Category: शिशु रोग
By: Vandana Srivastava | ☺8 min read
वायरल संक्रमण हर उम्र के लोगों में एक आम बात है। मगर बच्चों में यह जायद देखने को मिलता है। हालाँकि बच्चों में पाए जाने वाले अधिकतर संक्रामक बीमारियां चिंताजनक नहीं हैं मगर कुछ गंभीर संक्रामक बीमारियां भी हैं जो चिंता का विषय है।

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से आजकल पूरे वातावरण में अचानक से बदलाव हो रहें हैं और इसके साथ ही साथ पूरा वातावरण भी प्रदूषित (the entire environment is getting pouted) है।
खाने पीने की चीजों में भी अशुद्धि और मिलावट है (there is adulteration in food) , जिससे हमारे बच्चों की शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता घटती ही जा रही है (natural immunity in children is getting decreased)।
एक छोटा सा नाज़ुक बच्चा इन सारे परिवर्तन को एक साथ सहन नहीं कर पाता है जिसके फलस्वरूप वह बीमार पड़ जाता है (child gets infection)।
यह बीमारियां भी विभिन्न प्रकार की होती हैं जो बच्चे को पूरी तरह से अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन्ही बीमारियों में वायरल बुखार (viral infection) भी एक बीमारी है।
वायरल संक्रमण (viral infection) हर उम्र के लोगों में एक आम बात है। मगर बच्चों में यह जायद देखने को मिलता है (viral infection is common in children))। हालाँकि बच्चों में पाए जाने वाले अधिकतर संक्रामक बीमारियां चिंताजनक नहीं हैं इनमें से कुछ आम संक्रामक बीमारियां है सर्दी खांसी, झुकाम, उलटी, दस्त और भुखार (common infection in children include cold, cough, fever, vomiting and lose motion)। इनके आलावा कुछ गंभीर संक्रामक बीमारियां (serious infectious disease in children) भी हैं जो चिंता का विषय है। जैसे - चेचक (missiles), जो वैक्सीन के कारण अब उतना नहीं देखने को मिलता है (vaccine is effective in controlling serious infections)।
अधिकतर संक्रामक बीमारियां इसलिए भी चिंता का विषय नहीं हैं क्योँकि वे समय के साथ अपने आप ही ठीक हो जाएंगी। (most infectious disease go away on their own after a set duration that varies from infection to infection) बहुत सी संक्रामक बीमारियां इतनी अलग हैं की उनके डायग्नोसिस (diagnosing viral infection is not required since symptoms are enough to identify them) के लिए किसी टेस्ट की जरुरत ही नहीं है। उनके लक्षण ही काफी हैं उनकी पहचान के लिए।
हर बच्चा कभी ना कभी बीमार पड़ता ही रहता है। वो इसलिए क्यूंकि उसके शरीर में बिमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक छमता पूरी तरह से डेवेलोप नहीं हुई (immune system is not fully developed in children) है। इसके आलावा उन्हें ये नहीं पता होता की गन्दगी क्या होती है। वे जमीन पर पड़ी कुछ भी गन्दी वस्तु मुँह में डाल लेते हैं जिससे संक्रमण उनके शरीर में प्रवेश कर जाता (children body get infected when put dirty things lying on the floor in their mouth) है। हमें गन्दी वस्तुओं को, जिनसे संक्रमण का खतरा हो, बच्चों के पहुँच से दूर रखना चाहिए। बीमारी से बचाव ही सबसे बेहतरीन इलाज है। Keeping children in hygienic condition is the best way to protect them.

वायरल बुखार एक एक्यूट वायरल संक्रमण (viral fever is acute viral infection) है। इसमें संक्रमित विषाणु शरीर में तेजी से फैलते हैं और कुछ ही दिनों में पूरी तरह खत्म भी हो जाते हैं।

वायरल होने पर रोगी का तांत्रिक तंत्र भी प्रभावित हो सकता है। शिशुओं के लिए वायरल और अधिक कष्टदायी होता है। इससे वे पीले तथा सुस्त पड़ जाते हैं। उन्हें श्वसन तथा स्तनपान में कठिनाई के साथ ही उल्टी-दस्त भी हो सकते हैं। इसके अलावा शिशुओं में निमोनिया, कंठशोथ और कर्णशोथ जैसी जटिलताएँ भी पैदा हो जाती हैं। किसी अन्य रोग के साथ मिलकर वायरल बुखार रोगी की हालत को और भी खराब कर देता है। उदाहरण के लिए यदि खाँसी के रोगी बच्चे को वायरल हो जाए तो उसका तंत्रिका तंत्र भी प्रभावित हो सकता है।
संक्रमण कई तरह के होते हैं। हर बीमारी की अवधि अलग अलग होती है। वायरल बुखार कम से कम तीन दिन और अधिक से अधिक दो सप्ताह तक रह सकता है। वायरल बुखार को किसी दवा से या एंटीबायोटिक से ठीक नहीं किया जा सकता है। परन्तु वायरल बुखार के दौरान बच्चों की प्रतिरोधक छमता बहुत घाट जाती है, जिस कारण ये जरुरी होता है की उनको सावधानी के तौर पे, डॉक्टर की सलाह पर दवाई दिया जाये। परन्तु बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण हुई बीमारी को एंटीबायोटिक के द्वारा ठीक किया जा सकता है।

बच्चों में वायरल बुखार होने पर तापमान को बिना किसी दवा के मदद के भी निचे लाया जा सकता है। परन्तु इस का मतलब यह नहीं की बीमारी का इलाज हो गया। बुखार में तापमान इन्फेक्शन से लड़ने में मदद करता है। मगर तापमान बहुत जयादा हो जाये तो बच्चों के शरीर पर इसका बुरा आसार भी हो सकता है। इससे डिहाइड्रेशन भी हो सकता है। इस परिस्थिति में तापमान की निचे लाना जरुरी हो जाता है।

बिना किसी दवा के, घरेलू उपचार के द्वारा भी तापमान को निचे लाया जा सकता है - home remedy to bring down high temperature in small children:
अगर आप के बच्चे का तापमान किसी भी वक़्त 100.4 या फिर इससे अधिक पहुँच जाये तो आप को तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। ये एक मेडिकल एमर्जेन्सी (medical emergency) है। अगर आप का बच्चा 3 महीने से कम उम्र का है तो डॉक्टर को यह बात आवश्य बताएं (consult doctor immediately if your child is within the age of 3 months and inform specifically about the age)।
बुखार कम हो या ज्यादा हो, अगर आप के बच्चे को बुखार है तो उसे घर में ही रखें। बुखार किसी भी तरह का हो, वह संक्रामक है। आपके बीमार बच्चे के द्वारा दूसरे बच्चों को भी संक्रमण लग सकता है।


अगर आपके बच्चे में उपर्युक्त लक्षण दिखाई पड़ते हैं तो आप उसका पहले घरेलू इलाज करें और आराम न मिलने पर तुरंत डॉक्टर के पास ले जा कर उसका चेक अप करवाएं।
मां के दूध पर निर्भर रहना और फाइबर का कम सेवन करने के कारण अक्सर बच्चे को कब्ज की समस्या बनी रहती है। ठोस आहार देने के बावजूद बच्चे को सामान्य होने में समय लगता है। इन दिनों उसे मल त्यागने में काफी दिक्कत हो सकती है।
विटामिन डी (Vitamin D) एक ऐसा विटामिन है जिसके लिए डॉक्टर की परामर्श की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसे कोई भी आसानी से बिना मेडिकल प्रिसक्रिप्शन के दवा की दुकान से खरीद सकता है। विटामिन डी शरीर के कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से कार्य करने में कई तरह से मदद करता है। उदाहरण के लिए यह शरीर को कैल्शियम को अवशोषित करने में सहायता करता है। मजबूत और सेहतमंद हड्डियों के निर्माण में सहायता करता है। तथा यह विटामिन शरीर को कई प्रकार के संक्रमण से भी सुरक्षा प्रदान करता है। लेकिन अगर आप गर्भवती हैं या फिर गर्भ धारण करने का प्रयास कर रही है तो विटामिन डी (Vitamin D) के इस्तेमाल से पहले अपने डॉक्टर से अवश्य परामर्श कर ले।
बच्चों को उनके उम्र और वजन के अनुसार हर दिन 700-1000 मिग्रा कैल्शियम की आवश्यकता पड़ती है जिसे संतुलित आहार के माध्यम से आसानी से पूरा किया जा सकता है। एक साल से कम उम्र के बच्चों को 250-300 मिग्रा कैल्शियम की जरुरत पड़ती है। किशोर अवस्था के बच्चों को हर दिन 1300 मिग्रा, तथा व्यस्क और बुजुर्गों को 1000-1300 मिग्रा कैल्शियम आहारों के माध्यम से लेने की आवश्यकता पड़ती है।
ADHD से प्रभावित बच्चे को ध्यान केन्द्रित करने या नियमों का पालन करने में समस्या होती है। उन्हें डांटे नहीं। ये अपने असहज सवभाव को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं जैसे की एक कमरे से दुसरे कमरे में बिना वजह दौड़ना, वार्तालाप के दौरान बीच-बीच में बात काटना, आदि। लेकिन थोड़े समझ के साथ आप एडीएचडी (ADHD) से पीड़ित बच्चों को व्याहारिक तौर पे बेहतर बना सकती हैं।
कुछ साधारण से उपाय जो दूर करें आप के बच्चे की खांसी और जुकाम को पल में - सर्दी जुकाम की दवा - तुरंत राहत के लिए उपचार। बच्चों की तकलीफ को दूर करने के लिए बहुत से आयुर्वेदिक घरेलु उपाय ऐसे हैं जो आप के किचिन (रसोई) में पहले से मौजूद है। बस आप को ये जानना है की आप उनका इस्तेमाल किस तरह कर सकती हैं अपने शिशु के खांसी को दूर करने के लिए।
अल्बिनो (albinism) से प्रभावित बच्चों की त्वचा का रंग हल्का या बदरंग होता है। ऐसे बच्चों को धुप से बचा के रखने की भी आवश्यकता होती है। इसके साथ ही बच्चे को दृष्टि से भी सम्बंधित समस्या हो सकती है। जानिए की अगर आप के शिशु को अल्बिनो (albinism) है तो किन-किन चीजों का ख्याल रखने की आवश्यकता है।
माँ बनना बहुत ही सौभाग्य की बात है। मगर माँ बनते ही सबसे बड़ी चिंता इस बात की होती है की अपने नन्हे से शिशु की देख भाल की तरह की जाये ताकि बच्चा रहे स्वस्थ और उसका हो अच्छा शारीरिक और मानसिक विकास।
10वीं में या 12वीं की बोर्ड परीक्षा में ज्यादा अंक लाना उतना मुश्किल भी नहीं अगर बच्चा सही और नियमित ढंग से अपनी तयारी (पढ़ाई) करे। शुरू से ही अगर बच्चा अपनी तयारी प्रारम्भ कर दे तो बोर्ड एग्जाम को लेकर उतनी चिंता और तनाव का माहौल नहीं रहेगा।
बचपन में शिशु का शारीर बहुत तीव्र गति से विकसित होता है। बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में कैल्शियम एहम भूमिका निभाता है। बच्चों के active growth years में अगर उन्हें उनके आहार से कैल्शियम न मिले तो बच्चों का विकास प्रभावित हो सकता है।
गर्भवती महिलाएं जो भी प्रेगनेंसी के दौरान खाती है, उसकी आदत बच्चों को भी पड़ जाती है| भारत में तो सदियोँ से ही गर्भवती महिलायों को यह नसीहत दी जाती है की वे चिंता मुक्त रहें, धार्मिक पुस्तकें पढ़ें क्योँकि इसका असर बच्चे पे पड़ता है| ऐसा नहीं करने पे बच्चे पे बुरा असर पड़ता है|
मछली में omega-3 fatty acids होता है जो बढ़ते बच्चे के दिमाग के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है| ये बच्चे के nervous system को भी मजबूत बनता है| मछली में प्रोटीन भी भरपूर होता है जो बच्चे के मांसपेशियोँ के बनने में मदद करता है और बच्चे को तंदरुस्त और मजबूत बनता है|शिशु आहार - baby food
12 महीने या 1 साल के बच्चे को अब आप गाए का दूध देना प्रारम्भ कर सकते हैं और साथ ही उसके ठोस आहार में बहुत से व्यंजन और जोड़ सकते हैं। बढ़ते बच्चों के माँ-बाप को अक्सर यह चिंता रहती है की उनके बच्चे को सम्पूर्ण पोषक तत्त्व मिल पा रहा है की नहीं? इसीलिए 12 माह के बच्चे का baby food chart (Indian Baby Food Recipe) बच्चों के आहार सारणी की जानकारी दी जा रही है। संतुलित आहार चार्ट
बच्चे के पांच महीने पुरे करने पर उसकी शारीरिक जरूरतें भी बढ़ जाती हैं। ऐसे में जानकारी जरुरी है की बच्चे के अच्छी देख-रेख की कैसे जाये। पांचवे महीने में शिशु की देखभाल में होने वाले बदलाव के बारे में पढ़िए इस लेख में।
गलतियों से सीखो। उनको दोहराओ मत। ऐसी ही कुछ गलतियां हैं। जो अक्सर माता-पिता करते हैं बच्चे को अनुशासित बनाने में।
अगर आप आपने कल्पनाओं के पंखों को थोड़ा उड़ने दें तो बहुत से रोचक कलाकारी पत्तों द्वारा की जा सकती है| शुरुआत के लिए यह रहे कुछ उदहारण, उम्मीद है इन से कुछ सहायता मिलेगी आपको|
हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा बी (HIB) वैक्सीन (Hib Vaccination। Haemophilus Influenzae Type b in Hindi) - हिंदी, - हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा बी (HIB) का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
चावल का पानी (Rice Soup, or Chawal ka Pani) शिशु के लिए एक बेहतरीन आहार है। पचाने में बहुत ही हल्का, पेट के लिए आरामदायक लेकिन पोषक तत्वों के मामले में यह एक बेहतरीन विकल्प है।
खिचड़ी बनाने की recipe आसान है और छोटे बच्चों को भी खूब पसंद आता है। टेस्टी के साथ साथ इसमें भरपूर मात्रा में पोषक तत्त्व भी होते हैं जो बढ़ते बच्चों के लिए फायदेमंद हैं। खिचड़ी में आप को प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट, फाइबर, विटामिन C कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और पोटैशियम मिलेंगे। समझ लीजिये की खिचड़ी well-balanced food का complete पैकेज है।
बच्चों को दातों की सफाई था उचित देख रेख के बारे में बताना बहुत महत्वपूर्ण है। बच्चों के दातों की सफाई का उचित ख्याल नहीं रखा गया तो दातों से दुर्गन्ध, दातों की सडन या फिर मसूड़ों से सम्बंधित कई बिमारियों का सामना आप के बच्चे को करना पड़ सकता है।
अगर बच्चे को किसी कुत्ते ने काट लिया है तो 72 घंटे के अंतराल में एंटी रेबीज वैक्सीन का इंजेक्शन अवश्य ही लगवा लेना चाहिए। डॉक्टरों के कथनानुसार यदि 72 घंटे के अंदर में मरीज इंजेक्शन नहीं लगवाता है तो, वह रेबीज रोग की चपेट में आ सकता है।