Category: स्वस्थ शरीर
By: Salan Khalkho | ☺2 min read
अगर आप भी इसी दुविधा में है की अपने शिशु को किस तेल से मालिश करें तो सबसे अच्छा रहेगा तो आप की जानकारी के लिए हम आज आप को बताएँगे बच्चों की मालिश करने के लिए सबसे बेहतरीन तेल।

अधिकांश ऐसे भारीतय घरों में,
जहाँ एक छोटा शिशु है तो,
हिंदुस्तानी सभ्यता के अनुसार शिशु को नहलाने से पूर्वे उसकी मालिश करना एक प्राचीन प्रथा है।
मालिश से शिशु को बहुत फायेदे मिलते हैं। इससे शिशु का blood circulation बेहतर बनता है, बच्चे को मालिश के बाद अच्छी नींद आती है, गर्मियौं में शारीर को ठण्ड रखता है और संक्रमण से भी बचाता है।
आप सोच रहे होंगे की भला मालिश किस तरह शिशु को संक्रमण से बचाता है?
इसके बारे में हम आपको निचे विस्तार से बताएँगे।
पिछले कुछ दशकों में विकास की गति इतनी तेज़ रही की अब न तो पहले की तरह लोग सयुंक्त परिवारों में रहते हैं और ना ही प्राचीन भरतिया ज्ञान भंडार के बारे में कुछ भी पता है।
पहले समय में लोग सयुंक्त परिवारों में रहते थे और बड़े बुजुर्गों के नुस्खों से ही बहुत सी बीमारयों का इलाज हो जाता था। इसीलिए दादी माँ के खजाने इतने प्रसिद्ध हैं।
एकल परिवारों में रहने वाले माँ-बाप को यह तो पता होता है की बच्चे की मालिश जरुरी है मगर उनमे मालिश से सम्बंधित बारीक़ जानकारियोँ का आभाव है।
बहुत सी माताएं नहीं जानती है की बच्चे की मालिश करने के लिए कौन सा तेल सबसे उपयुक्त है। और चूँकि वे एकल परिवारों में रहती हैं, वे किसी से पूछ भी नहीं सकती हैं।
अगर आप भी इसी दुविधा में है की अपने शिशु को किस तेल से मालिश करें तो सबसे अच्छा रहेगा तो आप की जानकारी के लिए हम आज आप को बताएँगे बच्चों की मालिश करने के लिए सबसे बेहतरीन तेल।
शिशु का मालिश करने के लिए नारियल का तेल सबसे उपयुक्त माना जाता है - विशेष कर गर्मियों के मौसम में। नारियल का तेल शिशु के शरीर को ठण्ड प्रदान करता है और ताप्ती गर्मी में शिशु के शरीर के तापमान को कम रखता है। नारियल के तेल की सबसे अच्छी बात यह है की चाहे आप भारत देश के किसी भी कोने में क्यों न हो, यह आसानी से उपलब्ध हो जाती है। नारियल के तेल के आलावा आप अपने शिशु के मालिश के लिए तिल का तेल, जैतून का तेल, और बादाम का तेल भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
चलिए यह तो हो गयी गर्मियों की बात। अब हम बात करते हैं ठण्ड के दिनों के लिए। ठण्ड के दिनों में शिशु की मालिश ऐसे तेल से करनी चाहिए जो शिशु के शरीर को गरम रखे और उसे ठण्ड मौसम से बचाये भी। सरसों के तेल इस लिहाज से ठण्ड के दिनों में शिशु के मालिश के लिए सबसे उपयुक्त है। यह शिशु के शरीर को गरम रखता है। सरसों के तेल से शिशु को मिलने वाले फायदे को बढ़ाने के लिए आप चाहें तो सरसों के तेल को लहसुन और मेथी के दानो के साथ गरम कर सकते हैं। लहसुन में ऐसे तत्त्व होते हैं जिसमे antiviral और anti-bacterial विशेषता होती है और इस वजह से यह शिशु के रोग प्रतिरोधक छमता को भी बढ़ाता है। मेथी के दानो की विशेषता यह है की यह शिशु के शरीर को आराम पहुँचता है - और सरसों के तेल की विशेषता यह है की यह शिशु के शरीर को गरम रखता है।
अगर आप के शिशु की त्वचा बहुत संवेदनशील है - तो सरसों के तेल से उसके शरीर को तकलीफ हो सकती है। कुछ वनस्पति तेल जैसे की जैतून का तेल और सूरजमुखी के तेल में oleic acid नमक एक तत्त्व होता है जो शिशु के नाजुक शरीर को बेहद सुशख बना देता है। ऐसे में बेहतर यह होगा की शिशु को मालिश करने के लिए इन वनस्पति तेलों का इस्तेमाल ना किया जाये। बल्कि वो वनस्पति तेलों का इस्तेमाल किया जाये जिनमें oleic acid की मात्रा बहुत कम होती है और इसके बदले linoleic acid की मात्रा ज्यादा होती है। वनस्पति तेल जिनमे linoleic acid की मात्रा अधिक होती है वो तेल संवेदनशील त्वचा के लिए सबसे बेहतरीन होते हैं।
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8 लक्षण जो बताएं की बच्चे में बाइपोलर डिसऑर्डर है। किसी बच्चे के व्यवहार को देखकर इस निष्कर्ष पर पहुंचना कि उस शिशु को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder), गलत होगा। चिकित्सीय जांच के द्वारा ही एक विशेषज्ञ (psychiatrist) इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि बच्चे को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) है या नहीं।
अस्थमा होने की स्थिति में शिशु को तुरंत आराम पहुचने के घरेलु उपाय। अपने बच्चे को अस्थमा के तकलीफ से गुजरते देखना किस माँ-बाप के लिए आसान होता है? सही जानकारी के आभाव में शिशु का जान तक जा सकता है। घर पे प्रतियेक व्यक्ति को अस्थमा के प्राथमिक उपचार के बारे में पता होना चाहिए ताकि आपातकालीन स्थिति में शिशु को जीवन रक्षक दवाइयां प्रदान की जा सकें।
विटामिन ई - बच्चों में सीखने की क्षमता को बढ़ता है। उनके अंदर एनालिटिकल (analytical) दृष्टिकोण पैदा करता है, जानने की उक्सुकता पैदा करता है और मानसिक कौशल संबंधी छमता को बढ़ता है। डॉक्टर गर्भवती महिलाओं को ऐसे आहार लेने की सलाह देते हैं जिसमें विटामिन इ (vitamin E) प्रचुर मात्रा में होता है। कई बार अगर गर्भवती महिला को उसके आहार से पर्याप्त मात्रा में विटामिन ई नहीं मिल रहा है तो विटामिन ई का सप्लीमेंट भी लेने की सलाह देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि विटामिन ई की कमी से बच्चों में मानसिक कौशल संबंधी विकार पैदा होने की संभावनाएं पड़ती हैं। प्रेग्नेंट महिला को उसके आहार से पर्याप्त मात्रा में विटामिन ई अगर मिले तो उसकी गर्भ में पल रहे शिशु का तांत्रिका तंत्र संबंधी विकार बेहतर तरीके से होता है।
मां बनने के बाद महिलाओं के शरीर में अनेक प्रकार के बदलाव आते हैं। यह अधिकांश बदलाव शरीर में हो रहे हार्मोनअल (hormonal) परिवर्तन की वजह से होते हैं। और अगले कुछ दिनों में जब फिर से शरीर में हार्मोन का स्तर सामान्य हो जाता है तो यह समस्याएं भी खत्म होनी शुरू हो जाती है। इनमें से कुछ समस्याएं ऐसी हैं जो एक मां को अक्सर बहुत परेशान कर देती है। इन्हीं में से एक बदलाव है बार बार यूरिन होना। अगर आपने कुछ दिनों पहले अपने शिशु को जन्म दिया है तो हो सकता है आप भी बार-बार पेशाब आने की समस्या से पीड़ित हो।
नौ महीने बच्चे को अपनी कोख में रखने के बाद, स्त्री का शारीर बहुत थक जाता है और कमजोर हो जाता है। शिशु के जन्म के बाद माँ की शारीरिक मालिश उसके शारीर की थकान को कम करती है और उसे बल और उर्जा भी प्रदान करती है। मगर सिजेरियन डिलीवरी के बाद शारीर के जख्म पूरी तरह से भरे नहीं होते हैं, इस स्थिति में यह सावल आप के मन में आ सकता है की सिजेरियन डिलीवरी के बाद मालिश कितना सुरक्षित। इस लेख में हम इसी विषय पे चर्चा करेंगे।
कुछ बातों का ख्याल रख आप अपने बच्चों की बोर्ड एग्जाम की तयारी में सहायता कर सकती हैं। बोर्ड एग्जाम के दौरान बच्चों पे पढाई का अतिरिक्त बोझ होता है और वे तनाव से भी गुजर रहे होते हैं। ऐसे में आप का support उन्हें आत्मविश्वास और उर्जा प्रदान करेगा। साथ ही घर पे उपयुक्त माहौल तयार कर आप अपने बच्चों की सफलता सुनिश्चित कर सकती हैं।
शिशु की खांसी एक आम समस्या है। ठंडी और सर्दी के मौसम में हर शिशु कम से कम एक बार तो बीमार पड़ता है। इसके लिए डोक्टर के पास जाने की अव्शाकता नहीं है। शिशु खांसी के लिए घर उपचार सबसे बेहतरीन है। इसका कोई side effects नहीं है और शिशु को खांसी, सर्दी और जुकाम से रहत भी मिल जाता है।
सांस के जरिये भाप अंदर लेने से शिशु की बंद नाक खुलने में मदद मिलती है। गर्मा-गर्म भाप सांस के जरिये अंदर लेने से शिशु की नाक में जमा बलगम ढीला हो जाता है। इससे बलगम (कफ - mucus) के दुवारा अवरुद्ध वायुमार्ग खुल जाता है और शिशु बिना किसी तकलीफ के साँस ले पाता है।
बच्चों का भाप (स्टीम) के दुवारा कफ निकालने के उपाय करने के दौरान भाप (स्टीम) जब शिशु साँस दुवारा अंदर लेता है तो उसके छाती में जमे कफ (mucus) के कारण जो जकड़न है वो ढीला पड़ जाता है। भाप (स्टीम) एक बहुत ही प्राकृतिक तरीका शिशु को सर्दी और जुकाम (colds, chest congestion and sinusitus) में रहत पहुँचाने का। बच्चों का भाप (स्टीम) के दुवारा कफ निकालने के उपाय
ठण्ड के दिनों में बच्चों का अगर उचित ख्याल न रखा जाये तो वे तुरंत बीमार पड़ सकते हैं। कुछ विशेष स्वधानियाँ अगर आप बरतें तो आप का शिशु ठण्ड के दिनों में स्वस्थ और सुरक्षित रह सकता है। जानिए इस लेख में ठंड में बच्चों को गर्म रखने के उपाय।
मसूर दाल की खिचड़ी एक अच्छा शिशु आहार है (baby food)| बच्चे के अच्छे विकास के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्वों की जरूरतों की पूर्ति होती है। मसूर दाल की खिचड़ी को बनाने के लिए पहले से कोई विशेष तयारी करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। जब भी आप के बच्चे को भूख लगे आप झट से 10 मिनट में इसे त्यार कर सकते हैं।
दूध वाली सेवई की इस recipe को 6 से 12 महीने के बच्चों को ध्यान मे रख कर बनाया गया है| सेवई की यह recipe है छोटे बच्चों के लिए सेहत से भरपूर| अब नहीं सोचना की 6 से 12 महीने के बच्चों को खाने मे क्या दें|
आठ महीने की उम्र तक कुछ बच्चे दिन में दो बार तो कुछ बच्चे दिन में तीन बार आहार ग्रहण करने लगते हैं। अगर आप का बच्चा दिन में तीन बार आहार ग्रहण नहीं करना चाहता तो जबरदस्ती ना करें। जब तक की बच्चा एक साल का नहीं हो जाता उसका मुख्या आहार माँ का दूध यानि स्तनपान ही होना चाहिए। संतुलित आहार चार्ट
माँ के दूध से मिलने वाले होर्मोनेस और एंटीबाडीज बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरुरी है| ये बच्चे के शरीर को viruses और bacteria से मुकाबला करने में सक्षम बनता है| स्तनपान वाले बच्चों में कान का infection, साँस की बीमारी और diarrhea कम होता है| उन बच्चों को डॉक्टर को भी कम दिखाना पड़ता है|
नवजात बच्चों द्वारा बार-बार उल्टी करना सामान्य बात है क्योंकि वे अपने खाद्य - पदार्थ के साथ में तालमेल बिठा रहे होते हैं और उनका शरीर विकसित हो रहा होता है। उलटी के गंभीर लक्षण होने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श ले।
डेंगू महामारी एक ऐसी बीमारी है जो पहले तो सामान्य ज्वर की तरह ही लगता है अगर इसका इलाज सही तरह से नहीं किया गया तो इसका प्रभाव शरीर पर बहुत भयानक रूप से पड़ता है यहाँ तक की यह रोग जानलेवा भी हो सकता है। डेंगू का विषाणु मादा टाइगर मच्छर के काटने से फैलता है। जहां अधिकांश मच्छर रात के समय सक्रिय होते हैं, वहीं डेंगू के मच्छर दिन के समय काटते हैं।
अंजनहारी को आम तौर पर गुहेरी या बिलनी भी कहते हैं। यह रोग अक्सर बच्चो की आँखों के ऊपरी या निचली परत पर लाल रंग के दाने के रूप में उभर कर सामने आते हैं। अंजनहारी जैसे रोग संक्रमण की वजह से फैलते हैं
दस्त के दौरान बच्चा ठीक तरह से भोजन पचा नहीं पाता है और कमज़ोर होता जाता है। दस्त बैक्टीरियल संक्रमण बीमारी है। इस बीमारी के दौरान उसको दिया गया ८०% आहार दस्त की वजह से समाप्त हो जाता है। इसी बैलेंस को बनाये रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण आहार हैं जिससे दस्त के दौरान आपके बच्चे का पेट भरा रहेगा।
बच्चों में होने वाली कुछ खास बिमारियों में से सीलिएक रोग (Celiac Disease ) एक ऐसी बीमारी है जिसे सीलिएक स्प्रू या ग्लूटन-संवेदी आंतरोग (gluten sensitivity in the small intestine disease) भी कहते हैं। ग्लूटन युक्त भोजन लेने के परिणामस्वरूप छोटी आंत की परतों को यह क्षतिग्रस्त (damages the small intestine layer) कर देता है, जो अवशोषण में कमी उत्पन्न करता (inhibits food absorbtion in small intestine) है। ग्लूटन एक प्रोटीन है जो गेहूं, जौ, राई और ओट्स में पाया जाता है। यह एक प्रकार का आटो इम्यून बीमारी (autoimmune diseases where your immune system attacks healthy cells in your body by mistake) है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपने ही एक प्रोटीन के खिलाफ एंटी बाडीज (antibody) बनाना शुरू कर देती है।