Category: टीकाकरण (vaccination)
By: Salan Khalkho | ☺3 min read
शिशु को 10 सप्ताह (ढाई माह) की उम्र में कौन कौन से टिके लगाए जाने चाहिए - इसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहां प्राप्त करें। ये टिके आप के शिशु को कई प्रकार के खतरनाक बिमारिओं से बचाएंगे। सरकारी स्वस्थ शिशु केंद्रों पे ये टिके सरकार दुवारा मुफ्त में लगाये जाते हैं - ताकि हर नागरिक का बच्चा स्वस्थ रह सके।
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समय कितनी तेज़ी से निकल जाता है।
है ना!
ऐसा लगता है की आप के लाडले का जन्म अभी कल ही हुआ हो - और देखते-ही-देखते कब दस सप्ताह गुजर गए पता ही नहीं चला।
आप का शिशु चूँकि अब दस सप्ताह का हो गया है - यानि की की ढाई माह - टी इसका मतलब है की अब समय आ गया है की उसे कुछ और टिके लगाए जाएँ।
जब शिशु को टिका लगता है तो माँ और बच्चे दोनों को बहुत तकलीफ होती है। मगर यह जरुरी है की बच्चे को सारे टिके समय पे लगाए जाएँ - ताकि वो कई प्रकार की जानलेवा बीमारियोँ के संपर्क में आने से बचा रहे सके।
हम और आप ऐसे युग में रह रहे हैं जहाँ पे चिकित्सा विज्ञानं बहुत तरक्की (medically advanced) कर चूका है।
मगर अफ़सोस इस बात का है की अभी भी इस संसार में बहुत से बच्चे कई प्रकार के गंभीर बीमारियोँ के प्रति असुरक्षित नहीं हैं।
ऐसा नहीं है की माँ बाप अपने बच्चे को कुछ चिन्हित बीमारियोँ के प्रति टीकाकरण करवाने में असमर्थ हैं - हकीकत यह है की इन बीमारियोँ के प्रति माँ बाप अपने बच्चे को सरकारी शिशु स्वस्थ केंद्रों में मुफ्त में टिका दिलवा सकते हैं - मगर वे नहीं दिलवाते हैं।
अब इसे उनकी लापरवाही कहें या कुछ और - पता नहीं। मगर ऐसी लापरवाही भी किस बात की - की जिसकी कीमत बच्चे को जिंदगी भर चुकानी पड़े।
शिशु के दस सप्ताह पुरे करने पे उसे DTP का दूसरा डोज लगाया जाता है। इसके साथ बच्चे को पोलियो के टिके की - दूसरी खुराक (IPV2) भी दी जाती है। शिशु को हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा बी (HIB) की भी दूसरी खुराक इस समय पे दी जाती है।
शिशु को दस सप्ताह पे दिए जाने वाले टिके का पुर विवरण इस प्रकार है।
यह समय है की आप अपने शिशु को D.P.T. का दूसरा टिका लगवाएं। यह टिका आप के शिशु को बहुत गंभीर बीमारी से बचता है। हर साल करीब एक साल से कम उम्र के तीन लाख बच्चे विकासशील देशों में डिफ्थीरिया, कालीखांसी और टिटनस (Tetanus) के संक्रमण के कारण मृत्यु के शिकार होते हैं। ये मुख्यता वो बच्चे हैं जिन्हे D.P.T. का टीका वैक्सीन (D.P.T. Vaccine) या तो नहीं लगाया गया या फिर समय पे नहीं लगाया गया। आप अपने शिशु को समय पे डपट का टिका अवश्य लगवाएं। D.P.T. के टिके की दूसरी खुराक के बारे मैं आप पूरी जानकारी यहां प्राप्त कर सकते हैं।
अगर आप ने कभी किसी पोलियो ग्रस्त व्यक्ति को देखा है तो आप जान ही सकते हैं की ये कितनी गंभीर बीमारी है। एक समय था जब भारत में पोलियो होना एक आम बात था। मगर भारत सरकार तीस साल (30 years) के अथक परिश्रम के दुवारा भारत आज पोलियो मुक्त राष्ट्र है। मगर - अगर माँ-बाप अपने बच्चे को पोलियो का टिका लगवाना बंद कर दें तो पोलियो फिर से भारत में होनर लगेगा - और यह होगा उन बच्चों के जरिये जिन्हे पोलियो का पूरा ठीके नहीं लगाया गया है। दस सप्ताह के बच्चे को पोलियो के टिके (IPV2) की दूसरी खुराख दी जाती है। पोलियो वैक्सीन - IPV1, IPV2, IPV3 वैक्सीन (Polio वैक्सीन) के बारे में पूरी जानकारी यहां प्राप्त करें।
न्यूमोकोकल (pneumococcal) का संक्रमण एक contagious बीमारी - जिसका मतलब होता है की इस बीमारी को फ़ैलाने के लिए किसी मछर या मक्खी की जरुरत नहीं पड़ती है - बल्कि इसका संक्रमण एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति को हवा के द्वारा ही फ़ैल जाता है। न्यूमोकोकल (pneumococcal) काफी गंभीर संक्रमण है और इसके संक्रमण से व्यक्ति को निमोनिया (Pneumonia), रक्त संक्रमण या दिमागी बुखार तक होने का खतरा रहता है। शिशु के दस सप्ताह होने पे उसे न्यूमोकोकल कन्जुगेटेड वैक्सीन की दूसरी खुराक दी जाती है।
हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा बी (HIB) वैक्सीन - शिशु को बहुत ही खतरनाक विषाणु (bacteria) के संक्रमण से बचाता है। इस खतरनाक विषाणु (bacteria) का नाम है - Haemophilus influenzae type b - और इस के संक्रमण से दमागी बुखार, मस्तिष्क को छती, फेफड़ों का इन्फेक्शन (lung infection) , मेरुदण्ड का रोग और गले का गंभीर संक्रमण भी शामिल है। दस सप्तह पुरे होने पे शिशु को हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा बी के टिके की (HIB) दूसरी खुराक मिलती चाहिए।
शिशु को गंभीर दस्त लगने का सबसे आम कारण है रोटावायरस का संक्रमण। छह महीने के बच्चे से लेकर दो साल तक के बच्चे को रोटावायरस के संक्रमण का खतरा बना रहता है। रोटावायरस वैक्सीन (RV) (Rotavirus Vaccine) के आभाव में शिशु को रोटावायरस के संक्रमण से बचा पाना लगभग असंभव है। इससे पहले की शिशु पांच साल (5 years) का हो, हर शिशु को कम से कम एक बार तो रोटावायरस के संक्रमण के कारण दस्त होता ही है। रोटावायरस वैक्सीन (RV) (Rotavirus Vaccine) के टिके के बारे में और अधिक जानकारी आप यहां प्राप्त कर सकते हैं।
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आप पाएंगे कि अधिकांश बच्चों के दांत ठेडे मेढे होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चे अपने दांतो का ख्याल बड़ों की तरह नहीं रखते हैं। दिनभर कुछ ना कुछ खाते रहते हैं जिससे उनके दांत कभी साफ नहीं रहते हैं। लेकिन अगर आप अपने बच्चों यह दातों का थोड़ा ख्याल रखें तो आप उनके दातों को टेढ़े (crooked teeth) होने से बचा सकते हैं। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि आपको अपने बच्चों के दातों से संबंधित कौन-कौन सी बातों का ख्याल रखना है, और अपने बच्चों को किन बातों की शिक्षा देनी है जिससे वे खुद भी अपने दांतो का ख्याल रख सके।
UHT milk को अगर ना खोला कए तो यह साधारण कमरे के तापमान पे छेह महीनो तक सुरक्षित रहता है। यह इतने दिनों तक इस लिए सुरक्षित रह पता है क्योंकि इसे 135ºC (275°F) तापमान पे 2 से 4 सेकंड तक रखा जाता है जिससे की इसमें मौजूद सभी प्रकार के हानिकारक जीवाणु पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। फिर इन्हें इस तरह से एक विशेष प्रकार पे पैकिंग में पैक किया जाता है जिससे की दुबारा किसी भी तरह से कोई जीवाणु अंदर प्रवेश नहीं कर पाए। इसी वजह से अगर आप इसे ना खोले तो यह छेह महीनो तक भी सुरक्षित रहता है।
8 लक्षण जो बताएं की बच्चे में बाइपोलर डिसऑर्डर है। किसी बच्चे के व्यवहार को देखकर इस निष्कर्ष पर पहुंचना कि उस शिशु को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder), गलत होगा। चिकित्सीय जांच के द्वारा ही एक विशेषज्ञ (psychiatrist) इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि बच्चे को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) है या नहीं।
बच्चों में अस्थमा के कई वजह हो सकते हैं - जैसे की प्रदुषण, अनुवांशिकी। लेकिन यह बच्चों में ज्यादा इसलिए देखने को मिलती है क्यूंकि उनका श्वसन तंत्र विकासशील स्थिति में होता है इसीलिए उनमें एलर्जी द्वारा उत्पन्न अस्थमा, श्वसन में समस्या, श्वसनहीनता, श्वसनहीन, फेफड़े, साँस सम्बन्धी, खाँसी, अस्थमा, साँस लेने में कठिनाई देखने को मिलती है। लेकिन कुछ घरेलु उपाय, बचाव और इलाज के दुवारा आप अपने शिशु को दमे की तकलीफों से बचा सकती हैं।
बच्चों के दांत निकलते समय दर्द और बेचैनी होती है।इसे घरेलु तरीके से आसानी ठीक किया जा सकता है। घरेलु उपचार के साथ-साथ आप को कुछ और बैटन का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है ताकि बच्चे की को कम से कम किया जा सके। Baby teething problems in Hindi - Baby teeth problem solution
सुपरफूड हम उन आहारों को बोलते हैं जिनके अंदर प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। सुपर फ़ूड शिशु के अच्छी शारीरिक और मानसिक विकास में बहुत पूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये बच्चों को वो सभी पोषक तत्व प्रदान करते हैं जो शिशु के शारीर को अच्छी विकास के लिए जरुरी होता है।
गणतंत्र दिवस एक खुबसूरत अवसर है जिसका लाभ उठाकर सिखाएं बच्चों को आजादी का महत्व और उनमें जगाएं देश के संविधान के प्रति सम्मान। तभी देश का हर बच्चा बड़ा होने बनेगा एक जिमेदार और सच्चा नागरिक।
कहानियां सुनने से बच्चों में प्रखर बुद्धि का विकास होता है। लेकिन यह जानना जरुरी है की बच्चों को कौन सी कहानियां सुनाई जाये और कहानियौं को किस तरह से सुनाई जाये की बच्चों के बुद्धि का विकास अच्छी तरह से हो। इस लेख में आप पढ़ेंगी कहानियौं को सुनने से बच्चों को होने वाले सभी फायेदों के बारे में।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के अनुसार चार से छह महीने पे शिशु शिशु का वजन दुगना हो जाना चाहिए। 4 महीने में आप के शिशु का वजन कितना होना चाहिए ये 4 बातों पे निर्भर करता है। शिशु के ग्रोथ चार्ट (Growth charts) की सहायता से आप आसानी से जान सकती हैं की आप के शिशु का वजन कितना होना चाहिए।
आसन घरेलु तरीके से पता कीजिये की गर्भ में लड़का है या लड़की (garbh me ladka ya ladki)। इस लेख में आप पढेंगी गर्भ में लड़का होने के लक्षण इन हिंदी (garbh me ladka hone ke lakshan/nishani in hindi)। सम्पूर्ण जनकरी आप को मिलेगी Pregnancy tips in hindi for baby boy से सम्बंधित। लड़का होने की दवा (ladka hone ki dawa) की भी जानकारी लेख के आंत में दी जाएगी।
6 महीने की लड़की का वजन 7.3 KG और उसकी लम्बाई 24.8 और 28.25 इंच होनी चाहिए। जबकि 6 महीने के शिशु (लड़के) का वजन 7.9 KG और उसकी लम्बाई 24 से 27.25 इंच के आस पास होनी चाहिए। शिशु के वजन और लम्बाई का अनुपात उसके माता पिता से मिले अनुवांशिकी और आहार से मिलने वाले पोषण पे निर्भर करता है।
बदलते मौसम में शिशु को जुकाम और बंद नाक की समस्या होना एक आम बात है। लेकिन अच्छी बात यह है की कुछ बहुत ही सरल तरीकों से आप अपने बच्चों की तकलीफों को कम कर सकती हैं और उन्हें आराम पहुंचा सकती हैं।
मौसम तेज़ी से बदल रहा है। ऐसे में अगर आप का बच्चा बीमार पड़ जाये तो उसे जितना ज्यादा हो सके उसे आराम करने के लिए प्रोत्साहित करें। जब शरीर को पूरा आराम मिलता है तो वो संक्रमण से लड़ने में ना केवल बेहतर स्थिति में होता है बल्कि शरीर को संक्रमण लगने से भी बचाता भी है। इसका मतलब जब आप का शिशु बीमार है तो शरीर को आराम देना बहुत महत्वपूर्ण है, मगर जब शिशु स्वस्थ है तो भी उसके शरीर को पूरा आराम मिलना बहुत जरुरी है।
दैनिक जीवन में बच्चे की देखभाल करते वक्त बहुत से सवाल होंगे जो आप के मन में आएंगे - और आप उनका सही समाधान जाना चाहेंगी। अगर आप डॉक्टर से मिलने से पहले उन सवालों की सूचि त्यार कर लें जिन्हे आप पूछना चाहती हैं तो आप डॉक्टर से अपनी मुलाकात का पूरा फायदा उठा सकती हैं।
शिशु के कान में मेल का जमना आम बात है। मगर कान साफ़ करते वक्त अगर कुछ महत्वपूर्ण सावधानी नहीं बरती गयी तो इससे शिशु के कान में इन्फेक्शन हो सकता है या उसके कान के अन्दर की त्वचा पे खरोंच भी लग सकता है। जाने शिशु के कान को साफ़ करने का सही तरीका।
अगर आप का बच्चा पढाई में मन नहीं लगाता है, होमवर्क करने से कतराता है और हर वक्त खेलना चाहता है तो इन 12 आसान तरीकों से आप अपने बच्चे को पढाई के लिए अनुशाषित कर सकते हैं।
अगर आप यह चाहते है की आप का बच्चा भी बड़ा होकर एक आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी बने तो इसके लिए आपको अपने बच्चे के खान - पान और रहन - सहन का ध्यान रखना होगा।
प्राथमिक उपचार के द्वारा बहते रक्त को रोका जा सकता है| खून का तेज़ बहाव एक गंभीर समस्या है। अगर इसे समय पर नहीं रोका गया तो ये आप के बच्चे को जिंदगी भर के लिए नुकसान पहुंचा सकता है जिसे शौक (shock) कहा जाता है। अगर चोट बड़ा हो तो डॉक्टर स्टीच का भी सहारा ले सकता है खून के प्रवाह को रोकने के लिए।
बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए बचपन से ही उन्हें अच्छे और बुरे में अंतर करना सिखाएं। यह भी जानिए की बच्चों को बुरी संगत से कैसे बचाएं। बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए उन्हें अच्छी शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी दीजिये।
बच्चों का नाख़ून चबाना एक बेहद आम समस्या है। व्यस्क जब तनाव में होते हैं तो अपने नाखुनो को चबाते हैं - लेकिंग बच्चे बिना किसी वजह के भी आदतन अपने नाखुनो को चबा सकते हैं। बच्चों का नाखून चबाना किसी गंभीर समस्या की तरफ इशारा नहीं करता है। लेकिन यह जरुरी है की बच्चे के नाखून चबाने की इस आदत को छुड़ाया जाये नहीं तो उनके दातों का shape बिगड़ सकता है। नाखुनो में कई प्रकार के बीमारियां अपना घर बनाती हैं। नाख़ून चबाने से बच्चों को कई प्रकार के बीमारी लगने का खतरा बढ़ जाता है, पेट के कीड़े की समस्या तथा पेट दर्द भी कई बार इसकी वजह होती है।