Category: स्वस्थ शरीर

नवजात शिशु का वजन बढ़ाने के तरीके

By: Salan Khalkho | 3 min read

अगर जन्म के समय बच्चे का वजन 2.5 kg से कम वजन का होता है तो इसका मतलब शिशु कमजोर है और उसे देखभाल की आवश्यकता है। जानिए की नवजात शिशु का वजन बढ़ाने के लिए आप को क्या क्या करना पड़ेगा।

नवजात शिशु का वजन बढ़ाने के तरीके

क्या आप जानते हैं?

की एक नवजात बच्चे का वजन जन्म के समय कितना होना चाहिए। 
Ideal baby weight for normal डिलीवरी

नवजात बच्चे का वजन 2.5 kg से 4 kg के लगभग सही माना जाता है। अगर जन्म के समय बच्चे का वजन 2.5 kg से कम वजन का होता है तो इसका मतलब शिशु कमजोर है और उसे देखभाल की आवश्यकता है। 

ज्यादातर प्री-मेच्योर बच्चे (premature child) में वजन कम होता है। ऐसे में माँ-बाप का चिंतित होना लाजमी है। मगर कुछ बातों का ख्याल रखा जाये तो आप को चिंता की आवश्यकता नहीं। 

अगर आप के बच्चे का वजन 2.5 kg से कम है तो अपने डॉक्टर से संपर्क बनाये रखें। आप हर यथा संभव कोशिश करें की आप का बच्चा बीमार न पड़े। जिन बच्चों का वजन जन्म के समय 2 kg से कम होता है उन्हें विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। 

हम आप को बताएँगे की किस तरह आप अपने बच्चे का वजन बढ़ा सकते हैं। 

बच्चे का कम वजन होना तो माँ-बाप के लिए चिंता का विषय है - मगर क्या आप ने कभी सोचा है की बच्चे का कम वजन होने से बच्चे को क्या क्या परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। 

कम वजन शिशु का शारीरिक समस्या

कम वजन शिशु का शारीरिक समस्या

जिन बच्चों का वजन जन्म के समय कम रहता है उन्हें कई प्रकार के समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सबसे पहली समस्या यह है की ऐसे बच्चों के शरीर में वासा की मात्रा बेहद निचले स्तर पे होती है। जिसके कारण ये बच्चे अपने शरीर का तापमान बनाये रखने में असमर्थ होते हैं। 

SIDS - बच्चों की अचानक मृत्यु 

जिन बच्चों का वजन पहले वर्ष में कम होता है उनमें अचानक मृत्यु का खतरा बना रहता है। इसे अंग्रेजी में SIDS - sudden infant death syndrome भी कहते हैं। जिन बच्चों का वजन जन्म के समय कम होता है - अगर उनका ध्यान न रखा जाये तो ऐसे 90 प्रतिशत शिशु मृत्यु की घटना छह महीने से पहले हो जाती है। इसका मतलब अगर पहले छह महीने शिशु का उचित ख्याल रखा जाये तो उसके जीने की सम्भावना 90 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। 

कम वजन नवजात बच्चों में क्योँ होती है मृत्यु

कम वजन नवजात बच्चों में क्योँ होती है मृत्यु?

इसके दो कारण है। जन्म के समय जिस प्री-मेच्योर शिशु का वजन कम होता है उनके फेफड़े सही तरीके से विकसित नहीं होते है। इस वजह से इन बच्चों को साँस लेने मैं और दूध पीने (स्तनपान) में भी दिक्कत हो सकती है। प्री-मेच्योर बच्चों में इन्फेक्शन यानि संक्रमण का भी बहुत खतरा रहता है। साथ ही साथ इन बच्चों में पेट से जुड़ी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है क्योँकि इनका पाचन तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होता है। यह भी एक कारण है की जन्म के बाद इनका वजन उतना नहीं बढ़ता है जितना की बाकि बच्चों का बढ़ता है।  

पहले छह महीने हैं खास

कम वजन में जन्मे प्री-मेच्योर बच्चे की अगर पहले छह महीने सही देख रेख की जाये तो संकट बहुत हद तक कम किया जा सकता है। समय के साथ बच्चे का  फेफड़ों विकसित हो जायेगा और उसकी साँस लेने की समस्या भी समाप्त हो जाएगी। समय के साथ बच्चे का immune system भी विकसित हो जायेगा और खुद ही संक्रमण से शरीर का बचाव कर सकेगा। यही बात उसके पाचन तंत्र के साथ भी है। वो भी समय के साथ विकसित हो जायेगा और फिर बच्चा जो भी खायेगा वो उसके शरीर को लगेगा।

बच्चे के लिए स्तनपान है अमृत

ऐसे बच्चे के लिए स्तनपान है अमृत

कम वजन जन्मे प्री-मेच्योर नवजात बच्चों के लिए तो माँ का दूध मानो अमृत तुल्य है। माँ के दूध से बच्चे के शरीर को एंटीबाडी मिलता है। एंटीबाडी एक तरह का प्रोटीन है जो बच्चे के शरीर में पनप रहे संक्रमण को मार भगाता है। चूँकि बच्चे का immune system पूरी तरह विकसित नहीं है इसलिए वो खुद antibody नहीं बना पता है। मगर जैसे जैसे बच्चा बड़ा होगा उसका immune system पूरी तरह विकसित हो जायेगा और तब उसका शरीर खुद ही संक्रमण से लड़ने में सक्षम हो जायेगा। यानि पहले छह महीने कम वजन बच्चे को जितना हो सके अपना स्तनपान कराएं। यह उसके लिए आहार भी है और दवा भी। 

कम वजन शिशु को स्तनपान में दिक्कत

कम वजन शिशु को स्तनपान में दिक्कत 

कम वजन शिशु का फेफड़ा पूरी तरह विकसित नहीं होता है इसलिए उन्हें दूध पीने में बहुत दिक्कत होती है। ऐसे बच्चों को दूध पिलाने के लिए आप को बहुत धैर्य रखने की आवश्यकता है। आप को अपने बच्चे को बार बार दूध पिलाने की कोशिश करनी पड़ेगी। एक बार जब आपका बच्चा दूध पीना सिख ले तब आप को उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। अगर तमाम कोशिशों के बावजूद भी आप का बच्चा दूध नहीं पि पा रहा है तो आप अपने दूध को निकल कर उबले कप से या चम्मच के सहायता से भी पिलाने की कोशिश कर सकती हैं। अगर आप फिर भी दिक्कत का सामना करती है तो आप खासतौर से प्री मेच्योर बच्चों के लिए बनी फीडिंग बोतल का इस्तेमाल कर सकती हैं। जब तक बच्चे का वजन सामान्य न हो जाये उसे हर दो घंटे पे दूध पिलाती रहें। 

कम वजन बच्चे का तापमान ऐसे करें नियंत्रित

कम वजन बच्चे का तापमान ऐसे करें नियंत्रित

कम वजन जन्मे प्री-मेच्योर नवजात बच्चों को अपने शरीर का तापमान सामान्य बनाये रखें में दिक्कत होता है। ऐसे मैं उसका ख्याल रखना बेहद चुनौतीपूर्ण है। जब बच्चा शरीर का तापमान नियंत्रित करने में असमर्थ रहता है तो उसमे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे मैं आप को अपने बच्चे के शरीर का तापमान कृत्रिम तरीकों से संतुलित करने की आवश्यकता पड़ेगी। 

कम वजन बच्चे की खास देखभाल की जरूरत है

कम वजन नवजात बच्चे में रोग प्रतिरोधी क्षमता (immunity power) बहुत कम होती है। इसीलिए उन्हें संक्रमण का खतरा बना रहता है। ऐसे बच्चों को संक्रमण से बचाने के लिए माँ का दूध तो एक विकल्प है ही। साथ ही ऐसे बच्चों की खास देखभाल की भी जरूरत है। बच्चे को पहले साल हर प्रकार के संक्रमण से बचा के रखें। बदलते मौसम में बच्चों का खास ख्याल रखने की आवश्यकता है। समय के साथ जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है - उसकी रोग प्रतिरोधक छमता मजबूत हो जाती है और उसे उतने ध्यान की आवश्यकता नहीं रहती है। 

कम वजन - प्री-मेच्योर शिशु का वजन इस तरह बढ़ाएं 

  1. जन्म के बाद बच्चे को माँ के संपर्क में रखें। माँ की त्वचा के संपर्क में रहने से बच्चे के शरीर का तापमान नियंत्रित रहेगा। 
  2. मौसम के अनुसार बच्चे को कपडे पहनाये। ठण्ड में बच्चे को अच्छी तरह ढक के रखें। बच्चे को ऊनि कपडे पहनाये। गर्मियों में बच्चे को सूती कपडे पहनाये। 
  3. गर्मियों में बच्चे को ऐसे कमरे में रखें जो बाकि कमरों के मुकाबले ठंडा हो। 
  4. ठण्ड में बच्चे को ऐसे कमरे में रखें जो बाकि कमरों से गर्म हो। कमरे की खिड़कियों को बंद रखें ताकि बहार से ठण्ड हवा अंदर न आये। 
  5. बिना डॉक्टर से पूछे बच्चे को नेहलाये नहीं। जब तक आप का बच्चा एक साल का न हो जाये या फिर उसका वजन सामान्य बच्चों के जितना न हो जाये, उसे नहलाएं नहीं। क्योँकि आप का बच्चा खुद से अपना शारीरिक तापमान नियंत्रित करने में अभी असमर्थ है। और इस अवस्था मैं बच्चे को नहलाना हानिकारक हो सकता है। सप्ताह में एक बार, बच्चे को रुई के पोहे से या साफ सूती कपडे को भीगा कर उससे बच्चे के शरीर को पोछ कर साफ करें। 
  6. बच्चे के शरीर को हर समय ढक कर रखें
  7. बच्चे को एक पल के लिए भी बिना कपडे के ना रखें। 
Important Note: यहाँ दी गयी जानकारी की सटीकता, समयबद्धता और वास्‍तविकता सुनिश्‍चित करने का हर सम्‍भव प्रयास किया गया है । यहाँ सभी सामग्री केवल पाठकों की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए दी गई है। हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि यहाँ दिए गए किसी भी उपाय को आजमाने से पहले अपने चिकित्‍सक से अवश्‍य संपर्क करें। आपका चिकित्‍सक आपकी सेहत के बारे में बेहतर जानता है और उसकी सलाह का कोई विकल्‍प नहीं है। अगर यहाँ दिए गए किसी उपाय के इस्तेमाल से आपको कोई स्वास्थ्य हानि या किसी भी प्रकार का नुकसान होता है तो kidhealthcenter.com की कोई भी नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती है।

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