Category: शिशु रोग
By: Salan Khalkho | ☺16 min read
दांत का निकलना एक बच्चे के जिंदगी का एहम पड़ाव है जो बेहद मुश्किलों भरा होता है। इस दौरान तकलीफ की वजह से बच्चे काफी परेशान करते हैं, रोते हैं, दूध नहीं पीते। कुछ बच्चों को तो उलटी, दस्त और बुखार जैसे गंभीर लक्षण भी देखने पड़ते हैं। आइये जाने कैसे करें इस मुश्किल दौर का सामना।

एक माँ बाप के लिए उसके बच्चे का दांत निकलना देहद ख़ुशी की बात होती है। दांत निकलना किसी भी बच्चे के जिंदगी का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। क्योंकि इसके बाद आपका बच्चा विभिन्न प्रकार के भोजनों का आनंद उठा पायेगा। मगर जिंदगी का यह महत्वपूर्ण पड़ाव आपके बच्चे के लिए इतना आसान भी नहीं। दांत का निकलना आप के बच्चे का लिए काफी तकलीफों भरा दौर होता है।
दांत निकलने के दौरान तकलीफ की वजह से बच्चे काफी परेशान करते हैं, रोते हैं, दूध नहीं पीते। माँ बाप को भी काफी हैरानी और परेशानी का सामना करना पड़ता है। बच्चों में दांत निकलते वक्त लक्षण अलग अलग तरह के हो सकते हैं। उलटी, दस्त और बुखार कुछ गंभीर लक्षणों में हैं।
हर बच्चे को कभी न कभी इस तकलीफ से गुजरना पड़ता है। यह समय माँ बाप के लिए भी चिंता का समय होता है।
यह एक चर्चा का विषय है की दांत निकलने की वजह से दस्त होता है, क्यूंकि सभी विशेषज्ञ इस पर एक मत नहीं हैं। उनका कहना है की दांत निकलने की वजह से मसूड़ों में सूजन और दर्द रहेगा मगर शरीर के बाकि अंगों पर इसका इतना प्रभाव नहीं पड़ेगा की उलटी और दस्त हो। बरहाल अगर आपका बच्चा दस्त का सामना करे तो डॉक्टर की सलाह अवश्य लेलें।
दांत निकलते वक्त बच्चों मसूड़ों की त्वचा बेहद संवेदनशील हो जाती है। इस वजह से जो भी चीज़ बच्चे के पास होती है वह उसे उठाकर मुँह में डलने की कोशिश करता है। कई बार बच्चे गन्दी वास्तु जो बैक्टीरिया और वायरस द्वारा संक्रमित होती हैं उन्हें मुँह में डाल लेते हैं और उनका पेट सक्रमित हो जाता है। नतीजतन उन्हें उलटी और दस्त शुरू हो जाता है।
उलटी और दस्त होने की स्थिति में डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें ताकि संक्रमण का इलाज किया जा सके। कुछ बच्चे अत्यधिक मात्रा में लार चुआते हैं जिसकी वजह से संक्रमण फ़ैल जाता है और बच्चे बीमार पद जाते हैं। दांत निकलते वक्त बच्चों का ख्याल रखें और हर गन्दी वस्तुएं उनसे दूर रखें।
चार से सात महीने की उम्र से कुछ बच्चों के दांत निकलने शुरू हो जाते हैं। सामने के - निचे के दांत सबसे पहले निकलते हैं। फिर सामने के - ऊपर के दांत निकलते हैं। बाकि के दांत दो साल के समयांतराल में निकलते हैं। जब बच्चा तीन साल का होता है तब तक उसके बीस मुख्या दांत निकल चुके होते हैं।
कुछ बच्चों में दांत देर में निकलते हैं। अगर आप के बच्चे के दांत निकलने में काफी समय लग रहा है तो चिंता न करें। क्या आपने कभी किसी वस्यक को बिना दांतों का देखा है? नहीं ना। शोध (research) में यह पाया गया है की दांतों का देर से निकलना बच्चे के शारीरक विकास को प्रभावित नहीं करता। तथा यह बच्चे में किसी पोषक तत्त्व के कमी को भी नहीं दर्शाता है।
कभी कभी दांत निकलने से पहले बच्चे अजीबोगरीब तरह से बर्ताव करने लगते हैं। जैसे की चिड़चिड़ापन, तुनक मिजाज, जिद करना। दांत निकलने के पहले के कुछ मुख्या लक्षण इस तरह हैं
दस्त बच्चों को बेहद कमजोर कर देता है। उनके शरीर में पानी की कमी हो जाती है जो की चिंता का विषय है। आप को ऐसे कदम उठाने पड़ेंगे ताकि आप के बच्चे के शरीर में पानी की कमी को तुरंत पूरा किया जा सके। समय पे लिया गया कदम आपके बच्चे को गंभीर परिणामों से बचा सकता है। बच्चे में दस्त के दौरान इन बातों का रखें ख्याल।
बच्चे को ORS का घोल पैकेट पर दिए गए निर्देशों के अनुसार तुरंत देना प्रारम्भ करें। हर बीस से पचीस मिनिट पर देतें रहें। ORS ना मिलने की स्थिति में आप इसे घर पर ही तैयार कर सकते हैं। आठ छोटा चमच चीनी, एक छोटा चम्मच नमक को एक लीटर पानी में घोलें और बच्चे को थोड़े थोड़े समयांतराल पे पिलायें।
अगर बच्चा स्तनपान पे है तो थोड़ी थोड़ी देर पे लगातार स्तनपान करते रहें। ऐसे कर के आप बच्चे के शरीर में पानी की कमी को रूक सकते हैं।
अगर बच्चा ठोस आहार खाने लायक हो गया है तो उसे खाने को केला दें। बच्चे को सूप भी दे सकते हैं। बच्चे को हरी भोजन से दूर रखें। थोड़ा थोड़ा खाने को दें और थोड़ी थोड़ी देर पे लगातार देते रहें।
दांत निकलते वक्त होने वाले दस्त के दौरान इस विशेष दवा को दिया जाता है। इसका बच्चे पे कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। बस ध्यान रहे की यह सतयापित है और जैविक (organic) है।
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विटामिन शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कई तरह से मदद करते हैं। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं, हड्डियों को मजबूत बनाते हैं, शरीर के जख्मों को ठीक करते हैं, आंखों की दृष्टि को मजबूत बनाते हैं और शरीर को भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने में मदद करते हैं। लेकिन गर्भावस्था के द्वारा विटामिन आपके लिए और की आवश्यक हो जाता है। इस लेख में हम आपको 6 ऐसे महत्वपूर्ण विटामिन के बारे में बताएंगे जो अगर गर्भावस्था के दौरान आपके शरीर को आहार के माध्यम से ना मिले तो यह आपके लिए तथा आपके गर्भ में पल रहे शिशु दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
डर, क्रोध, शरारत या यौन शोषण इसका कारण हो सकते हैं। रात में सोते समय अगर आप का बच्चा अपने दांतों को पिसता है तो इसका मतलब है की वह कोई बुरा सपना देख रहा है। बच्चों पे हुए शोध में यह पता चला है की जो बच्चे तनाव की स्थिति से गुजर रहे होते हैं (उदहारण के लिए उन्हें स्कूल या घर पे डांट पड़ रही हो या ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं जो उन्हें पसंद नहीं है) तो रात में सोते वक्त उनमें दांत पिसने की सम्भावना ज्यादा रहती है। यहाँ बताई गयी बैटन का ख्याल रख आप अपने बच्चे की इस समस्या का सफल इलाज कर सकती हैं।
हर 100 में से एक शिशु बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) विकार से प्रभावित होता है। बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) से पीड़ित शिशु में आप दो प्रकार का व्यवहार पाएंगे एक अत्यधिक आत्मविश्वासी वाला और दूसरा अत्यधिक हताश की स्थिति वाला।
बढ़ते बच्चों के लिए विटामिन और मिनिरल आवश्यक तत्त्व है। इसके आभाव में शिशु का मानसिक और शारीरिक विकास बाधित होता है। अगर आप अपने बच्चों के खान-पान में कुछ आहारों का ध्यान रखें तो आप अपने बच्चों के शारीर में विटामिन और मिनिरल की कमी होने से बचा सकती हैं।
गर्भावस्था के दौरान अपच का होना आम बात है। लेकिन प्रेगनेंसी में (बिना सोचे समझे) अपच की की दावा लेना हानिकारक हो सकता है। इस लेख में आप पढ़ेंगी की गर्भावस्था के दौरान अपच क्योँ होता है और आप घरेलु तरीके से अपच की समस्या को कैसे हल कर सकती हैं। आप ये भी पढ़ेंगी की अपच की दावा (antacids) खाते वक्त आप को क्या सावधानियां बरतने की आवश्यकता है।
डिलीवरी के बाद लटके हुए पेट को कम करने का सही तरीका जानिए। क्यूंकि आप को बच्चे को स्तनपान करना है, इसीलिए ना तो आप अपने आहार में कटौती कर सकती हैं और ना ही उपवास रख सकती हैं। आप exercise भी नहीं कर सकती हैं क्यूंकि इससे आप के ऑपरेशन के टांकों के खुलने का डर है। तो फिर किस तरह से आप अपने बढे हुए पेट को प्रेगनेंसी के बाद कम कर सकती हैं? यही हम आप को बताएँगे इस लेख मैं।
बहुत आसन घरेलु तरीकों से आप अपने शिशु का वजन बढ़ा सकती हैं। शिशु के पहले पांच साल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये ऐसा समय है जब शिशु का शारीरिक और बौद्धिक विकास अपने चरम पे होता है। इस समय शिशु के विकास के रफ़्तार को ब्रेक लग जाये तो यह क्षति फिर जीवन मैं कभी पूरी नहीं हो पायेगी।
मौसम तेज़ी से बदल रहा है। ऐसे में अगर आप का बच्चा बीमार पड़ जाये तो उसे जितना ज्यादा हो सके उसे आराम करने के लिए प्रोत्साहित करें। जब शरीर को पूरा आराम मिलता है तो वो संक्रमण से लड़ने में ना केवल बेहतर स्थिति में होता है बल्कि शरीर को संक्रमण लगने से भी बचाता भी है। इसका मतलब जब आप का शिशु बीमार है तो शरीर को आराम देना बहुत महत्वपूर्ण है, मगर जब शिशु स्वस्थ है तो भी उसके शरीर को पूरा आराम मिलना बहुत जरुरी है।
शिशु को सर्दी और जुकाम (sardi jukam) दो कारणों से ही होती है। या तो ठण्ड लगने के कारण या फिर विषाणु (virus) के संक्रमण के कारण। अगर आप के शिशु का जुकाम कई दिनों से है तो आप को अपने बच्चे को डॉक्टर को दिखाना चाहिए। कुछ घरेलु उपचार (khasi ki dawa) की सहायता से आप अपने शिशु की सर्दी, खांसी और जुकाम को ठीक कर सकती हैं। अगर आप के शिशु को खांसी है तो भी घरेलु उपचार (खांसी की अचूक दवा) की सहायता से आप का शिशु पूरी रात आरामदायक नींद सो सकेगा और यह कफ निकालने के उपाय भी है - gharelu upchar in hindi
क्या आप के पड़ोस में कोई ऐसा बच्चा है जो कभी बीमार नहीं पड़ता है? आप शायद सोच रही होंगी की उसके माँ-बाप को कुछ पता है जो आप को नहीं पता है। सच बात तो ये है की अगर आप केवल सात बातों का ख्याल रखें तो आप के भी बच्चों के बीमार पड़ने की सम्भावना बहुत कम हो जाएगी।
मखाने के फ़ायदे अनेक हैं। मखाना दुसरी ड्राई फ्रूट्स की तुलना में ज्यादा पौष्टिक है और सेहत के लिए ज्यादा फायेदेमंद भी। छोटे बच्चों को मखाना खिलने के कई फायेदे हैं।
अक्सर नवजात बच्चे के माँ- बाप जल्दबाजी या एक्साइटमेंट में अपने बच्चे के लिए ढेरों कपडे खरीद लेते हैं। यह भी प्यार और दुलार जाहिर करने का एक तरीका है। मगर माँ-बाप अगर कपडे खरीदते वक्त कुछ बातों का ध्यान न रखे तो कुछ कपड़ों से बच्चे को स्किन रैशेज (skin rash) भी हो सकता है।
भारत में रागी को finger millet या red millet भी कहते हैं। रागी को मुख्यता महाराष्ट्र और कर्नाटक में पकाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे नाचनी भी कहा जाता है। रागी से बना शिशु आहार (baby food) बड़ी सरलता से बच्चों में पच जाता है और पौष्टिक तत्वों के मामले में इसका कोई मुकाबला नहीं।
केला पौष्टिक तत्वों का बेहतरीन स्रोत है। ये उन फलों में से एक हैं जिन्हे आप अपने बच्चे को पहले आहार के रूप में भी दे सकती हैं। इसमें लग-भग वो सारे पौष्टिक तत्त्व मौजूद हैं जो एक व्यक्ति के survival के लिए जरुरी है। केले का प्यूरी बनाने की विधि - शिशु आहार (Indian baby food)
जुड़वाँ बच्चे पैदा होना इस गावं में आम बात है और इस गावं की खासियत भी| इसी कारण इस गावं में जुड़वाँ बच्चों की संख्या हर साल बढ़ रही है|
12 महीने या 1 साल के बच्चे को अब आप गाए का दूध देना प्रारम्भ कर सकते हैं और साथ ही उसके ठोस आहार में बहुत से व्यंजन और जोड़ सकते हैं। बढ़ते बच्चों के माँ-बाप को अक्सर यह चिंता रहती है की उनके बच्चे को सम्पूर्ण पोषक तत्त्व मिल पा रहा है की नहीं? इसीलिए 12 माह के बच्चे का baby food chart (Indian Baby Food Recipe) बच्चों के आहार सारणी की जानकारी दी जा रही है। संतुलित आहार चार्ट
माँ-बाप सजग हों जाएँ तो बहुत हद तक वे आपने बच्चों को यौन शोषण का शिकार होने से बचा सकते हैं। भारत में बाल यौन शोषण से सम्बंधित बहुत कम घटनाएं ही दर्ज किये जाते हैं क्योँकि इससे परिवार की बदनामी होने का डर रहता है। हमारे भारत में एक आम कहावत है - 'ऐसी बातें घर की चार-दिवारी के अन्दर ही रहनी चाहिये।'
युवा वर्ग की असीमित बिखरी शक्ति को संगठित कर उसे उचित मार्गदर्शन की जितनी आवश्यकता आज हैं , उतनी कभी नहीं थी। आज युवा वर्ग समाज की महत्वकांशा के तले इतना दब गया हैं , की दिग - भ्रमित हो गया हैं।
सेब में मौजूद पोषक तत्त्व आप के शिशु के बेहतर स्वस्थ, उसके शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ताज़े सेबों से बना शिशु आहार आप के शिशु को बहुत पसंद आएगा।
बच्चों को दातों की सफाई था उचित देख रेख के बारे में बताना बहुत महत्वपूर्ण है। बच्चों के दातों की सफाई का उचित ख्याल नहीं रखा गया तो दातों से दुर्गन्ध, दातों की सडन या फिर मसूड़ों से सम्बंधित कई बिमारियों का सामना आप के बच्चे को करना पड़ सकता है।