Category: टीकाकरण (vaccination)
By: Salan Khalkho | ☺4 min read
टीकाकरण के बाद बुखार होना आम बात है क्यूंकि टिके के जरिये बच्चे की शरीर का सामना संक्रमण से कराया जाता है। जानिए की आप किस तरह टीकाकरण के दुष्प्रभाव को कम कर सकती हैं।
टिके बच्चों को जानलेवा बीमारियोँ से बचाते हैं मगर टिके के दुष्प्रभाव जैसे की बच्चों में बुखार तथा अन्य लक्षण देखने को मिलते हैं। यह एक आम समस्या है।
यह इसलिए होता है क्यूंकि टीकाकरण (vaccination) में बच्चे के शरीर का सामना संक्रमण से कराया जाता है। इससे बच्चे में संक्रमण के प्रति प्रतिरक्षण क्षमता विकसित होती है।
मगर संक्रमण के कारण बच्चे को बुखार तथा अन्य side effect होने की सम्भावना रहती है।

बच्चों का जन्म होते ही टीकाकरण सरणी के अनुसार टिका लगाना बहुत जरुरी है। टीकाकरण बच्चों को अनेक प्रकार के जानलेवा बीमारियोँ से बचाते हैं। टीकाकरण से बच्चों का शरीर जन्दगी भर के लिए संक्रमण और कई भयंकर बीमारियोँ से लड़ने के काबिल हो जाता है।
टिके बच्चों को जन्म से ही लगने प्रारम्भ हो जाते हैं। जैसे की पोलियो, डी.टी.पी, चिकन पॉक्स और एम एम के टिके। बच्चों को सही समय पे "शिशु का टीकाकरण चार्ट" के अनुसार टिके लगवाने चाहिए ताकि बच्चे बीमारियोँ के खतरे से बचे रहें।
बच्चों के जन्म के समय उनका शरीर इतना सक्षम नहीं होता की अनेक प्रकार के गंभीर बीमारियोँ से लड़ सके। जब तक बच्चे माँ का दूध पीते हैं तब तक बच्चों को दूध के जरिये माँ का antibody मिलता रहता है। माँ के शरीर से मिला antibody बच्चों को बीमारियोँ से लड़ने में मदद करता है। मगर ये एंटीबाडी जिंदगी भर बच्चे की रक्षा नहीं करेंगे। बच्चों के शरीर को खुद antibody बनाना शुरू करना पड़ेगा ताकि वो सवयं बीमारियोँ से लड़ सके। टीकाकरण बच्चे के शरीर को antibody बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। एक बार जब बच्चे का शरीर किसी विशेष प्रकार के जीवाणु/रोगाणु के प्रति antibody बनाना सिख लेता है तो फिर वो जिंदगी भर के लिए उस बीमारी से लड़ने में सक्षम हो जाता है।
टिके है बहुत जरुरी मगर हैं कष्टदायी। टीकाकरण के दुष्प्रभाव बच्चों में देखने को मिलते हैं। जैसा की टिका लगाने (vaccination) के बाद अधिकांश बच्चों को हक्का फुल्का बुखार होता है। इसी लिए अगर टिके के बाद बच्चे को हल्का-फुल्का भुखार या कोई और समस्या हो तो कोई चिंता की बात नहीं। आमतौर पे ये दुष्प्रभाव और कष्ट 24 घंटे के अंदर दिखने शुरू हो जाते हैं। इस दौरान आप बच्चों में यह लक्षण देख सकते हैं।

यूँ तो सभी टीकों से बुखार होने की सम्भावना रहती है। मगर आपको ध्यान रखना है की बच्चे को तेज़ बुखार न हो। अगर तेज़ बुखार हुआ तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। कभी कभी तेज़ बुखार में बच्चों को दौरे भी पड़ने लगते हैं। यह स्थिति सही नहीं है। ये गंभीर अवस्था है। ऐसा होने पे डॉक्टर से संपर्क करें ताकि शिशु का तुरंत उपचार हो सक।

टीकाकरण के बाद बुखार होना आम बात है क्यूंकि टिके के जरिये बच्चे की शरीर का सामना संक्रमण से कराया जाता है। जब बच्चे का शरीर बहुत ही कमजोर संक्रमण से कराया जाता है तो उसका शरीर उस संक्रमण से लड़ने के लिए प्रतिरक्षण क्षमता (antibody) विकसित करता है।
बच्चों को सभी टीका injection के रूप में नहीं दिया जाता है। कुछ टिके drops के रूप में बच्चे के मुंह में दवा डालकर दिए जाते हैं।

बच्चों को आप टीकाकरण के दुष्प्रभाव से तो नहीं बचा सकती हैं मगर आप टिके के दुषोरभाव को जरूर कम कर सकती हैं।
पोक्सो एक्ट बच्चों पे होने वाले यौन शोषण तथा लैंगिक अपराधों से उनको सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण अधिनियम है। 2012 में लागु हुआ यह संरक्षण अधिनियम एवं नियम, 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों पे हो रहे लैंगिक अपराधों पे अंकुश लगाने के लिए किया गया है। Protection of Children from Sexual Offences Act (POCSO) का उल्लेख सेक्शन 45 के सब- सेक्शन (2) के खंड “क” में मिलता है। इस अधिनियम के अंतर्गत 12 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ यौन उत्पीडन करने वाले दोषी को मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान निर्धारित किया गया है।
8 लक्षण जो बताएं की बच्चे में बाइपोलर डिसऑर्डर है। किसी बच्चे के व्यवहार को देखकर इस निष्कर्ष पर पहुंचना कि उस शिशु को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder), गलत होगा। चिकित्सीय जांच के द्वारा ही एक विशेषज्ञ (psychiatrist) इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि बच्चे को बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) है या नहीं।
बच्चों के शारीर पे एक्जिमा एक बहुत ही तकलीफदेह स्थिति है। कुछ बातों का ख्याल रखकर और घरेलु इलाज के दुवारा आप अपने शिशु को बहुत हद तक एक्जिमा की समस्या से छुटकारा दिला सकती हैं। इस लेख में आप पढ़ेंगी हर छोटी और बड़ी बात का जिनका आप को ख्याल रखना है अगर आप का शिशु एक्जिमा की समस्या से परेशान है!
गर्भवती महिला में उल्टी और मतली का आना डोक्टर अच्छा संकेत मानते हैं। इसे मोर्निंग सिकनेस भी कहते हैं और इसकी वजह है स्त्री के शारीर में प्रेगनेंसी हॉर्मोन (hCG) का बनना। जाने क्योँ जरुरी है गर्भावस्था में उल्टी और मतली के लक्षण और इसके ना होने से गर्भावस्था को क्या नुक्सान पहुँच सकता है।
हर माँ-बाप को कभी-ना-कभी अपने बच्चों के जिद्दी स्वाभाव का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अधिकांश माँ-बाप जुन्झुला जाते है और गुस्से में आकर अपने बच्चों को डांटे देते हैं या फिर मार भी देते हैं। लेकिन इससे स्थितियां केवल बिगडती ही हैं। तीन आसान टिप्स का अगर आप पालन करें तो आप अपने बच्चे को जिद्दी स्वाभाव का बन्ने से रोक सकती हैं।
बाल रोग विशेषज्ञों के अनुसार, अगर शिशु को एलर्जी नहीं है, तो आप उसे 6 महीने की उम्र से ही अंडा खिला सकती हैं। अंडे की पिली जर्दी, विटामिन और मिनिरल का बेहतरीन स्रोत है। इससे शिशु को वासा और कोलेस्ट्रॉल, जो उसके विकास के लिए इस समय बहुत जरुरी है, भी मिलता है।
इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं शिशु की खांसी, सर्दी, जुकाम और बंद नाक का इलाज किस तरह से आप घर के रसोई (kitchen) में आसानी से मिल जाने वाली सामग्रियों से कर सकती हैं - जैसे की अजवाइन, अदरक, शहद वगैरह।
शिशु को सर्दी और जुकाम (sardi jukam) दो कारणों से ही होती है। या तो ठण्ड लगने के कारण या फिर विषाणु (virus) के संक्रमण के कारण। अगर आप के शिशु का जुकाम कई दिनों से है तो आप को अपने बच्चे को डॉक्टर को दिखाना चाहिए। कुछ घरेलु उपचार (khasi ki dawa) की सहायता से आप अपने शिशु की सर्दी, खांसी और जुकाम को ठीक कर सकती हैं। अगर आप के शिशु को खांसी है तो भी घरेलु उपचार (खांसी की अचूक दवा) की सहायता से आप का शिशु पूरी रात आरामदायक नींद सो सकेगा और यह कफ निकालने के उपाय भी है - gharelu upchar in hindi
माँ बनना बहुत ही सौभाग्य की बात है। मगर माँ बनते ही सबसे बड़ी चिंता इस बात की होती है की अपने नन्हे से शिशु की देख भाल की तरह की जाये ताकि बच्चा रहे स्वस्थ और उसका हो अच्छा शारीरिक और मानसिक विकास।
स्मार्ट फ़ोन के जरिये माँ-बाप अपने बच्चे के संपर्क में २४ घंटे रह सकते हैं| बच्चे अगर स्मार्ट फ़ोन का इस्तेमाल समझदारी से करे तो वो इसका इस्तेमाल अपने पढ़ाई में भी कर सकते हैं| मगर अधिकांश घटनाओं में बच्चे स्मार्ट फ़ोन का इस्तेमाल समझदारी से नहीं करते हैं और तमाम समस्याओं का सामना उन्हें करना पड़ता है|
रागी को Nachni और finger millet भी कहा जाता है। इसमें पोषक तत्वों का भंडार है। कैल्शियम, पोटैशियम और आयरन तो इसमें प्रचुर मात्रा में होता है। रागी का खिचड़ी - शिशु आहार - बेबी फ़ूड baby food बनाने की विधि
केला पौष्टिक तत्वों का बेहतरीन स्रोत है। ये उन फलों में से एक हैं जिन्हे आप अपने बच्चे को पहले आहार के रूप में भी दे सकती हैं। इसमें लग-भग वो सारे पौष्टिक तत्त्व मौजूद हैं जो एक व्यक्ति के survival के लिए जरुरी है। केले का प्यूरी बनाने की विधि - शिशु आहार (Indian baby food)
केला पौष्टिक तत्वों का जखीरा है और शिशु में ठोस आहार शुरू करने के लिए सर्वोत्तम आहार। केला बढ़ते बच्चों के सभी पौष्टिक तत्वों की जरूरतों (nutritional requirements) को पूरा करता है। केले का smoothie बनाने की विधि - शिशु आहार in Hindi
6 से 7 महीने के बच्चे में जरुरी नहीं की सारे दांत आये। ऐसे मैं बच्चों को ऐसी आहार दिए जाते हैं जो वो बिना दांत के ही आपने जबड़े से ही खा लें। 7 महीने के baby को ठोस आहार के साथ-साथ स्तनपान करना जारी रखें। अगर आप बच्चे को formula-milk दे रहें हैं तो देना जारी रखें। संतुलित आहार चार्ट
अधिकांश बच्चे जो पैदा होते हैं उनका पूरा शरीर बाल से ढका होता है। नवजात बच्चे के इस त्वचा को lanugo कहते हैं। बच्चे के पुरे शरीर पे बाल कोई चिंता का विषय नहीं है। ये बाल कुछ समय बाद स्वतः ही चले जायेंगे।
आप के बच्चे के लिए सही सनस्क्रीन का चुनाव तब तक संभव नहीं है जब तक की आप को यह न पता हो की आप के बच्चे की त्वचा किस प्रकार की है और कितने प्रकार के सनस्क्रीन बाजार में उपलब्ध हैं।
शिशु जब 6 month का होता है तो उसके जीवन में ठोस आहार की शुरुआत होती है। ऐसे में इस बात की चिंता होती है की अपने बच्चे को ठोस आहार में क्या खाने को दें। जानिए 6 से 12 माह के बच्चे को क्या खिलाएं
बच्चों को दातों की सफाई था उचित देख रेख के बारे में बताना बहुत महत्वपूर्ण है। बच्चों के दातों की सफाई का उचित ख्याल नहीं रखा गया तो दातों से दुर्गन्ध, दातों की सडन या फिर मसूड़ों से सम्बंधित कई बिमारियों का सामना आप के बच्चे को करना पड़ सकता है।
ठोस आहार के शुरुवाती दिनों में बच्चे को एक बार में एक ही नई चीज़ दें। नया कोई भी भोजन पांचवे दिन ही बच्चे को दें। इस तरह से, अगर किसी भी भोजन से बच्चे को एलर्जी हो जाये तो उसका आसानी से पता लगाया जा सकता है।
बच्चों में होने वाली कुछ खास बिमारियों में से सीलिएक रोग (Celiac Disease ) एक ऐसी बीमारी है जिसे सीलिएक स्प्रू या ग्लूटन-संवेदी आंतरोग (gluten sensitivity in the small intestine disease) भी कहते हैं। ग्लूटन युक्त भोजन लेने के परिणामस्वरूप छोटी आंत की परतों को यह क्षतिग्रस्त (damages the small intestine layer) कर देता है, जो अवशोषण में कमी उत्पन्न करता (inhibits food absorbtion in small intestine) है। ग्लूटन एक प्रोटीन है जो गेहूं, जौ, राई और ओट्स में पाया जाता है। यह एक प्रकार का आटो इम्यून बीमारी (autoimmune diseases where your immune system attacks healthy cells in your body by mistake) है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपने ही एक प्रोटीन के खिलाफ एंटी बाडीज (antibody) बनाना शुरू कर देती है।