अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति के बारे में जागरूक कर सकते हैं। साथ ही यह त्यौहार भाईचारा और सौहाद्रपूर्ण जैसे मानवीय मूल्यों का महत्व समझने का मौका देता है।
औसतन एक शिशु को दिन भर में 1000 से 1200 कैलोरी की आवश्यकता पड़ती है। शिशु का वजन बढ़ने के लिए उसे दैनिक आवश्यकता से ज्यादा कैलोरी देनी पड़ेगी और इसमें शुद्ध देशी घी बहुत प्रभावी है। लेकिन शिशु की उम्र के अनुसार उसे कितना देशी घी दिन-भर में देना चाहिए, यह देखिये इस तलिके/chart में।
मौसम तेज़ी से बदल रहा है। ऐसे में अगर आप का बच्चा बीमार पड़ जाये तो उसे जितना ज्यादा हो सके उसे आराम करने के लिए प्रोत्साहित करें। जब शरीर को पूरा आराम मिलता है तो वो संक्रमण से लड़ने में ना केवल बेहतर स्थिति में होता है बल्कि शरीर को संक्रमण लगने से भी बचाता भी है। इसका मतलब जब आप का शिशु बीमार है तो शरीर को आराम देना बहुत महत्वपूर्ण है, मगर जब शिशु स्वस्थ है तो भी उसके शरीर को पूरा आराम मिलना बहुत जरुरी है।
शिशु को सर्दी और जुकाम (sardi jukam) दो कारणों से ही होती है। या तो ठण्ड लगने के कारण या फिर विषाणु (virus) के संक्रमण के कारण। अगर आप के शिशु का जुकाम कई दिनों से है तो आप को अपने बच्चे को डॉक्टर को दिखाना चाहिए। कुछ घरेलु उपचार (khasi ki dawa) की सहायता से आप अपने शिशु की सर्दी, खांसी और जुकाम को ठीक कर सकती हैं। अगर आप के शिशु को खांसी है तो भी घरेलु उपचार (खांसी की अचूक दवा) की सहायता से आप का शिशु पूरी रात आरामदायक नींद सो सकेगा और यह कफ निकालने के उपाय भी है - gharelu upchar in hindi
शिशु का टीकाकार शिशु को बीमारियोँ से बचाने के लिए बहुत जरुरी है। मगर टीकाकार से शिशु को बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ता है। जानिए की आप किस तरह अपने शिशु को टीकाकरण २०१८ से हुए दर्द से शिशु को कैसे राहत पहुंचा सकते हैं।
बच्चों के पेट में कीड़े होना बहुत ही आम बात है। अगर आप के बच्चे के पेट में कीड़े हैं तो परेशान या घबराने की कोई बात नहीं। बहुत से तरीके हैं जिनकी मदद से बच्चों के पेट के कीड़ों को ख़तम (getting rid of worms) किया जा सकता है।
दही तो दूध से बना है, तो जाहिर है की इससे आप के शिशु को calcium भरपूर मिलेगा| दही चावल या curd rice, तुरंत बन जाने वाला बेहद आसान आहार है| इसे बनान आसान है इसका मतलब यह नहीं की यह पोशाक तत्वों के मामले में कम है| यह बहुत से पोषक तत्वों का भंडार है| baby food शिशु आहार 9 month to 12 month baby
सूजी का उपमा एक ऐसा शिशु आहार है जो बेहद स्वादिष्ट है और बच्चे बड़े मन से खाते हैं| यह झट-पैट त्यार हो जाने वाला शिशु आहार है जिसे आप चाहे तो सुबह के नाश्ते में या फिर रात्रि भोजन में भी परसो सकती हैं| शिशु आहार baby food for 9 month old baby
फाइबर और पौष्टिक तत्वों से युक्त, मटर की प्यूरी एक बेहतरीन शिशु आहार है छोटे बच्चे को साजियां खिलने का| Step-by-step instructions की सहायता से जानिए की किस तरह आप ताज़े हरे मटर या frozen peas से अपने आँखों के तारे के लिए पौष्टिक मटर की प्यूरी कैसे त्यार कर सकते हैं|
जो सबसे असहनीय पीड़ा होती है वह है बच्चे को टीका लगवाना। क्योंकि यह न केवल बच्चों के लिए बल्कि माँ के लिए भी कष्टदायी होता है।
माँ के दूध से मिलने वाले होर्मोनेस और एंटीबाडीज बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरुरी है| ये बच्चे के शरीर को viruses और bacteria से मुकाबला करने में सक्षम बनता है| स्तनपान वाले बच्चों में कान का infection, साँस की बीमारी और diarrhea कम होता है| उन बच्चों को डॉक्टर को भी कम दिखाना पड़ता है|
टीडी (टेटनस, डिप्थीरिया) वैक्सीन vaccine - Td (tetanus, diphtheria) vaccine in hindi) का वैक्सीन मदद करता है आप के बच्चे को एक गंभीर बीमारी से बचने में जो टीडी (टेटनस, डिप्थीरिया) के वायरस द्वारा होता है। - टीडी (टेटनस, डिप्थीरिया) वैक्सीन का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
6 माह से 1 साल तक के शिशु को आहार के रूप में दाल का पानी,चावल का पानी,चावल,सूजी के हलवा,चावल व मूंग की खिचड़ी,गूदेदार, पके फल, खीर, सेरलेक्स,पिसे हुए मेवे, उबले हुए चुकंदर,सप्ताह में 3 से 4 अच्छे से उबले हुए अंडे,हड्डीरहित मांस, भोजन के बाद एक-दो चम्मच पानी भी शिशु को पिलाएं।
बच्चों के लिए आवश्यक विटामिन सी की मात्रा बड़ों जितनी नहीं होती है। दो और तीन साल की उम्र के बच्चों को एक दिन में 15 मिलीग्राम विटामिन सी की आवश्यकता होती है। चार से आठ साल के बच्चों को दिन में 25 मिलीग्राम की आवश्यकता होती है और 9 से 13 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रति दिन 45 मिलीग्राम की आवश्यकता होती है।
क्या आप चाहते हैं की आप का बच्चा शारारिक रूप से स्वस्थ (physically healthy) और मानसिक रूप से तेज़ (mentally smart) हो? तो आपको अपने बच्चे को ड्राई फ्रूट्स (dry fruits) देना चाहिए। ड्राई फ्रूट्स घनिस्ट मात्रा (extremely rich source) में मिनरल्स और प्रोटीन्स प्रदान करता है। यह आप के बच्चे के सम्पूर्ण ग्रोथ (complete growth and development) के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
छोटे बच्चों के लिए शहद के कई गुण हैं। शहद बच्चों को लम्बे समय तक ऊर्जा प्रदान करता है। शदह मैं पाए जाने वाले विटामिन और मिनिरल जखम को जल्द भरने में मदद करते है, लिवर की रक्षा करते हैं और सर्दियों से बचते हैं।
अगर बच्चे को किसी कुत्ते ने काट लिया है तो 72 घंटे के अंतराल में एंटी रेबीज वैक्सीन का इंजेक्शन अवश्य ही लगवा लेना चाहिए। डॉक्टरों के कथनानुसार यदि 72 घंटे के अंदर में मरीज इंजेक्शन नहीं लगवाता है तो, वह रेबीज रोग की चपेट में आ सकता है।
सर्दी - जुकाम और खाँसी (cold cough and sore throat) को दूर करने के लिए कुछ आसान से घरेलू उपचार (home remedy) दिये जा रहे हैं, जिसकी सहायता से आपके बच्चे को सर्दियों में काफी आराम मिलेगा।
टाइफाइड जिसे मियादी बुखार भी कहा जाता है, जो एक निश्चित समय के लिए होता है यह किसी संक्रमित व्यक्ति के मल के माध्यम से दूषित वायु और जल से होता है। टाइफाइड से पीड़ित बच्चे में प्रतिदिन बुखार होता है, जो हर दिन कम होने की बजाय बढ़ता रहता है। बच्चो में टाइफाइड बुखार संक्रमित खाद्य पदार्थ और संक्रमित पानी से होता है।
बच्चों में होने वाली कुछ खास बिमारियों में से सीलिएक रोग (Celiac Disease ) एक ऐसी बीमारी है जिसे सीलिएक स्प्रू या ग्लूटन-संवेदी आंतरोग (gluten sensitivity in the small intestine disease) भी कहते हैं। ग्लूटन युक्त भोजन लेने के परिणामस्वरूप छोटी आंत की परतों को यह क्षतिग्रस्त (damages the small intestine layer) कर देता है, जो अवशोषण में कमी उत्पन्न करता (inhibits food absorbtion in small intestine) है। ग्लूटन एक प्रोटीन है जो गेहूं, जौ, राई और ओट्स में पाया जाता है। यह एक प्रकार का आटो इम्यून बीमारी (autoimmune diseases where your immune system attacks healthy cells in your body by mistake) है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपने ही एक प्रोटीन के खिलाफ एंटी बाडीज (antibody) बनाना शुरू कर देती है।