Category: बच्चों की परवरिश
By: Salan Khalkho | ☺5 min read
अगर आप का बच्चा पढाई में मन नहीं लगाता है, होमवर्क करने से कतराता है और हर वक्त खेलना चाहता है तो इन 12 आसान तरीकों से आप अपने बच्चे को पढाई के लिए अनुशाषित कर सकते हैं।

पिछले कुछ दशकों में केवल स्कूलों में ही नहीं वरन घरों में भी पढ़ाई का माहौल बदला है। आज के दौर में अभिभावक पढ़ाई को प्राथमिकता देते हैं।
बचपन से ही बच्चों में अगर पढ़ाई की नीव न रखी गयी तो बच्चे बड़े कक्षाओं में जाने के बाद पढ़ाई की अहमियत को नहीं समझेंगे।
पढ़ाई में competition कितना बढ़ गया है, ये तो आप जानते ही होंगे। हमारा और आप का जमाना अलग था। हमारे समय में भी competition थी मगर इतनी नहीं।
आज समय बदल गया है। आज तो जमाना यह है की हर बच्चे को कोई भी नौकरी के लिए उच्च शिक्षा जैसे की इंजीनियरिंग या MBA करना आवश्यक हो गया है।
जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए अब साधारण ग्रेजुएशन से काम नहीं चलेगा।
बचपन से अगर आप घर में बच्चे को पढ़ाई का माहौल देंगे तो वो पढ़ाई की एहमियत को समझेगा। घर का माहौल अगर पढ़ाई वाला होगा तो बच्चे को पढ़ाई में एकाग्र होने का मौका मिलेगा।
अगर आप ने अपने बच्चे के लिए tuition का इन्तेजाम किया है तो भी रखें इन बातों का ख्याल।
आज के दौर में जिंदगी बहुत व्यस्त हो गयी है। अगर पिता अपने काम में देर तक ऑफिस में उलझे रहते हैं और माँ भी अगर अपने काम में व्यस्त है तो बच्चे को पढ़ाई के लिए कौन प्रोत्साहित करेगा?
घर पे बच्चों के लिए पढ़ाई का माहौल बनाने के लिए टिप्स:
अक्सर देखा गया है की जो लोग अपने जिंदगी में सफलता के शिखर पे पहुँचते हैं, उनके बच्चे औरों के मुकाबले कही पीछे रह जाते हैं।
ऐसा इसलिए क्योँकि इन लोगों ने सफलता की चाह में अपने परिवार को को समय नहीं दिया। जब बच्चों को सही मार्गदर्शन की आवश्यकता थी तो ये लोग अपने काम में व्यस्त थे।
अगर आप के परिवार में आप दोनों पति-पत्नी अपने काम में व्यस्त हैं तो आप दोनों को बात करनी होगी और यह कुछ इस तरह का सामंजस्य स्थापित करना होगा ताकि बच्चे को आप दोनों का साथ मिल सके।
आज के दौर में घरों में पढ़ाई का माहौल बना कर रख पाना माँ और बाप दोनों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।
यह चुनौती सिर्फ माँ बाप की बदलती प्राथमिकताओं के कारण ही पैदा नहीं हुई है, बल्कि इस लिए भी पैदा हुई है क्योँकि शिक्षा का आयाम भी बहुत हद तक बदल गया है।
आज के दौर में महंगाई ने सबकी कमर तोड़ दी है। इसने सिर्फ घर के बड़ों को ही नहीं वरन, बच्चों के पढ़ाई को भी प्रभावित किया है।
बड़े शहरों में लोग छोटे से flat में सिमट के रहने को मजबूर हो गए हैं। ऐसे में एक ही कमरे में बच्चे अपना पढ़ाई भी करते हैं और बड़े बैठ के टीवी भी देखते हैं।
अगर घर में कई कमरे हैं तो बच्चों के पढ़ाई के लिए अलग सा कमरा निर्धारित करें। मगर उतने कमरे न हो तो आप पढ़ाई का समय निर्धारित कर सकते हैं।
पढ़ाई का समय वो हो जब घर पे कम से कम लोग हों ताकि बच्चों को पढ़ाई के लिए एकांत का समय मिल सके।

बच्चों के पढ़ाई में सबसे जयदा विध्न उस समय पड़ता है जब घर पे कोई मेहमान आ जाये। बच्चों के पढ़ाई के वक्त किसी भी मेहमान को घर आने का न्योता ना दें।
अगर कोई मेहमान आ भी जाये तो उनके जाने के बाद बच्चे के अधूरे छूटे पढ़ाई को पूरा करने में बच्चे की मदद करें।
अगर आप को किसी काम से घर से बहार जाना हो तो कोशिश करें की बच्चों के स्कूल से वापस घर आने से पहले ही आप घर वापस आ जायें। या तो फिर बच्चों के पढ़ाई ख़त्म कर लेने के बढ़ बहार का काम निपटाएं।
बच्चों के पढ़ाई के वक्त आप भी कोई किताब पढ़ें। इसका बच्चे पे मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है और आप का बच्चा और भी ज्यादा मन लगा के पढने लगता है।
अगर आप गहरा का काम करते करते थक जाती हैं, तो आप थोड़ा सा आराम करने के लिए इस समय का उपयोग कर सकती। इस समय आप आरामदायक कुरी पे बैठ के कोई मनपसंद पुस्तक या अख़बार पढ़ सकती हैं।
अगर आप किटी पार्टी की शौक़ीन हैं तो आप को बच्चे के पढ़ाई के लिए अपने शौक से समझौता करने की जरुरत नहीं है। अपने घर पे किटी पार्टी का आयोजन ऐसे समय पे करें जब बच्चे स्कूल पे हों।
लेकिन अगर ऐसा संभव नहीं है तो जिस कमरे में आपका बच्चा पढ़ रहा हो उस कमरे में किसी को भी जाने न दें। हाँ लेकिन बच्चे जिस कमरे मैं पढ़ रहे हों, आप दो-से-तीन बार उस कमरे में अवश्य जाएँ।
बच्चों को पता होना चाहिए की आप का ध्यान उन पे लगा हुआ है।
बच्चों के पढ़ाई के समय से पहले बच्चों को कोई भी ऐसी चीज़ न खिलाएं जिससे उन्हें सुस्ती आये। बच्चों के टेबल पे पानी की एक बोतल अवश्य रख दें। ताकि उसे पानी लेने के लिए किचिन तक ना आना पड़े।
बच्चों के पढ़ाई के दौरान हर 45 minute पे उन्हें थोड़ा रेस्ट करने को दें। Break के दौरान बच्चों से केवल पढ़ाई से सम्बंधित बातें ही करें। इससे उनका फोकस नहीं बिगड़ेगा।
अगर आप बच्चों को कहीं बहार घुमाने ले जाने के लिए plan कर रहे हैं तो ऐसे centers पे ले के जाएँ जो विशेष रूप से बच्चों के education पे design किये गए हों। ऐसी जगहों पे बच्चों को अपना एप्टीट्यूड टैस्ट करने का मौका मिलता है।
कुछ लोग आप को यह सुझाव दे सकते हैं की बच्चो जबरदस्ती पढने के लिए न बैठाएं। जब उनका खेलने का मन है तो उन्हें खेलने दें और जब पढ़ाई का मन हो तो पढने बैठाएं।
खेल के वक्त बच्चे को पढने बैठाएंगे तो वो एकाग्र हो कर पढ़ाई नहीं कर पायेगा। यह बात सही है। मगर यह भी सही है की अधिकांश बच्चों का मन पढ़ाई में कभी नहीं लगता है।
बच्चों का मन पढ़ाई में लगे उसके लिए माँ-बाप को मशकत करनी पड़ती है। भले ही बच्चो का मन पढ़ाई में न लगे, उन्हें पढ़ाई के लिए जो समय निर्धारित किया गया है, उस समय उन्हें केवल पढ़ाई करने दें और कुछ भी नहीं।
हो सकता है की बच्चे का मन पढ़ाई में न लगे, ये भी हो सकता है की बच्चा कुछ भी हासिल न करे। मगर कुछ दिनों बाद बच्चा पढ़ाई-के-लिए-निर्धारित-समय में ढल जायेगा।
फिर बच्चो को पढ़ाने के लिए आपको उसके मन पे निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। जब पढ़ाई का समय होगा तो बच्चा अपने आप उस समय पे पढने बैठ जायेगा।

जो आप के बच्चे के खेलने का समय है उसमे उन्हें आउटडोर गेम्स अपने दोस्तों के साथ खेलने दें। इस डर में न जियें की आप के बच्चों को दूसरे बच्चे गन्दी हरकत सीखा देंगे।
जो बच्चे दूसरे बच्चों के साथ नहीं खेलते, उनके आईक्यू लैवल का स्तर बहुत कम हो जाता है।

बच्चों को बहार खेलने जरूर भेजें। चाहें तो आप भी उनके साथ बहार जाएँ। इससे ना केवल आप के बच्चे का आईक्यू लैवल बढ़ेगा, बल्कि यह उसके शाररिक विकास के लिए भी जरुरी है।
जो बच्चे शारीरिक रूप से थका देने वाले खेल खेलते हैं, उनका बौद्धिक विकास बाकि बच्चों की उपेक्षा बेहतर होता है।
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एक्जिमा एक प्रकार का त्वचा विकार है जिसमें बच्चे के पुरे शारीर पे लाल चकते पड़ जाते हैं और उनमें खुजली बहुत हती है। एक्जिमा बड़ों में भी पाया जाता है, लेकिन यह बच्चों में ज्यादा देखने को मिलता है। एक्जिमा की वजह से इतनी तीव्र खुजली होती है की बच्चे खुजलाते-खुजलाते वहां से खून निकल देते हैं लेकिन फिर भी आराम नहीं मिलता। हम आप को यहाँ जो जानकारी बताने जा रहे हैं उससे आप अपने शिशु के शारीर पे निकले एक्जिमा का उपचार आसानी से कर सकेंगे।
गर्भावस्था में ब्लड प्रेशर का उतार चढाव, माँ और बच्चे दोनों के लिए घातक हो सकता है। हाई ब्लड प्रेशर में बिस्तर पर आराम करना चाहिए। सादा और सरल भोजन करना चाहिए। पानी और तरल का अत्याधिक सेवन करना चाहिए। नमक का सेवन सिमित मात्र में करना चाहिए। लौकी का रस खाली पेट पिने से प्रेगनेंसी में बीपी की समस्या को कण्ट्रोल किया जा सकता है।
बच्चे के जन्म के बाद माँ को ऐसे आहार खाने चाहिए जो माँ को शारीरिक शक्ति प्रदान करे, स्तनपान के लिए आवश्यक मात्र में दूध का उत्पादन में सहायता। लेकिन आहार ऐसे भी ना हो जो माँ के वजन को बढ़ाये बल्कि गर्भावस्था के कारण बढे हुए वजन को कम करे और सिजेरियन ऑपरेशन की वजह से लटके हुए पेट को घटाए। तो क्या होना चाहिए आप के Diet After Pregnancy!
कुछ बातों का ख्याल रख आप अपने बच्चों की बोर्ड एग्जाम की तयारी में सहायता कर सकती हैं। बोर्ड एग्जाम के दौरान बच्चों पे पढाई का अतिरिक्त बोझ होता है और वे तनाव से भी गुजर रहे होते हैं। ऐसे में आप का support उन्हें आत्मविश्वास और उर्जा प्रदान करेगा। साथ ही घर पे उपयुक्त माहौल तयार कर आप अपने बच्चों की सफलता सुनिश्चित कर सकती हैं।
शिशु में जुखाम और फ्लू का कारण है विषाणु (virus) का संक्रमण। इसका मतलब शिशु को एंटीबायोटिक देने का कोई फायदा नहीं है। शिशु में सर्दी, जुखाम और फ्लू के लक्षणों में आप अपने बच्चे का इलाज घर पे ही कर सकती हैं। सर्दी, जुखाम और फ्लू के इन लक्षणों में अपने बच्चे को डॉक्टर को दिखाएं।
शिशु को 15-18 महीने की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को मम्प्स, खसरा, रूबेला से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
शिशु को 6 महीने की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को पोलियो, हेपेटाइटिस बी और इन्फ्लुएंजा से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
स्तनपान या बोतल से दूध पिने के दौरान शिशु बहुत से कारणों से रो सकता है। माँ होने के नाते यह आप की जिमेदारी हे की आप अपने बच्चे की तकलीफ को समझे और दूर करें। जानिए शिशु के रोने के पांच कारण और उन्हें दूर करने के तरीके।
सावधान - जानिए की वो कौन से आहार हैं जो आप के बच्चों के लिए हानिकारक हैं। बढते बच्चों का शारीर बहुत तीव्र गति से विकसित होता है। ऐसे में बच्चों को वो आहार देना चाहिए जिससे बच्चे का विकास हो न की विकास बाधित हो।
उपमा की इस recipe को 6 month से लेकर 12 month तक के baby को भी खिलाया जा सकता है। उपमा बनाने की सबसे अच्छी बात यह है की इसे काफी कम समय मे बनाया जा सकता है और इसको बनाने के लिए बहुत कम सामग्रियों की आवश्यकता पड़ती है। इसे आप 10 से 15 मिनट मे ही बना लेंगे।
9 महीने के बच्चों की आहार सारणी (9 month Indian baby food chart) - 9 महीने के अधिकतर बच्चे इतने बड़े हो जाते हैं की वो पिसे हुए आहार (puree) को बंद कर mashed (मसला हुआ) आहार ग्रहण कर सके। नौ माह का बच्चा आसानी से कई प्रकार के आहार आराम से ग्रहण कर सकता है। इसके साथ ही अब वो दिन में तीन आहार ग्रहण करने लायक भी हो गया है। संतुलित आहार चार्ट
6 से 7 महीने के बच्चे में जरुरी नहीं की सारे दांत आये। ऐसे मैं बच्चों को ऐसी आहार दिए जाते हैं जो वो बिना दांत के ही आपने जबड़े से ही खा लें। 7 महीने के baby को ठोस आहार के साथ-साथ स्तनपान करना जारी रखें। अगर आप बच्चे को formula-milk दे रहें हैं तो देना जारी रखें। संतुलित आहार चार्ट
जो सबसे असहनीय पीड़ा होती है वह है बच्चे को टीका लगवाना। क्योंकि यह न केवल बच्चों के लिए बल्कि माँ के लिए भी कष्टदायी होता है।
मां का दूध बच्चे के लिए सुरक्षित, पौष्टिक और सुपाच्य होता है| माँ का दूध बच्चे में सिर्फ पोषण का काम ही नहीं करता बल्कि बच्चे के शरीर को कई प्रकार के बीमारियोँ के प्रति प्रतिरोधक क्षमता भी प्रदान करता है| माँ के दूध में calcium होता है जो बच्चों के हड्डियोँ के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है|
गर्मियों का मतलब ढेर सारी खुशियां और ढेर सारी छुट्टियां| मगर सावधानियां न बरती गयीं तो यह यह मौसम बिमारियों का मौसम बनने में समय नहीं लगाएगा| गर्मियों के मौसम में बच्चे बड़े आसानी से बुखार, खांसी, जुखाम व घमोरियों चपेट में आ जाते है|
खसरे का टीका (वैक्सीन) (measles Vaccine in Hindi) - हिंदी, - खसरे का टीका - दवा, ड्रग, उसे, जानकारी, प्रयोग, फायदे, लाभ, उपयोग, दुष्प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स, समीक्षाएं, संयोजन, पारस्परिक क्रिया, सावधानिया तथा खुराक
सेब और सूजी का खीर बड़े बड़ों सबको पसंद आता है। मगर आप इसे छोटे बच्चों को भी शिशु-आहार के रूप में खिला सकते हैं। सूजी से शिशु को प्रोटीन और कार्बोहायड्रेट मिलता है और सेब से विटामिन, मिनरल्स और ढेरों पोषक तत्त्व मिलते हैं।
ठोस आहार के शुरुवाती दिनों में बच्चे को एक बार में एक ही नई चीज़ दें। नया कोई भी भोजन पांचवे दिन ही बच्चे को दें। इस तरह से, अगर किसी भी भोजन से बच्चे को एलर्जी हो जाये तो उसका आसानी से पता लगाया जा सकता है।
आहार जो बढ़ाये बच्चों का वजन और साथ में उनके भूख को भी जगाये। बच्चे खाना खाने में नखरा करें तो खिलाएं ये आहार। इस लेख में हम इन्ही भोजनों की चर्चा करेंगे। मगर पोषण के दृष्टिकोण से एक बच्चे को सभी प्रकार के आहार को ग्रहण करना चाहिए।
ज़्यादातर 1 से 10 साल की उम्र के बीच के बच्चे चिकन पॉक्स से ग्रसित होते है| चिकन पॉक्स से संक्रमित बच्चे के पूरे शरीर में फुंसियों जैसी चक्तियाँ विकसित होती हैं। यह दिखने में खसरे की बीमारी की तरह लगती है। बच्चे को इस बीमारी में खुजली करने का बहुत मन करता है, चिकन पॉक्स में खांसी और बहती नाक के लक्षण भी दिखाई देते हैं। यह एक छूत की बीमारी होती है इसीलिए संक्रमित बच्चों को घर में ही रखना चाहिए जबतक की पूरी तरह ठीक न हो जाये|